बिलासपुर । देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव के पहले भारी राजनैतिक उठापटक और घमासान चल रहा है खासकर केंद्र में बैठी भाजपा व नरेंद्र मोदी की सरकार अपनी पार्टी वाली काबिज राज्य सरकारों को दुबारा सत्ता में लाने एड़ी चोटी एक कर रही है था वो हर बदलाव करने में लग गई है जिससे सत्ता बची रहे और जिन राज्यों में सरकार नही है वहां दुबारा सत्ता प्राप्ति के लिए वो हर संभव कोशिश की जाएगी जो जरूरी है भले ही इसके लिए पार्टी के प्रमुख नेताओं को टिकट से वंचित क्यों न करना पड़े ।गुजरात का उदाहरण तो सबके सामने है।इसी की तर्ज पर और भी राज्यो में प्रयोग किया जाना लगभग तय माना जा रहा है । सभी राज्यों में चुनाव के समय में भाजपा एक बड़ी रणनीति पर काम करने वाली है। जिसके तहत मौजूदा विधायकों की जगह नए चेहरे ले लेंगे। छत्तीसगढ़ में भारी पराजय के लिए एक सबसे बड़ी वजह विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी थी जिसे नजरअंदाज कर दिया गया था।जिसका नतीजा 15 सालों से काबिज भाजपा सरकार और उनके नेताओ को राजनैतिक वनवास जाने के लिए विवश होना पड़ा ।पार्टी के नेताओ में दंभ और गुरुर इतना हावी हो गया था कि जनता के मन में क्या चल रहा है इसकी जरा सा भान उन्हे नही हो पाया और एक झटके में सत्ता से बेदखल हो गए यही नहीं विपक्ष में रहते हुए 3 साल बाद भी भाजपा नेताओं की सोच नही बदल पाई है ।यही कारण है कि पार्टी के शीर्ष नेता बड़े बदलाव के मूड में है ।
भाजपा संगठन की ओर से गुजरात और उत्तराखंड में मुख्यमंत्रियों को बदलने के बाद अब उन राज्यों में अपने आधे मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की योजना बना रहा है, जहां 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। दरअसल, ऐसा करके पार्टी सत्ता विरोधी लहर यानी एंटी इनकंबेंसी को कम करना चाहती है।
पिछले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने अपने 15 से 20 फीसदी विधायकों का टिकट काटा था। इस बार यह आंकड़ा काफी ज्यादा हो सकता है क्योंकि लोगों के मन में सरकार को लेकर रोष बढ़ा है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ‘कई राज्यों में बीजेपी ने जमीनी स्तर पर सर्वे कराए हैं ताकि जनता का मूंड भांप सके। विधायकों से भी कहा गया है कि वे बीते पांच सालों में किए अपने कामों का रिपोर्ट कार्ड सौंपे। जिसे पार्टी की अपनी तैयार की गई रिपोर्ट से मिलाकर भी देखा जाएगा। जिन विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा, उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा।
विधायकों का मूल्यांकन कुछ तय मानकों पर किया जाएगा, जैसें उन्होंने लोकल डेवलेपमेंट फंड का कितना इस्तेमाल किया, गरीबों के उत्थान के लिए कितनी परियोजनाएं चलाईं और महामारी के दौरान पार्टी की ओर से शरू की गई योजना ‘सेवा ही संगठन’ में कितना सहयोग किया। पार्टी ने सभी चुनावी क्षेत्रों में सर्वेक्षण कराए हैं, जहां लोगों से सरकार की परफॉर्मेंस को लेकर फीडबैक लिया गया है।
फिलहाल बीजेपी के लिए सत्ता विरोधी लहर को काटना ही सबसे बड़ी चुनौती है। पार्टी ने इसी वजह से विजय रुपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाया। इसके अलावा पूरे नए मंत्रिमंडल ने भी शपथ ली ताकि 2022 के अंत में होने वाले चुनावों से पहले पार्टी कैडर को पुनर्जीवित किया जा सके।
अलग-अलग कारणों से मौजूदा विधायकों की टिकट काटना पार्टी के लिए कोई नया नहीं है। उदाहरण के लिए राजस्थान में बीजेपी ने साल 2018 में 43 विधायकों के टिकट काटे थे, जिनमें 4 मंत्री थे। झारखंड में भी पार्टी ने दर्जनभर से ज्यादा विधायकों के टिकट काटे ताकि युवाओं के साथ ही महिलाओं और एससी/एसटी समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले चेहरों को शामिल किया जा सके।
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को मात्र 15 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। तीन बार शासन करने के बाद पार्टी के लिए इससे बुरी स्थिति कुछ भी नहीं थी। चिंतन, मंथन के बाद निकले निष्कर्ष से यह स्पष्ट हो गया कि जमीनी स्तर पर मंत्रियों और मौजूदा विधायकों के प्रति जबरदस्त आक्रोश है जिसे पूरी तरह से अनदेखा किया गया।
चुनाव परिणाम के बाद हुई कई समीक्षा बैठकों में भी कार्यकर्ताओं ने सीधे तौर पर यही आरोप लगाया था। जबकि छत्तीसगढ़ के साथ जिन राज्यों में चुनाव हुए वहां इतनी बुरी हार नहीं हुई। बल्कि मध्यप्रदेश में तो भाजपा कमबैक करने वाले आंकड़े तक पहुंच चुकी थी। और फिलहाल सत्ता में है।
बताया जा रहा है कि यदि यही पैटर्न काम कर गया तो आने वाले चुनाव में छत्तीसगढ़ में पुराने विधायक और मंत्रियों के स्थान पर तो नए चेहरे लाए ही जाएंगे साथ ही मौजूदा विधायकों को भी अपना परफार्मेंस साबित करना होगा। उल्लेखनीय है कि भाजपा संगठन की ओर से छत्तीसगढ़ प्रभारी नियुक्त होने के बाद डी पुरुंदेश्वरी ने स्पष्ट कहा था ‘किसी के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा जाएगा।’ 9 दिसंबर 2020 को अपने पहले प्रवास पर ही भाजपा छत्तीसगढ़ प्रभारी ने दो बातें साफ तौर पर कही थी ‘हमने विश्वास खोया है जिसे जीतना है।’ निश्चित ही भाजपा की इस रणनीति से अगला विधान सभा चुनाव काफी दिलचस्प होगा ।संभव है कांग्रेस भी टिकट वितरण में काफी बदलाव करे ताकि भाजपा की रणनीति का जवाब दिया जा सके ।यह तो जनता ही बताएगी कि किसकी रणनीति कारगर रही ।हालांकि काग्रेस में भी सिर फुटौवल गुटबाजी चल रही है ।