बिलासपुर । दूसरे राज्यों में कमाने खाने के लिए इस साल पूरे जिले से 30000 से भी अधिक ग्रामीण पलायन किए हैं हालांकि यह जिला पंचायत द्वारा प्रदत आधिकारिक आंकड़ा है लेकिन वास्तविक आंकड़े दुगने भी हो सकते हैं ।पिछले दो कोरोना काल और लॉकडउन के कारण ट्रेनों के बंद होने और बसों के नहीं चलने के कारण घर वापस लौटने में श्रमिकों को जो तकलीफ झेलनी पड़ी थी उसे देखते हुए इस बार दूसरे राज्यों में गए श्रमिक लॉकडाउन की संभावना को देखते हुए घर वापसी शुरू हो गई है। जो मजदूर ट्रेन से आ रहे हैं उनका रेलवे स्टेशन में ही परीक्षण हो रहा है ।मुंगेली तथा अन्य जिले जहां ट्रेन की सुविधा नहीं है वहां के रहने वाले श्रमिक भी रेल के माध्यम से बिलासपुर स्टेशन में उतर रहे हैं ।अभी तक कितने सैनिकों की वापसी हो चुकी है इस बारे में अधिकारिक रूप से जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
उल्लेखनीय है कि दूसरे राज्यों में रोजी-रोटी की तलाश में पलायन करने वाले श्रमिकों के मामले में बिलासपुर जिला प्रमुख है अविभाजित बिलासपुर जिले के मस्तूरी विकासखंड अंतर्गत सर्वाधिक मजदूर पलायन करते हैं जिनकी संख्या हजारों में है ।सिर्फ मस्तूरी ब्लाक में 100 से भी अधिक पंजीकृत और अपंजीकृत लेबर ठेकेदार सक्रिय है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां से कितनी भारी संख्या में मजदूर पलायन करते है । इसी तरह बिल्हा तखतपुर मुंगेली पथरिया पामगढ़ शिवरीनारायण आदि क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में हर वर्ष मजदूर रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं श्रम विभाग इन की विस्तृत जानकारी नहीं रख पाता क्योंकि ग्राम पंचायत वार पलायन करने वाले श्रमिकों की जानकारी एकत्र कर जिला पंचायत को पूरी सूची भेज दी जाती है ।पिछले कुछ वर्षों से हालांकि पलायन करने वालों की संख्या कम हुई है लेकिन फसल अगर “सोलह आने “भी हो तब भी जिले के मजदूर खेती का समय खत्म हो जाने के बाद अतिरिक्त आमदनी के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश हिमाचल प्रदेश कश्मीर झारखंड महाराष्ट्र आदि राज्यों राज्यों में खासकर ईट भट्ठा में काम करने जाते हैं।
पिछले कई दशक से लगातार श्रमिकों के सपरिवार पलायन करने के कारण श्रमिक अब यह अच्छी तरह जान चुके हैं कि उन्हें कमाने खाने किस राज्य में जाना है और किस ठेकेदार के माध्यम से किस साधन से जाना है। यदि उन्हें पता होता है ठेकेदार स्थानीय भी होते हैं और उन राज्यों के भी होते हैं जो जहां वह काम करना चाहते हैं ।आजकल मोबाइल फोन के माध्यम से सारी बातें तय हो जाती है। ट्रेनों से और बसों में भरकर यह श्रमिक पलायन करते हैं और अपने साथ दो-तीन महीने का राशन भी लेकर चलते हैं हालांकि पंजीकृत पंजीकृत ठेकेदारों की संख्या भी बहुतायत है। जिन की शिकायतें लगातार प्रशासन को और श्रम विभाग को मिलती है ।पिछले दो लाक डाउन के दौरान बड़ी संख्या में जिले के श्रमिक विभिन्न राज्यों में फस चुके थे और बड़ी मुश्किल से उनकी घर वापसी हो सकी थी। कई मजदूरों की जानें भी गई थी। हर वर्ष दूसरे राज्यों के ईट भट्ठे में काम करने वाले मजदूरों को बंधक बनाए रखने की भी सूचना उन्हीं मजदूरों के किसी साथी द्वारा स्थानीय पुलिस और जिला प्रशासन को मिलता है। उसके आधार पर अनेकों बार यहां से पुलिस बल जाकर बंधक सैनिकों को शासकीय खर्चे पर छुड़ा कर यहां लाया जाता है ।इस बार कोरोना जिस तरह से पूरे देश में तेजी से बढ़ रहा है उससे लॉक डाउन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इस बात को भुक्तभोगी श्रमिक अच्छी तरह समझ रहे हैं और लॉकडाउन लगे और किसी प्रकार की परेशानी हो इसके पहले ही ज्यादातर श्रमिक घर वापसी के लिए तैयार बैठे हैं ।
ऐसे श्रमिकों का भी आना शुरू हो गया है जो अपने गांव घर में ही रह कर रोजी रोटी कमाने की मंशा रखते हैं। रेलवे स्टेशन में लंबी दूरी की ट्रेनों में आने वाले मरीजों के श्रमिकों के बारे में एंट्री के साथ ही जांच पड़ताल भी हो रही है संभावना यह है कि लॉकडाउन हो इसके पहले ज्यादातर श्रमिक घर वापसी कर सकते हैं। श्रम पदाधिकारी ज्योति शर्मा ने बताया कि जिले से पालन करने वाले और घर वापसी करने वाले श्रमिकों के बारे में विभाग में किसी भी प्रकार की एंट्री नहीं है क्योंकि अब श्रमिकों के आने जाने की पूरी जानकारी ग्राम पंचायत द्वारा रखी जाती है और ग्राम पंचायतों के सरपंच जनपद पंचायत को और जनपद पंचायत जिला पंचायत को भेजती है।