सड़कों पर विचरते मवेशी लावारिस नही ,मालिक खुद छोड़ते है
चारे का प्रबंध नही , माब लीचिंग के डर से तस्करी कम हो गई
खेतों में नई तकनीक के कारण बैलों के उपयोग पर असर पड़ा
दूध देने वाली गायों को भी उसके मालिक चारे के अभाव में खुला छोड़ देते है
बिलासपुर । सड़कों पर अस्त व्यस्त बैठे मवेशियों के कारण दुर्घटनाएं बढ़ रही है । ये मवेशी लावारिस नही है अपितु इनके मालिक हैं जो मवेशियों को जानबूझकर खुला छोड़ देते है और चारे की व्यवस्था करने से बच जाते है । मूक पशु दिन भर घूम घूम कर कुछ भी खाकर अपना पेट भरते है । माबलीचिंग के डर से पशुओं की तस्करी कम हो गई है अब तो मृत पशु को ले जाने वाले भी माब लीचिंग के डर से दहशत में है वही खेतों में आधुनिक उपकरण के उपयोग से भी बैलों का उपयोग कम होने लगा है जिसके चलते भारी भरकम चारे के खर्च से बचने पशु मालिक बैलों व बछड़ों को भी उनके हाल पर छोड़ देते है । ये कथित लावारिश मवेशी या तो मोहल्ले के घरों के सामने कुछ खाने की वस्तु मिलने की आस में डेरा डाले रहते है या शहर की सड़कों सब्जी बाजारों में घूम घूम कर अपना पेट भरते है । कई गायें तो अपने परिवार समेत विचरण करती है । इन मवेशियों के लिए कांजी हाउस न तो पर्याप्त जगह हैऔर न ही चारे का प्रबंध है ।गौठान योजना तो गांवों तक ही सीमित है । इस समस्या के मूल कारणों पर जाने के बाद ही निराकरण के लिए सार्थक प्रयास होने चाहिए ।
सड़कों पर आए दिन होने वाली दर्घटनाओं और उससे होने वाली मौतों के ज्यादातर कारण सड़को पर बैठे या विचरण करने वाले मवेशी ही होते है । लोग मुख्य सड़कों पर मवेशी होने को लेकर हो हल्ला मचाते है स्थानीय निकायो का अमला ऐसे मवेशियों को कभी कभार काउकेचर में डाल कांजी हाउस पहुचा देते है मगर समस्या यह है कि वहाँ भी कितने दिन रखें वहां जगह की कमी के साथ ही चारे की पर्याप्त व्यवस्था करना भी कम चुनौती का काम नही है ।
नगरीय निकायों द्वारा कांजी हाउस में बंद मवेशियों को ले जाने जब मालिक आता है तो उनसे मिलने वाले जुर्माने की राशि से चारे की व्यवस्था की जाती है ।
पिछले कुछ वर्षों में लावारिस मवेशियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है इसके बदलते परिवेश में नए नए कारण हो गए है । एक तो मवेशी तस्करी के आरोप में भीड़ द्वारा पिटाई और मौत तक हो जाने की घटनाओं से मवेशी का व्यवसाय करने वाले लोग दहशत में है और धंधे को कम कर दिए है । वही गांवों और खेतों तथा घरों में मृत पशुओं को लेजाने और चमडे का धंधा करने वाले भी अब माब लीचिंग की धटनाओं से डरने लगे है ।
इसी तरह दूध के लिए घरों में गाय पालने वाले भी ज्यादातर लोग गायों के दूध कम हो जाने पर चारे में खर्च की कटौती कर गायों व उसके साथ बछड़े को भी खुला छोड़ देते है ताकि वहकही पर भी अपना पेट भर सके । गायों के प्रति भावनात्मक लगाव वाले परिवार ऐसे मवेशियों को रोज घर का बचा खुचा खाने दे देते है और मवेशी भी रोज बिना नांगा ऐसे घरों में पहुंचने लगते है मगर शाम को ये मवेशी अपने मालिको के घर पहुंच जाते है ।
सड़कों और मुख्य मार्गो में विचरण करने वाले मवेशियों के कोई मालिक नही होते और 24 घण्टे वे सड़को तथा बाजारों में घूम घूम कर अपना पेट भरते है । यह भी उल्लेखनीय है कि मवेशी भी साफ सुथरा जगह पसन्द करते है और इसीलिए वे खेत खार और गन्दगी में रहने के बजाय साफ सुथरी सड़को पर ही बैठे रहना पसंद करते है
राज्य सरकार की गौठान योजना फिलहाल गांवों तक ही सीमित है जबकि मवेशियों की सर्वाधिक समस्या शहरों में है । इस लिए इन मवेशियों की मूल समस्या पर ध्यान केंद्रित कर शहरों के लिए ऐसी योजना बनाने की जरूरत है जिससे लावारिस मवेशियों को एक निश्चित स्थान पर रख उनके लिए चारे पानी की स्थायी व्यवस्था भी हो इस काम को सेवाभावी संस्थाओं को सौंपा जा सकता है मगर नियंत्रण प्रशासन का हो । जिससे शहरों में विचरण करने वाले मवेशियों को भी लाभ हो और जनता को इस समस्या से निजात मिल सके ।