बिलासपुर । अरपा नदी से सिल्ट निकालने और बैराज निर्माण के बहाने कांग्रेस नेताओं की गुटीय राजनीति उफान पर आ गई है । नदी से सिल्ट निकालने के दौरान रेत की खुदाई को लेकर भी जमकर रार मच गई है ।इसी दौरान विधायक ने अधिकारियों पर बरसते हुए कह दिया कि अरपा पर 15साल से ज्यादती हो रही मगर अब बर्दाश्त नहीं होगा ।विधायक का इशारा पूर्ववर्ती भाजपा शासन काल की ओर था मगर विधायक अगर इस अवधि के रेत माफियाओं और उन्हे संरक्षण देने वालों के नाम भी स्पष्ट कर देते तो बेहतर होगा खैर यह विधायक की राजनैतिक विवशता हो सकती है मगर इस बात से सारा शहर वाकिफ है कि अरपा की बेतरतीब ढंग से छलनी करने वाले और उन्हे राजनैतिक संरक्षण देने वाले कौन लोग थे ।विधायक महोदय को यह जान लेना लाजिमी होगा कि उनका आरोप आधा अधूरा है ।
दरअसल अरपा नदी को छलनी करने का काम छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से पहले यानि अविभाजित मप्र की सरकार के दौरान से होता आ रहा है यह अलग बात है पूर्ववर्ती सरकार के 15 साल के दौरान नदी के साथ कुछ ज्यादा ही ज्यादती हुई ।पूर्व मंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट कहे जाने वाले “सिवरेज “प्रोजेक्ट जो आज तक पूरा नहीं हो सका ,के एजेंसी पर समय पर काम पूरा नहीं करने को लेकर भले ही समय समय पर कुछ हजार रुपए का जुर्माना किया जाता रहा मगर इसी कंपनी को पिछले दरवाजे से फायदा भी पहुंचाया जाता रहा और खुदाई के बाद शहर की सड़को को भरने के लिए अरपा से हजारों क्यूबिक मीटर रेत मुफ्त में निकालने की छूट दी गई ।कहा तो यह भी जाता है कि सिवरेज कंपनी वाली ट्रकें नदी से रेत लेकर सिवरेज खुदाई स्थल के अलावा एक बड़े बिल्डर के निर्माणाधीन कालोनी तक पहुंच कर खाली की जाती थी ।यह सब राजनैतिक संरक्षण के बिना संभव नहीं है । होना तो यह था कि सिवरेज कंपनी और उस स्थित बिल्डर से रेत की पूरी राशि वसूल की जाती क्योंकि सिवरेज खुदाई के अनुबंध में नदी से रेत फ्री में लेने का शायद ही उल्लेख हो ।करोड़ों रुपए की रेत मुफ्त में रेवड़ी की तरह बांट दी गई जबकि इस दौरान आम जनता को निजी निर्माण के लिए रेत काफी मंहगे और ब्लैक में खरीदनी पड़ती थी । यहां यह भी याद दिलाना लाजिमी है कि रेत का ठेका लेने राजनैतिक दलों के नेताओ की प्रतिस्पर्धा पहले भी थी और आज भी है ।अविभाजित मप्र के दौरान कांग्रेस भवन में मारपीट की घटना के पीछे रेत ठेका ही कारण था ।कांग्रेस भवन में मारपीट के चलते एक दुखद पहलू यह भी था कि एक युवा नेता ने मारपीट के विरोध में शहर में दुकानें बंद कराने की कोशिश की तो गुटीय राजनीति के चलते उसे पुलिस प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा और उसकी राजनीति ही समाप्त हो गई ।उस युवा नेता का स्वास्थ्य इतना खराब हुआ कि वह घर से बाहर ही नहीं निकल पाया और असमय ही उसकी मौत हो गई । अरपा से रेत निकाल कर जल्द से जल्द धनाढ्य बनने (कुछ बन भी गए)की अर्थलिप्सा इतनी ज्यादा कि 90 की दशक में रेत ठेका स्टेट्स बन गया था ।रेत की काला बाजारी से हलाकान जिला प्रशासन ने तब रेत की कीमत निर्धारित कर कलेक्ट्रेट में ही एक काउंटर बनवा कर यही से टोकन देने की व्यवस्था की थी ।यह टोकन आम आदमी भी ले जा सकता था।तब रेत ठेकेदारों के सिंडीकेट ने रेत परिवहन के लिए अपनी दरें निर्धारित कर दी थी ।उसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब रेत का पूरा कारोबार ग्राम पंचायतों को सौप दिया गया मगर रॉयल्टी पर्ची खनिज विभाग से लेना अनिवार्य कर दिया गया। राज्य निर्माण के बाद कालोनियों की बाढ़ सी आ गई।सैकड़ों की संख्या में बने और बन रहे कालोनियों के लिए रेत की जरूरत एक बड़ा व्यापार और कमाई का जरिया हो गया ।रेत परिवहन करने वालो वाहनों से आए दिन हो रही मौतों को देखते हुए वाहनों के आने जाने का समय तय किया गया ।रेत से कई सरपंच कहां से कहां पहुंच गए ।एक ही पर्ची का कई बार उपयोग कर और अवैध रेत उत्खनन को शह देकर अनेक सरपंच धन कुबेर बन गए । शहर के रेत ठेकेदार जिनमे राजनैतिक दलों के नेता ज्यादा है आज भी अपने प्रभावों के दम पर रेत से तेल निकालने में माहिर है और अरपा की छाती आज भी छलनी हो रही है ।