दुर्ग.. छत्तीसगढ़ एवम छत्तीसगढ़ी साहित्य समुदाय के गौरव शाली आदर्श स्मृति शेष डा. पालेश्वर प्रसाद जी शर्मा की 95 वे अवतरण दिवस की पूर्व संध्या में श्री अरुण वोरा विधायक दुर्ग के मुख्य आतिथ्य, नेतराम अग्रवाल वरिष्ठ समाजसेवी के विशिष्ठ आतिथ्य एवम श्रीमती सरला शर्मा साहित्यकार की अध्यक्षता मे सदभावना विचार एवम् काव्य गोष्ठी संपन्न हुआ।
कार्यक्रम संयोजक राजीव अग्रवाल ने कार्यक्रम मे उपस्थित अतिथियों का स्वागत करते हुए साहित्यकारों से आग्रह किया कि वे अपनी लेखनी में “डा पालेश्वर शर्मा व्यक्ति से व्यक्तित्व तक के” सफर को एवम “विवाह बढ़ती उम्र बिखरते रिश्ते” विषय पर अपनी लेखनी की दिशा तेज करें।
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यूं ही ..
रात जागा पाखी बैठा है . ..कुछ सोच रहा है …
डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा जयंती पर सद्भावना संस्था और दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति दुर्ग के संयुक्त तत्वावधान में विचार गोष्ठी के साथ कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया । रायपुर , राजनांदगांव , बिलासपुर , दुर्ग के साहित्यानुरागी जन सम्मिलित हुए ।
डॉ. अभिलाषा शर्मा ने कहा डॉ . पालेश्वर प्रसाद शर्मा ने कर्म जीवन का आरंभ अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में किया , पांच साल बाद सी.एम. डी. कॉलेज में हिंदी प्राध्यापक नियुक्त हुए ।
छत्तीसगढ़ी की चिंता सताने लगी तो छत्तीसगढ़ के जन जीवन और कृषि कर्म पर शोध कार्य किये । कलम चलती रही तो छत्तीसगढ़ी , हिंदी दोनों भाषाओं में लिखते रहे किन्तु छत्तीसगढ़ की ऋषि संस्कृति और कृषि संस्कृति की उपासना आजीवन करते रहे ।
प्रियंका देवांगन ने उनकी दो नारी प्रधान कृतियों को याद किया पहली “सुसक झन कुररी सुरता ले ” छत्तीसगढ़ी और “तिरिया जनम झनि देय ” हिंदी ..इन दोनों कहानी संग्रह की मुख्य विशेषता है कि पुरुष देहधारी डॉ . पालेश्वर प्रसाद शर्मा में स्थित नारी हृदय के मनोभावों को , व्यथा को , असीम धैर्य को , अदम्य साहस को शब्द मिले हैं । अंतर्मन में गूंजती करुणा कलित रागिनी ने नारी को जीवन संघर्ष में अपराजिता ही सिद्ध किया है । घठौधा , लीलागर , सुन्ना मंदिर , अवगुन चित न धरो ,
नांव के नेह मं कहानियों का कथानक पाठक को अभिभूत करता है , कर्म प्रधान जीवन जीने की प्रेरणा देता है ।
मुख्य अतिथि श्री अरुण वोरा ने कहा गुड़ी के गोठ आजादी के पहले और बाद की सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक विसंगतियों का दर्पण है जहां लेखक की कलम कभी तलवार , कभी नश्तर बन गई है , भाषा व्यंग का दामन थामती है तो कहीं विपन्न कामगारों की व्यथा को व्यक्त करती गद्यगीत बन जाती है । हिंदी , छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं के सिद्धहस्त साहित्यकार थे डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा ।
पाखी सोच रहा है संस्कृत , अंग्रेजी , हिंदी , उर्दू , छत्तीसगढ़ी साहित्य का कितना गहन अध्ययन किया था डॉ . शर्मा ने ?
