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November 21, 2024 6:49 pm

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अदभुत व्यक्तित्व के धनी ,साहसी ,दूरदर्शी ,राज नेता ,कठोर परिश्रमी व्यापारी और सबको प्रभावित कर लेने की क्षमता रखने वाले मूलचंद खंडेलवाल हमेशा के लिए हो गए अलविदा

सन 1935 के आसपास की बात है, उत्तरप्रदेश के मथुरा से चिरौंजीलाल खंडेलवाल आजीविका की तलाश में बिलासपुर आ गए। गोलबाजार में ‘कल्लामल बृजलाल’ के बृजलाल उनके साढ़ू थे जिनका मिठाई बेचने का व्यापार था। बृजलाल के पुत्र चिरौंजीलाल को मौसाजी कहते थे इसलिए चिरौंजीलाल ‘मौसाजी’ के नाम से पुकारे जाने लगे। वे चाट बनाने के विशेषज्ञ थे। शाम के वक्त सड़क के एक किनारे में अपना खोमचा जमाते थे और रात को नौ बजे तक अपना माल बेचकर गोंडपारा में स्थित दर्जी मंदिर के बगल वाले अपने घर चले जाते।

चिरौंजीलाल के चार लड़के थे, छेदीलाल, दशरथलाल, मूलचंद और लक्ष्मीप्रसाद। छेदीलाल जब बड़े हुए तो उन्होंने ‘इंद्रपुरी’ और दशरथलाल ने गोलबाजार के अंदर ‘मौसा जी मथुरा वाले’ नामक हलवाई की दूकानें शुरू की। इन दूकानों के खुलने के बाद चिरौंजीलाल ने चाट की दूकान लगाना बंद कर दिया और ‘रिटायरमेंट’ ले लिया। शहर में ‘इंद्रपुरी’ की लस्सी और ‘मौसा जी मथुरा वाले’ का दही-खटाई वाला समोसा बेहद लोकप्रिय था। ‘मौसा जी मथुरा वाले’ में मूलचंद अपने बड़े भाई के साथ दूकान में बैठते थे और कारखाने मे मिठाई-नमकीन बनाने का काम सीखते थे। मूलचंद ने म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ाई भी की थी लेकिन आठवीं कक्षा में उनके मास्टर ने उनकी ऐसी पिटाई की कि उनका स्कूल जाने से जी उचट गया और वे अपनी दूकान में ही व्यस्त हो गए। इस बीच गोलबाजार की एक दूकान श्यामलाल ने बेची जिसे मूलचंद के लिए खरीद लिया गया और वहाँ ‘नीलकमल’ नामक आधुनिक शैली की हलवाई-दूकान खुली।

मूलचंद खंडेलवाल साहसी और दूरदर्शी युवक थे। उन पर हर समय कुछ नया करने का जुनून हावी रहता था। उनकी बातचीत के लहज़े में बनारस का असर था, कहने का मतलब यह है कि उनका कोई भी वाक्य अपशब्दों के बिना पूरा नहीं होता था। माँ-बहन वाली गाली का उच्चारण वे शास्त्रीय संगीत की शैली में करते थे, अर्थात आरंभ के तीन शब्द ‘द्रुत’ में और शेष दो शब्द ‘विलंबित’ में।

मूलचंद का झुकाव भारतीय जनसंघ की ओर था। एक बार वे बाज़ार वार्ड से जनसंघ की टिकट पर चुनाव लड़े और अपने पड़ोसी हलवाई ‘कोहिनूर’ वाले नत्थूलाल केशरवानी को परास्त करके नगरपालिका के सदस्य बने। यहीं से उन्हें राजनीति का चस्का लग गया और वे ‘नीलकमल’ को कम और राजनीति को अधिक समय देने लगे। नीलकमल राजनीतिक चर्चा का अड्डा बन गया और जनसंघ के बड़े नेताओं से उनकी जान-पहचान विकसित होती गई। अटलबिहारी बाजपेयी, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी जैसे राष्ट्रीय और राज्य स्तर की हस्तियाँ मूलचंद के आदर्श कालोनी स्थित घर में मेहमान हुआ करते थे। मूलचंद और उनकी पत्नी देवकी उन सबका स्वागत-सत्कार अत्यंत आत्मीयता से करते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं जनता पार्टी के पदाधिकारियों को नीलकमल में रसमलाई, दही-खटाई वाली आलू भजिया और चाय निःशुल्क उपलब्ध थी।

