बिलासपुर । रेडी टू इट का संचालन करने वाले समूहो को लेकर इन दिनों भारी चर्चा है और चर्चा क्यों न हो क्योंकि समूहो को दिए जाने वाले खाद्य पदार्थ और बाजार से खरीदी जाने वाले खाद्य पदार्थ के बिलों को लेकर जो घालमेल होता है उसमें हर माह लंबा खेल होता है और यही वजह है कि रेडी टू इट का संचालन करने किस समूह को जिम्मेदारी दी जाए यह सुविधा शुल्क के वजन पर निर्भर करता है लेकिन नेताओं और अधिकारियों द्वारा तय समूह द्वारा हर माह विलिंग में घालमेल कर समूह प्राप्त करने के खर्च को समायोजित किया जाता है ।
बिलासपुर जिले में हर माह लगभग सवा करोड़ का बजट रेडी टू ईट के लिए मंजूर होता है मगर सवा करोड़ रुपए में वास्तव में कितना खर्च किया जाता है यह जांच का विषय है
महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा पुराने बिलासपुर जिले में 101 समूह को रेडी डू इट का काम दिया जाता रहा लेकिन गौरेला पेंड्रा मरवाही नया जिला बनने के बाद 30 समूह नए जिले में होने के बाद बिलासपुर जिले में अब 71 समूह है। अब जबकि बिलासपुर जिले में रेडी टू ईट का संचालन करने नए सिरे से समूहो को दायित्व दिया जाना है जिसके लिए यह चर्चा अब आम हो गई है कि जो समूह से 4 से 5 लाख रुपए खर्च करेंगे उसी को ही रेडी टू ईट का काम प्राप्त हो सकेगा अब समूहों से लाखों रुपए की डिमांड कौन कर रहा है यह भी किसी से छिपा नहीं है यदि कोई समूह लाखों रुपए खर्च कर रेडी टू ईट का काम प्राप्त करता है तो वह कितनी इमानदारी से गर्भवती शिशुवती तथा बच्चों को पौष्टिक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराएगा? रेडी टू ईट का संचालन करने व कराने में बड़ा खेल है और इसमें संगठित गिरोह काम कर रहा है ।विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी की इसमें सहमति और संलिप्तता ना हो यह कैसे संभव हो सकता है क्योंकि जिला कार्यक्रम अधिकारी ही यह तय करते हैं कि किस समूह को रेडी टू ईट का काम दिया जाए
क्या है रेडी टू इट
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दरअसल सरकार द्वारा गर्भवती और शिशुओं की महिलाएं तथा बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से रेडी टू ईट के माध्यम से महिला स्व सहायता समूहों को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है लेकिन इन समूहों में अप्रत्यक्ष रूप से जनप्रतिनिधियों और पार्टी कार्यकर्ताओं का दखल रहता है या यूं कहें कि राजनीतिक पार्टी के लोग ही अप्रत्यक्ष रूप से इन समूहों का संचालन करते हुए बड़ी कमाई करते हैं और इसमें जिले में बैठे महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों पर्यवेक्षकों और परियोजना अधिकारियों के साथ घालमेल रहता है।यह सब पूर्व वर्ती शासन के दौरान देखने को मिल चुका है और व्यवस्था आज भी कायम है उसमे कोई बदलाव नहीं दिख रहा ।
रेडी टू ईट कार्यक्रम में गर्भवती शिशु वती महिलाओं व बच्चों को पौष्टिक आहार शासन के द्वारा बनाए गए नियमों के तहत मिलता भी है या नहीं इसे देखने की किसी को भी फुर्सत नहीं है। पौष्टिक आहार में गुणवत्ता का भी निरीक्षण महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी करते भी हैं या नहीं इसमें भी संदेह है। रेडी टू इट चलाने वाले समूहो
को राज्य शासन द्वारागेहूं ₹2 किलो में प्रदाय किया जाता है एवं समूहों द्वारा बाजार से सोयाबीन ,चना, मूंगफली, रागी, शक्कर और तेल खरीदा जाता है तथा इन सब वस्तुओं को हर मंगलवार को प्रत्येक सेंटर में मिक्सिंग करने का काम किया जाता है नियम तो यह भी है कि इन सारे वस्तुओं को मिलाकर बनाए जाने वाले पौष्टिक आहार को जिस पॉलिथीन में रखा जाता है उसमें क्वालिटी की गारंटी सहित पेकिंग तिथि आदि का भी विवरण होता है लेकिन इस पॉलिथीन को हर सप्ताह तैयार करना होता है जानकारी के मुताबिक ज्यादातर सेंटरों में सिर्फ गेहूं और शक्कर मिलाकर मिक्सिंग कर पौष्टिक आहार बताकर गर्भवती, शिशुवती महिलाओं और बच्चों में वितरण किया जाता है ।शायद ही ऐसा कुछ सेंटर होगा जहां किसी समूह द्वारा इमानदारी पूर्वक शासन के निर्देशानुसार उन तमाम सामग्री का मिक्सिंग कर पौष्टिक आहार तैयार किया जाता हो । क्वालिटी के साथ समझौता यदि देखना है तो किसी भी सेंटर में पौष्टिक आहार के पॉलिथीन को जांच करके देखा जा सकता है हर सेंटर में महिलाओं और बच्चों की दर्ज संख्या के हिसाब से पौष्टिक आहार वितरण करना तो बताया जाता है लेकिन जरूरी नहीं है कि प्रत्येक सेंटर में शत प्रतिशत उपस्थिति हो। कई सेंटरों से तो पौष्टिक आहार के पॉलिथीन वापस भी कर दिए जाते हैं लेकिन बिल दर्ज संख्या का पूरा बनाया जाता है ।रेडी टू ईट के माध्यम से जिले में कितने बच्चों और कितनी गर्भवती और शिशु होती महिलाओं को पौष्टिक आहार सही में मिल पाता है यह तो पता नहीं लेकिन इसके माध्यम से अधिकांश समूह वाले और विभाग के अधिकारी पर्यवेक्षक परियोजना अधिकारी जरूर पौष्टिक आहार से लबालब हो गए हैं ।
आश्चर्य तो यह है कि एंटी करप्शन ब्यूरो वाले आज तक महिला एवं बाल विकास विभाग के किसी भी अधिकारी पर नजरें इनायत नहीं की है जबकि आर्थिक अनियमितता संबंधी गंभीर आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं ।अनुपात हीन संपत्ति अर्जित करने के आरोपों पर अभी तक एंटी करप्शन ब्यूरो के अधिकारी कभी ध्यान ही नहीं दिए अब जबकि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा अनुपात हीन संपत्ति के पुराने मामलों पर कार्रवाई की रिपोर्ट मंगाई जा रही है तो उम्मीद की जा सकती है कि महिला बाल विकास विभाग के उन धनकुबेर अधिकारियों पर भी एंटी करप्शन ब्यूरो के अधिकारियों का ध्यान जाएगा ।विभाग में तो यह चर्चा आम हो गई है कि सरकंडा जोन के 11 समूहों के लिए सुनियोजित ढंग से भाजपाई समर्थको के समूहों को ही रेडी टू इट का काम देने कथित रूप से सौदेबाजी की जा रही है ।इसमें पर्यवेक्षक ,परियोजना अधिकारी की भूमिका की जांच होनी चाहिए साथ ही इस तरह के आरोप न लगे इसके लिए अब नए समूहों को मौका मिलना चाहिए ।रेडी टू इट का जलवा जलाल और समूहों से कमाई की चर्चा सिर चढ़ कर बोल रहा है डी पी ओ की भूमिका को लेकर भी तरह तरह की चर्चाएं है ।