उनकी कक्षा में कभी तुलसी दास उतर आते थे तो प्रसाद के आंसू भी तो बरस जाते थे । रामचन्द्र शुक्ल के निबंध तब हमें कुछ सहज लगने लगते थे । उनकी कृति नमोस्तुते महामाये को पढ़कर जान पाई , शक्ति के स्वरूप को , समझ पाई पौरुष शक्ति के बिना अपूर्ण है । ” सुरुज साखी है ” के ललित निबंन्धों को पढ़कर विद्या निवास मिश्र याद आये । ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा की कृतियों का श्रृंगार है ।
समाज के पिछड़े वर्ग की व्यथा उन्हें कातर करती है , शोषकों के प्रति आक्रोश फूट पड़ता है गुड़ी के गोठ में …बहुआयामी लेखन था उनका ..। छत्तीसगढ़ की माटी की सोंधी सुंगध , लोक मान्यताओं की महक , जन संस्कृति का अभिराम सौंदर्य उनकी रचनाओं में बगर , पसर गया है ।
अखंड भारत का सपना देखते हुए भी क्षण भर के लिए भी अपनी जन्मभूमि छत्तीसगढ़ को बिसराते नहीं तभी तो कहते हैं ” छत्तीसगढ़ मोर जियत भर के मोर जनम भूमि , करम भूमि अउ सांस सिराये के बाद मरण भूमि आय । ”
समय सीमा का ध्यान तो रखना पड़ता है दूसरे यह भी तो पूर्व निर्धारित था कि द्वितीय सत्र कविगणों के लिए है ..।
निश्चय ही सभी कवियों ने अपनी श्रेष्ठ कविताओं से हमें मुग्ध किया …यथारीति शिवाकांत तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया …आयोजन का समापन तो हुआ पर अफ़सोस इस बात का भी हुआ कि कई विद्वान वक्ता उपस्थित थे , समयाभाव के कारण हम उनके मंतव्य से परिचित नहीं हो पाए …।
किसी ने कहा निकट भविष्य में डॉ . पालेश्वर प्रसाद शर्मा केंद्रित विचार गोष्ठी का आयोजन होने जा रहा है …आशा है तब विद्वान वक्ताओं को सुनने का लाभ मिलेगा …फिलहाल जो मिला उसे ही यथेष्ट समझ कर संतोष कर लेते हैं ।
1 मई मजदूर दिवस है …स्मरणीय यह भी तो है कि कलम के मजदूर डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा का जन्मदिन भी तो है ।
शब्द शिल्पी को शतशः नमन …।
सरला शर्मा दुर्ग
मुख्य अतिथि विधायक अरुण वोरा सदभावना संस्था के सामाजिक एवम साहित्यिक सामंजस्य के प्रयास को प्रेरक बताया। वरिष्ठ समाजसेवी नेतराम अग्रवाल ने “विवाह बढ़ती उम्र बिखरते रिश्ते” पर अपना विचार रखते हुए कहा कि विवाह की उम्र बीस से पच्चीस तक सीमित रखना अत्यंत आवश्यक है। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सरला शर्मा वरिष्ठ साहित्यकार ने अपने उद्बोधन में सभी साहित्यकारों का उत्साह वर्धन किया।
अतिथियों का सम्मान श्रीमती अलका अग्रवाल, श्रीमती मधु मौर्य, प्रद्युम्न अग्रवाल, ने किया। सदभावना छत्तीसगढ़ द्वारा वरिष्ठ साहित्यकार श्री गुलबीर भाटिया का डा पालेश्वर प्रसाद शर्मा स्मृति सदभावना सम्मान से अलंकृत किया। समस्त कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवि श्री किशोर तिवारी जी ने किया। आयोजन मे संपन्न कवि सम्मेलन मे सर्वश्री राजेंद्र मौर्य,साकेत रंजन ,विजय गुप्ता,इसराइल शाद,डा संजय दानी,संजीव तिवारी,सूची भावी,अनूप दुबे,दिनेश गुप्ता,डा नौशाद,बलदाऊ शाहू,नरेंद्र देवांगन,आशा झा,आलोक शर्मा,आलोक नारंग,सूरयकांत गुप्ता,नावेद राजा,इंद्रजीत दादर ने काव्य पाठ किया।आयोजन में मेनका, सोनिया,रचना, सुषमा अग्रवाल रवि,अजय, संजय, शशांक सहित काफी संख्या में साहित्यकार मौजूद रहे।