मूलचंद अत्यंत सावधानी से अपने ‘होने’ को स्थापित कर रहे थे, परिणामस्वरूप उन्हें सन 1985 के मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए बिलासपुर शहर से भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी बनने का अवसर मिल गया। मूलचंद चुनाव हार गए लेकिन इसी पराजय से उनकी विजय पताका को हवा मिलने लगी।
यद्यपि मूलचंद एक बड़ी राजनीतिक गफलत कर चुके थे, आपातकाल के दौरान जब मूलचंद को मालूम हुआ कि जेलयात्रा का उनका भी मुहूर्त निकल चुका है तो वे सफ़ेद टोपी पहनकर गाजे-बाजे के साथ कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। यह समझना बेहद कठिन है कि वह कौन सा चमत्कार रहा होगा कि उस भयंकर भूल के बावजूद उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ने का टिकट दिया। यह सच है कि जेल की सजा भुगत कर आए अन्य नेता उनसे बहुत खखुवाए हुए थे। मूलचंद चुनाव हार गए तो भन्नाए हुए ‘मीसाबंदी’ मूलचंद के चयन पर उंगली उठाने लगे और मूलचंद अपने बचाव की कोई नई तरकीब खोजने में लग गए।

आम तौर पर चुनाव जीतने के बाद नेतागण अपने चुनाव क्षेत्र को भूल जाते हैं। केवल चुनाव लड़ने के समय ‘डोर-टू-डोर’ जाते है और जीतने या हारने के बाद उन्हें मतदाता के घर की ‘लोकेशन’ अगले चुनाव तक के लिए याद रखने की जरूरत नहीं रहती। मूलचंद ने हारने के बाद मतदाताओं के घर जाने का निर्णय लिया और घर-घर जाकर धन्यवाद दिया। यह बात सबको प्रभावित कर गई और जिसने उन्हें वोट नहीं दिया था, उसे भी मूलचंद का हारना अखर गया। धीरे-धीरे उनकी ख्याति इतनी बढ़ गई कि वे शहर के लिए अवतार जैसे हो गए और गली-गली में उनके नाम का डंका बजने लगा। उनके आलोचकों की घिग्घी बंध गई। पाँच साल बीत गए, सन 1990 में पुनः विधानसभा चुनाव घोषित हुए और मूलचंद को फिर से भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया गया।

इस बार बिलासपुर का मतदाता मूलचंद को जिताने के लिए उतारू था और उन्होंने कांग्रेस को परास्त कर किला फतह किया। संयोग से उस चुनाव के पश्चात प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और मूलचंद को पहली बार विधायक बनने के बावजूद बी॰आर॰यादव जैसे दिग्गज को हराने के पुरस्कार स्वरूप मंत्रिमंडल में जगह मिली, वह भी मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य का नागरिक आपूर्ति मंत्री !

क्या कोई कल्पना कर सकता था कि एक अल्पशिक्षित हलवाई अपने दृढ़संकल्प और दूरदृष्टि से ऐसी ऊंचाई तक पहुँचेगा ? मूलचंद खंडेलवाल बिलासपुर शहर की वह हस्ती बने जिसने यह साबित किया कि उसका ‘बेकग्राउंड’ कुछ भी हो, यदि मनुष्य में लगन हो और वह सही दिशा में प्रयत्न करे तो सब संभव है। 84 वर्षीय मूलचंद खंडेलवाल अपना पार्थिव शरीर प्रकृति को सौंप कर हम सब से बहुत दूर चले गए।

(विशाल खंडेलवाल के फेस बुक वाल से साभार )==========”””””””””””””””””””””””””””””””

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