बिलासपुर । कितने विवश हो गए हैं हम। इतने लाचार हो गए कि चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे । कोरोना कितना निर्मोही हो गया है कि आज सब तरफ जान के लाले पड़ गए है ।रुपए पैसे कुछ काम नहीं आ रहा । क्या नेता ,क्या पत्रकार क्या बड़े-बड़े प्रभावी लोग भी सब लाचार है क्योंकि व्यवस्था भी कुछ ऐसी है कि तमाम कोशिशों और सिफारिशों के बाद भी ना आक्सीजन मिल रहा है और न हीं बेड मिल रहा । अगर खुदा ना खास्ता कुछ व्यवस्था हो गई तो अस्पतालों के डॉक्टर और पूरा स्टाफ मजबूर और लाचार मरीज और उसके परिजनों को मरते दम तक निचोड़ लेने के लिए शायद कसम खा लिए है ।कोरोना महामारी की अभी तक कोई दवाई ही नहीं बनी और अस्पतालों में पता नहीं किस बात का लाखों रुपए दिल बनाए जा रहे हैं ।इतना ही नहीं निष्ठुर हो चुके अस्पताल प्रबंधनो द्वारा मरीजों के मरने के बाद भी परिजनों को लाखों रुपए का बिल थमा भुगतान के बाद ही मृतक की लाश को परिजनों को दे रहे। ऐसा निष्ठुर और जलालत भरी जिंदगी इसके पहले शायद ही कभी रहा हो।
कोरोनावायरस के साल भर पहले के हालात को देखकर अधिकांश निजी अस्पताल प्रबंधन वालों ने इस बार के अवसर को आपदा का अवसर मान कर शायद शायद करोड़ों यार उससे भी ऊपर कमाने की ठान ली है लेकिन उन्हें शायद यह पता नहीं कि ईश्वर न्याय करता है और जब ईश्वर की लाठी पड़ती है उसकी आवाज किसी को सुनाई नहीं देती और बेईमानी से कमाई हुई लाखों करोड़ों की संपत्ति काम नहीं आती।
पिछले साल कोरोना के पहले शहर के अधिकांश अस्पतालों में बैंकों के लोन की राशि लाखों-करोड़ों में बकाया थी ।कई अस्पताल तो मरीजों के अभाव में बंद होने के कगार पर थे । स्टाफ को वेतन तक देने के लाने पर गए थे बैंकों के किस्त समय पर नहीं पट रहे थे। ब्याज अलग बढ़ रहा था और अंतिम निर्णय यही था कि कर्ज में डूबे अस्पताल बंद करना पड़ जाए लेकिन पिछले साल मार्च माह से शुरू हुई कोरोना कॉल इन बंद हो रहे निजी अस्पतालों के लिए मानव कुबेर का खजाना साबित हो गया। इन अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों के परिजनों से बेहिसाब तौर पर और बिना इलाज के सिर्फ सर्दी खांसी बुखार की दवा खिलाकर लाखों रुपए वसूलते गए जो इंजेक्शन बाजार में मात्र ₹300 में मिल रही थी उसे निजी अस्पतालों ने मरीजों के परिजनों से ढाई से ₹3000 तक की वसूली की यह इंजेक्शन दिन में दो बार तीन बार तक लगाया जाता रहा। इस अवैध कमाई के जरिए पिछले 1 साल में बैंकों के कर्ज से लदे उन तमाम अस्पतालों को नई जिंदगी मिल गई और किस्तों की राशि भी पट गई ।अभी अधिकांश निजी अस्पताल प्रबंधन मरीजों के परिजनों के साथ खुलेआम डकैती कर रहे हैं। मजबूर परिजन कोई खेत बेचकर ,कोई घर गिरवी रख कर, कोई कर्जा लेकर अपने बीमार परिवार के सदस्य को बचाने के लिए पूरा पैसा डॉक्टरों को दे रहे। खुलेआम डकैती की जानकारी ऐसा नहीं है कि जिला प्रशासन के अधिकारियों और सरकार को ना हो मगर वे सब लाचार हैं अभी तक किसी भी ऐसे अस्पतालों के खिलाफ एक भी कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी है ।
शहर की अनेक पार्टियां उनके नेता सामाजिक संस्थाओं के लोग लगातार जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आए हैं और दिन रात संपर्क करके उनकी मदद भी कर रहे हैं लेकिन अस्पताल अस्पतालों में अस्पतालों में किसी की कोई सिफारिश नहीं चल रही है और वहां सिर्फ बापू के फोटो वाला कागज ही बोल रहा है नेता पत्रकार सामाजिक सरोकार से जुड़े लोग सब लोग अपनी व्यथा बता रहे हैं कि वे रात रात भर अपने परिचित रिश्तेदार आदि को बचाने के लिए हर जगह फोन लगा रहे हैं लेकिन वक्त पर न तो बेड मिल पा रहा है और न आक्सीजन सिलेंडर मिल पा रहा है। ये लोग भी विवश है । 3 दिन पहले ही राजस्व विभाग सेवानिवृत्त हुए एक अधिकारी ने फोन पर कहा कि उसके घर में चार लोग कोरोना पीड़ित है लेकिन चिंता शुगर पीड़ित धर्मपत्नी की है जिसके लिए अस्पताल और अन्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है ।कई अस्पतालों के चक्कर लगाया जा चुका है मगर बेड खाली नहीं मिल रहा है ।उक्त अधिकारी को संबंधित कुछ लोगों के नंबर देकर उनसे संपर्क करने को कहा लेकिन कल शाम उनकी धर्मपत्नी का देहावसान हो गया। हम और तमाम लोग चाह कर भी अपने परिचितों और रिश्तेदारों को कोई मदद नहीं कर पा रहे। प्रशासन अगर गंभीर हो तो बहुत सारी समस्याएं सुलझ सकती है और जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे बहुत से कोरोना पीड़ितों को वक्त पर इलाज मिल सकता है। निजी अस्पतालों के प्रबंधन पर इमानदारी पूर्वक कड़ाई तथा लाखों रुपए वेतन पाने वाले घर में बैठे अधिकारियों को हर एक निजी अस्पतालो की गतिविधियों पर नजर रखने और मरीजों को देने वाली सुविधाएं पर ध्यान रखने से समस्याएं पूरी तो ना सही मगर कुछ हद तक ठीक हो सकती है।
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लालखदान निवासी श्रीमती पुष्पा अग्रवाल विवेक अग्रवाल (विक्की) की माँ मेरी बहुत ही सम्मानीय चाची का आज निधन हो गया । मैं पूरी रात डॉक्टरों से मिन्नत करता रहा पर एक वेंटिलेटर का इंतजाम नही कर पाया । अंततः बचा नही पाया । अपलो देवरस जी महादेव सहित chmo कार्यलय sdm साहब सबसे निवेदन किया मगर सब मजबूर थे । भाई अजय श्रीवास्तव ने भी मदद करने की कोशिश की पर नियत के आगे हम मजबूर थे । चाची माफ कर देना । विवेक और उसकी पत्नी भी पोजेटिव है । भगवान चाची को अपने श्री चरणों मे स्थान दे । ब,हुत जीवट महिला थी । पति के म्रत्यु के बाद बड़े ही साहस से व्यापार और बच्चों को संभाला था । नमन नमन ।