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November 21, 2024 8:36 pm

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आगे अकती तिहार” “भगती ले भाँवर पार” “महाप्रभु परशुराम जयंती”पर भाषाविद/साहित्यकार डा.पालेश्वर प्रसाद शर्मा का पढ़ें छत्तीसगढ़ी में यह आलेख

आगे अकती तिहार” “भगती ले भाँवर पार ”                 “महाप्रभु परशुराम जयंती”

महाप्रभु बिस्नु के दस म छह गिनती के आवेश अवतार ए भगवान परसुराम । फरसा नाम के हथियार धरे रहय तेकर कारन परसुराम नाँव जग जाहिर होगे । वइसे महारिसि जमदग्नि के सपूत अउ रेणुका माता के इहाँ अवतरे रहिस। मद में बूड़े सहस्रार्जुन र्कावीर्य के वध करे रहिस। अकती तीज के तिथि म बैसाख अंजोरी पाख के तीज के दिन जयी मनाथे ।

ए पुन्न परब म प्रपादान – जलदान – पौंसरा- पौंसला देहे ले भारी पुन्न मिलथे एकरे बर ए दिन करसी, छाता, चापल, सेनुआ, कुरकुरहाककड़ी के प्रसाद बाँटथें ए दिन के दान अक्छय होथे। चैत म भगवान राम, बैसाख म भगवान परसुराम के अवतार होय रहिस वो दिन आँखी मूँद के मुहू देखे के बिना बिहाव करथें । लइका बाबू, नोनी मन पुतरा – पुतरी के बिहाव करथें । जहाँ वोमन गौ माता, साधू संत ऊपर अइताचार होही मद में घमंड में बूड़े राजा राठी, सेनापति गाँव के बेटी बहू ऊपर खराब नजर डारही, उनला उढ़ार के उनकर सील भंग करही जंगल खार म तपस्या करैया तपसी मन साधू मन ला दुख देहीं त अइसन राक्छस, दैत्य, दानव मन ला मारे बर कोनो न कोनो भगवान, वीर, सूर आबे करही ।

हमर पुरान म तीन राम होईन दसरथ के बेटवा सिरीराम, जमदग्नि रिसि के बेटवा भार्गव राम अउ तीसर यदुवंसी राम होय हैं, जम्मों नरायन ऐं, नरोत्तम ऍ कोनो मर्जादा पुरुसोत्तम, कोनो सौर्य पुरुसोत्तम, कोनो लीला पुरुसोत्तम हैं ।

दुस्ट दानव के कोनो नाव जात नो हे वोकर अइत्ताचार वोला दानव बना देथे, वोकर दू रस, हजार भुजा होवय परभु काटे बिन नई रहय ।

भगवान के महा आरती करके ककड़ी के परसाद बाँटय, दही, चाँउर, पानी भरे करसी, छाता, जूता या हरपा या चप्पल दान खचित करय। वो दिन पुरखा मन तरपन करय, कोनो पबरित कर्मकांडी पंडित ल भर पेट खवावय ये ई अकती तिहार ए । आज पहार, डोंगरी दर्रा नाहक के बैरी मन नोनी बेटी बहू ऊपर अइताचार करत हैं, लूट खसोट, खून खच्चर करैया मन बर आज परसुराम साहीं अवतार के बिनती है। ये रक्सा, दानव ल कोन रोकही ? आज परसुराम के पूजा बल, भरोसा देथे ।

पुन्न के काम

बैसाख सुदी तीज अक्षय तृतीया अकती आखत तीज जब्बर वीर भगवान परसुराम के जयंती रथे । भार्गव रिसि जगदग्नि- रेणुका के राम-परशु-फरसा – तब्बल धरे रहे के कारन परसुराम नांव ले प्रसिद्ध हो गये हे परसुराम म बरम तेज अउ छत्रिय तेज दुनो के विचित्तर संजोग रहिस हे । भगवान परसुराम रिसि-मुनी के आसरम म लूट-खसोट मनाये, साधू-संत के गरूआ-बछरू ल बरपेली लूट के ले जाये, गरीब जनता ल मारे-पीटे अउ बेटी-बहू ल उढ़ार लै, जबरन अपन काम- वासना के कार बल-अत्याचार करके हुरमत ल लूटय अइसना अइताचारी, रक्सा, ढसेर डांगर कस कातिक के कुकुर कस चरित्तर हावय तेकर कोनो जात नई होवय उनला मारना – वध करना जरूरी होथे । नोनी बेटी ल जो बिगारथे वोहर कोनो होवय रावन सहस्रार्जुन होवय वोकर वध कर बने पुन्न के काम ए वो मा बांमन ठाकुर नई लागय ।

