अरुण दीक्षित
दिन गुरुवार..तारीख 15 सितंबर..साल 2022..स्थान..वह गोल इमारत जहां जनता के सुख दुख पर विचार और चर्चा होती है! उसके लिए कानून बनते हैं!उसके हित को लेकर बड़े बड़े दावे किए जाते हैं! आम तौर पर ऐसा होता भी है।
लेकिन आज इस गोलाकार विशाल कक्ष का नजारा कुछ और था।विपक्ष के एक विधायक अध्यक्ष के आसन के आगे कूद रहे थे।जोर जोर से चीख रहे थे।उन्हें इतना गुस्सा आ रहा था कि उन्होंने भरे सदन में अपने कपड़े फाड़ लिए।
उनके दल के कुछ विधायक उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे थे।लेकिन वे उनके काबू में नहीं आ रहे थे।विपक्ष के नेता ने भी उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे किसी की भी सुनने को तैयार नहीं थे।
उधर दूसरी ओर भी कुछ ऐसा ही नजारा था।एक भगवाधारी माननीय अध्यक्ष की कुर्सी के आगे 90 डिग्री के कोण पर झुके हुए थे।वे कभी दोनों हाथ ऊपर करके खड़े हो जाते तो कभी आसंदी की तरफ हाथ जोड़ कर। वे कभी झुकते कभी सीधे होते।इस बीच उनका साथ देने सत्ता पक्ष के कुछ विधायक भी गर्भगृह में पहुंच गए।
अध्यक्ष महोदय लगातार सदन में शांति बहाली की अपील कर रहे थे।लेकिन उनकी आवाज सुनी ही नही जा रही थी।
इस बीच विपक्ष के कुछ अन्य विधायक भी, अपने कपड़े फ़ाड़ कर चिल्ला रहे, अपने साथी के साथ जोर जोर से चिल्लाने लगे।इस बीच नारा उछला – आदिवासियों के सम्मान में कांग्रेस मैदान में!इस नारे के साथ गर्भगृह के एक तरफ विधायकों की संख्या बढ़ गई।उनकी आवाज भी बुलंद हो गई।
जवाब में सत्तापक्ष के कुछ और विधायक भी गर्भगृह के दूसरे हिस्से में पहुंच गए!
नारे बदल गए।शोर बढ़ गया।साथ में जोश भी बढ़ा।हालांकि सुनाई कुछ नही पड़ रहा था।लेकिन यह दिखाई दे रहा था कि दोनों पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
इसी बीच सत्ता के पाले से एक “संकेत” हवा में उछलता दिखाई दिया! उधर विधानसभा अध्यक्ष ने शांति बहाली का अनुरोध छोड़ सदन का विधाई कार्य निपटाना शुरू कर दिया।हंगामे के बीच विधेयक पेश होते गए। उन पर चर्चा भी होती गई।और “हां की जीत” के साथ विधेयक पारित होते गए!इस हंगामे के बीच लगभग 15 विधेयक विधानसभा में पारित हो गए।
हवा में संकेत उछलते गए।कार्यवाही आगे बढ़ती गई।अनुपूरक बजट भी पारित हो गया।और जरूरी सरकारी काम भी निपट गए।करीब 50 मिनट में तीन दिन का विधाई कामकाज निपट गया।इसके साथ ही सदन की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गई। न कोई बहस कोई चर्चा, न कोई सवाल और न ही कोई जवाब!सरकार का काम निपट गया।
बाद में पता चला कि बुधवार को जिन कांग्रेसी विधायक पांची लाला मेढ़ा ने यह आरोप लगाया था कि सुरक्षा कर्मियों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया है,वे आज अपनी जान की सुरक्षा की गुहार कर रहे थे।उनके मुताबिक उनको भाजपा के विधायक उमाकांत शर्मा से जान का खतरा है।यह अलग बात है कि बुधवार को सदन में मेढ़ा के हाथ शर्मा के गिरेबान तक पहुंच गए थे।चूंकि पांची लाल आदिवासी हैं इसलिए उनके साथ आदिवासी समाज का सम्मान जुड़ गया।
उधर उमाकांत शर्मा भी पांची लाल मेढ़ा से खुद को जान का खतरा बताते हुए अध्यक्ष के सामने सजदा कर रहे थे। बुधवार को भले ही उन्हें अपने साथियों का साथ नही मिला लेकिन गुरुवार को सबने उनका साथ दिया।
उधर सरकार खुश थी! मेढ़ा और शर्मा दोनों ही उसके “संकट मोचक” बन गए।उन्होंने अपनी अपनी “जान की गुहार” लगा कर सरकार सब संकटों से बचा लिया।उसके सभी विधेयक बिना चर्चा पास हो गए।बहुचर्चित पोषण आहार घोटाले पर चर्चा कराने की विपक्ष की मांग भी हंगामे के बीच दब गई।मुख्यमंत्री अपना वक्तव्य देकर मुक्त हो गए।
मेढ़ा और शर्मा ने बड़े “नैतिक संकट” से सरकार को बचा लिया।(हालांकि नैतिकता अब लुप्त हो चुकी है)जनता के लिए बन रहे कानून पारित हो गए।जनता के “सेवक” उन पर बात करने के बजाय नारों की उत्तेजना का आनंद लेते रहे।सबका काम भी हो गया और सब “बच” भी गए!अब अगले सत्र तक की छुट्टी!
आखिर अपना एमपी गजब जो है।