अरुण दीक्षित
लंबे समय बाद कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में अपनी एकजुटता दिखाने की कोशिश की!उसने भोपाल में बीजेपी सरकार के खिलाफ अपना शक्ति प्रदर्शन किया!इसे एक अच्छा संकेत माना जा सकता है!लेकिन मूल सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस बीजेपी की बनाई पिच पर ही क्यों खेल रही है!देश की सबसे पुरानी पार्टी वही सब क्यों करना चाहती है जो बीजेपी करती आ रही है और करती रहेगी!सवाल यह भी है कि जो बातें राज्य की जनता को परेशान कर रही हैं उन्हें कांग्रेस मुद्दा क्यों नही बना पा रही है!
इन सवालों पर बात करने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं।1993 से 2003 तक राज करने के बाद कांग्रेस की जड़ें ऐसी उखड़ी कि उन्हें जमाने में उसे पूरे 15 साल लग गए।लेकिन 15 साल की मेहनत 15 महीने में मिट्टी में मिल गई!कांग्रेस टूटी या तोड़ी गई!बीजेपी चोर दरवाजे से फिर सत्तासीन हो गई।अब हालत यह है कि कांग्रेस वही सब कुछ कर रही है जो बीजेपी करती आ रही है।
2003 में जब बीजेपी जीती थी तो उसने प्रदेश में ऐसा माहौल बनाया था कि जैसे कांग्रेस से ज्यादा भ्रष्ट कोई दल नही है!उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर इतनी ताकत से आरोप लगाए थे कि वे भी उसका मुकाबला नही कर सके।कांग्रेस की जितनी बुरी हार 2003 में हुई थी उतनी तो आपातकाल के बाद भी नही हुई थी।दिग्विजय सिंह इतने बदनाम हुए कि उनका नाम ही मिस्टर बंटाधार हो गया।सालों तक वे बीजेपी के साथ साथ अपनों के निशाने पर भी रहे!शायद आज भी हैं।लेकिन यह भी सच है कि तब बीजेपी की चुनाव कमान संभाल रही उमा भारती आज तक उन आरोपों का कोई प्रमाण अदालत में नही दे पाई हैं जो उन्होंने किताब छापकर लगाए थे।दिग्विजय ने उमा पर मानहानि का मुकदमा किया था।यह मुकदमा आज भी अदालत में है।उमा खुलेआम कह रही हैं कि उन्होंने वे आरोप तबके बीजेपी नेताओं के कहने पर लगाए थे।अब सबूत कहां से लाएं!वह कई बार यह संकेत दे चुकी हैं कि वे खेद व्यक्त करने को तैयार हैं।लेकिन दिग्विजय चाहते हैं कि उमा उस माफीनामे पर दस्तखत करें जो उनका लिखा हो।मतलब जो दिग्विजय चाहें वही उमा कहें।लेकिन अभी तक उमा इसके लिए तैयार नहीं हैं।इसी वजह से मुकदमा अदालत में चल रहा है।
बीजेपी अभी भी इसी तरह का आक्रामक हमला कांग्रेस पर कर रही है।खासतौर पर 2014 के बाद बीजेपी कांग्रेस पर पूरी ताकत से हमला कर रही है।यह हमला देश व्यापी है।इस हमले का उत्तर देने में कांग्रेस अभी तक सक्षम नही हो पाई है।इसके लिए किसी हद तक वह खुद जिम्मेदार है।
एक जमाने में “पार्टी विद डिफरेंस” होने का दावा करने वाली बीजेपी ने पिछले सालों में अपने ही नारे की परिभाषा बदल दी है।एक जमाने में जिस पार्टी के नेता ने सिर्फ एक वोट की वजह से प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी वही पार्टी आज सिर्फ एक – दो वोट के सहारे राज्यों में सरकारें चला रही है।सत्ता के लिए उसने सभी “परिभाषाएं” बदल दी हैं।वह जो कर रही है वह पहले देश में शायद कभी नही हुआ था।
नब्बे के दशक से कांग्रेस में जो कमजोरियां आना शुरू हुई वे कम होने की बजाय बढ़ती ही रही हैं।कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व लगातार कमजोर हुआ है।यह क्रम आज भी जारी है।उसके बड़े बड़े नेता पार्टी छोड़ बीजेपी में जा चुके हैं।जो पार्टी में हैं,वे भी उसे मजबूत करने की बजाय कमजोर करने का खेल खेल रहे हैं।कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब,असम,महाराष्ट्र,गुजरात,बिहार आदि राज्यों में उसके नेताओं ने सत्ता के लालच में घर बदले हैं।आज भी यह क्रम जारी है।नेतृत्व अपना घर संभालने में अक्षम साबित हो चुका है।आज भी उसकी ओर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है जिससे यह लगे कि कांग्रेस को बचाने और उसे वापस पटरी पर लाने की गंभीर कोशिश की जा रही है।इसकी कई वजहें हो सकती हैं।लेकिन इतना साफ है कि किसी भी स्तर पर कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा रहा है।
जहां तक मध्यप्रदेश का सवाल है,कांग्रेस पूरी तरह बीजेपी की पिच पर खेल रही है।उसे सत्ता से बाहर हुए बीस साल होने को हैं।बीच में किसी तरह मौका मिला लेकिन वह भी देखते देखते छिन गया।राजनीति के धुरंधर होने का दावा करने वाले दिग्गज नेता भी खुद को बचा नही पाए!