हमर देस म जतका महापुरूस, मुनी, गियानी, साधू, संत हावयतेला सब्बो मनखे अपन गाँव, अपन जात, अपन मासा के कवि, साधू, संत बना लेथें । विद्यापति ल बंगाल के मिथिला के अउ हिन्दी के मनखे अपन अपन भासा के कवि कहियें। वइसनहे बाली द्वीप के मनखे राम ल अपन महापुरूस मानर्थे । भगवान परसुराम ल समरकंद में जनमे हे कहियें। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिला के देवगढ़ म रेणु नदिया तीर जमदग्नि मुनी के आसरम रहिस, उहें नदिया म गंधर्व मन के भोग-बिलास देखत माता रेणुका पानी लाय बर बिलम गये रहिस। मुनी क्रोध के मारे अपन बेटवा मन ला माँ के मूड़ काटे के आज्ञा दे डारिस । फेर परसुराम के छाँड़े कोनो बेटवा बाप के आज्ञा ल नई मानिन ।

जब परसुराम महतारी सहित भाई मन के मूड़ काट डारिस त वोकर पिता जमदग्नि मुनी के रिस ह खुसी म बलद गे । अपन बेटवा परसुराम ल ददा ह वरदान माँगे बर कहिस। त परसुराम कम चतुरा नई रहिस – अपन दाई भाई के जी बर जिंदगी जिनगानी मांग लेइस फेर का दाई – भाई जी गईंन, अऊ पुरौनी म दिग्विजय के वरदान ब्लाय मिलगे । जब भार्गव राम तप करे बर गईस, त हय हय बंस – मंगला के राजा सहसबाहु – हजार भुजा के वीर राजा भार्गव मुनी जमदग्न के आसरम आईस । मुनी हर राजा के आदर-सत्कार कामधेनु के किरपा ले बने करिस, त राजा ल कामधेनु ले के लोग समागे – कामधेनु नई पाई त आसरम म मारपीट – अत्याचार करके गरुवा लूट ले गईस ।

ले सहसबाहु T परसुराम साच्छात् सिव-संकर के चेला शिव के परसाद पिनाक धनुस पाये रहिस फरसा के हजार भुजा ल काट- बोंग के धर देईस त दुसरावन सहसबाहु के बेटवा मन बलदा हे बर जमदग्नि मुनी ला मार डारिन । कर्थे महतारी रेणुका इक्कीस बार एक आगर एक कोरी घँ अपन छाती ल पीट पीट के रोये रहिस त परचंड बरबड उछाये परसुराम किंदर किंदर के अत्याचारी अन्यायी आततायी मन ला मार मार के अकैसी पुरो डारिस राजा ल मारय, फेर वोकर राज ल दान कर देवय अइसनहा रहिस भगवान परसुराम ।

अखण्ड बरमचारी अकती के बर-बिहाव म बर – कहना ल अखण्ड सोहाग सुख के असीस देथे एकरे बर हमर देस म अकती बिहाव के सबसे सुग्घर बड़का सुभ लगन हावय। जलदान

फलदान के पुन्न परब आय – पानी भर के करसी, घड़ा, छाता, जूता, ककड़ी, सेतुआ दान करके सदाचारी विप्र, संत, पंडित ल पेट भर भोजन कराके दान दच्छिना देहे के सुंदर-सुभ तिहार ए। बाबा-बैरागी मन गिरहस्थी बर कुँवारी सस्ठी देवी- छेवारी- अउ लड़का के कइलान करथें आज देस भर म विदेसी, अत्याचारी मन गरीब, गऊ जनता ल मारत हैं तब कोनो परसुराम अवतरही भगवान जानत हैं …..?

मोर चलनिस त पूरा देस में सैनिक सिच्छा ल कॉलेज अउ विस्व विद्यालय में पढ़ाई संग जरूरी कर देतेंव । कोनो बी.ए., बी.एस.सी. पास जवान टूरा टूरी तीन महीना के सैनिक सिच्छा लेति । एक जवान पढ़े लिखे हर नक्सलवाड़ी के खून खच्चर ले अच्छा बहँचाव कर लेथे। हमर सब्ब देवी-देवता हथियार, के बिना काबर नई एँ ? जंगल-डोंगरी के टांगीनाथ परसुराम के बनगइहाँ रूप । सब मनखे मन ला अपन पूजा खंड म खांड़ा, फरसा थप के रखना चाही। पहटिया के टेपना, मर्दनिया के सजवा के छुरा, अउ आदिवासी के खांध म टांगा, टंगली, तब्बल, तबली, फरसा -फरसी रच्छक ए, सान ए, बल ए, एकरे कार धनुस राम, नांगर राम, परसुराम सबके पूजा होथे ।

                 डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा

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