बिलासपुर । परिवार न्यायालय के आदेश के तहत एक मां पति के पास रह रहे दो बच्चों को सप्ताह में दो दिन अपने पास रख सकेगी ।परिवार न्यायालय मे यचिकाकर्ता श्रीमती श्वेता तिवारी द्वारा धारा 6 अप्राप्तव्ययता और सरंक्षता अधिनियम 1956 के अंतर्गत अपनी 4 वर्षिय पुत्री कु स्वेतुशि एवं 3 1/2 वर्षिय पुत्र स्वेतुश का अभीरक्षा प्राप्त करने हेतु आवेदन प्रस्तूत किय था । उक्त आवेदन के साथ ही याचिकाकर्ता द्वारा अंतरिम रुप से बच्चो की अभिरक्षा हेतु आवेदन भी प्रस्तूत किया था। उक्त आवेदन का निराकरण करते हुए फैमिली कोर्ट द्वारा पति को निर्देशित किया गया की बच्चो को प्रत्येक माह के प्रथम वा चतुर्थ शनिवार को पिता उनकी माँ को सौपेगा, वा रविवार शाम को माँ उन्हे वापस पिता को सौपेगी । 22-04-2019 को पारित उक्त अंतरिम निर्णय के पालन मे पति द्वारा आना कानि की जा रही थी। तत उपरांत उक्त आदेश के पालन हेतु यचिकाकर्ता द्वारा निशपादन हेतु आवेदन प्रस्तूत किया गया था। फैमिली कोर्ट द्वारा उक्त निशपादन आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया की विधि मे अंतरिम रुप से पारित निर्णय के निष्पादन हेतु उपबन्ध ना होने से उक्त निर्णय का निशपादन नही कराया जा सकता ।
उक्त निर्णय से व्यथित होकर यचिकाकर्ता द्वारा माननीय उच्च न्यायालय मे रिट याचिका WP 227 दायर की गई थी । जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति आर सी एस सामंत की एकल खण्डपीठ ने निर्णय दिया की परिवार न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय फैमिली कोर्ट ऐक्ट 1984 की धारा 10 के अंतर्गत उक्त परिवार न्यायालय सिविल कोर्ट है।
साथ ही कहा की परिवार न्यायालय द्वारा या निर्धारण करना की यचिकाकर्ता के पक्ष मे कोई भी डिक्री नही होना, स्वीकार योग्य नही है और ना ही विधिमान्य ही है ।
जस्टिस सामंत ने यह भी कहा की अगर किसी न्यायालय द्वारा कोई निर्णय पारित किया जाता है, तोह ऐसा निर्णय असरकारक वा अर्थवान होना चाहिये । और इस कारन किसी भी कोर्ट द्वारा स्वयं द्वारा पारित निर्णय के पालन से इन्कार नही किया जा सकता ।
माननीय न्यायमूर्ति सामंत ने यह भी निर्धारित किया की फैमिली कोर्ट मे सिविल प्रक्रिया संहिता के नियम कठोरता से लागू नही होते और साथ ही फैमिली कोर्ट को धारा 151 सी पी सी की शक्ति का प्रयोग करते हुए उक्त अंतरिम आदेश का पालन सुनीसचित करना चाहिये।
उक्त तथ्यो के साथ अधीनस्थ परिवार न्यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांक 13-09-2019 जिसके द्वारा अंतरिम निर्णय के निशपादन से इन्कार किया गया था उसे खारिज किया। साथ ही न्यायालय ने अधीनस्थ परिवार न्यायालय को निर्देशित किया की उसके द्वारा पारित अंतरिम निर्णय दिनांक 22-04-2019 का अक्षरशः पालन करवाया जाय ।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रोहित शर्मा ने पैरवी की।