बिलासपुर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आरक्षण के सम्बंध में लिए गए निर्णय से खफा होकर उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका पर आज मुख्यन्यायाधिपति रामचंद्रन मेमन एवम जस्टिस पी. के. साहू के युगल पीठ पर सुनवाई हुई . याचिकाकर्ता श्री पुनेश्वर नाथ मिश्रा पुष्पा पांडेय, स्नेहिल दुबे, सौरभ बनाफर,शुभम तिवारी, सजंय तिवारी के अधिवक्ता श्री रोहित शर्मा ने कहा कि वर्ष 2012 से लेकर 2018 तक के राज्य सेवा परीक्षा में ओबीसी वर्ग का अनारक्षित वर्ग के सीट से चयन हमेशा से अधिक है इस दृष्टि से यह नही कहा जा सकता कि उनका प्रतिनिधित्व कम है..इसके साथ ही 2012 से 2018 तक के राज्य सेवा परीक्षा में चयन सुचियो को जिसमे बताया गया है कि कितने प्रतिशत ओबीसी वर्ग सामान्य वर्ग के लोगो का सीट ले जाते है पेश किया।
सरकार द्वारा दिये गए रिप्लाय में केंद्र का डाटा देकर यह बताया जा रहा था कि इतने प्रतिशत लोग पिछड़े है इसके जवाब में श्री शर्मा ने कहा कि यह राज्य के संदर्भ के डाटा नही है यह केंद्र स्तर का डाटा है जबकि यहां बात स्टेट के मेटर पर हो रही है। साथ ही सरकार के अधिकवक्ताओ ने महाजन कमेटी RBI की रिपार्ट आदि के माध्यम से 82% आरक्षण को सही बताने का तर्क प्रस्तुत किया..उंसके जवाब में श्री रोहित शर्मा ने कहा कि जिस महाजन कमिटी की बात सरकार कर रही है उस रिपोर्ट में स्वयम महाजन कमेटी की अनुशंषा है कि 20 वर्ष बाद उसके दिए रिपोर्ट की वैधता समाप्त हो जाएगी और इस आधार पर 2010 में इसकी वैधता समाप्त हो चुकी है .. सरकार इस अनुशंषा को पेश कर रही जो कि हस्ययस्पद है..आरक्षण की सीमा किसी भी स्तर से यदि 50% से अधिक होती है तो यह संविधान के उन मूल भावनाओ के खिलाफ है। साथ ही संविधान निर्माताओं के जो इस पर डिबेट हुए उन सबमे समता के अधिकारों की बात लिखी हुई है जो संविधान में निहित है जबकि 82% से एक वर्ग को इस अधिकार से वंचित कर समाज मे पुनः विभेद लाने की राजनीतिक साजिस की जा रही है।
याचिकाकर्ता श्री पुनेश्वर नाथ मिश्रा ने बताया कि उच्च न्यायालय से न्याय की उम्मीद है.. अंततः माननीय उच्च न्यायालय ने सभी पक्षों को सुनते हुए,अंतरिम राहत पर फैसला सुरक्षित रखा है!जल्द ही उच्च न्यायालय जी ओर से सकारात्मक न्याय की उमीद है।
गौरतलब है कि इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार ने दिल्ली से अधिवक्ता आमंत्रित किया है. जो इस मामले में सरकार का पक्ष रख रहे है…