बिलासपुर। शहर और आसपास में पदस्थ पटवारियों में से कई रसूखदार पटवारी जब उनका तबादला नापसंद हल्के में हो जाता है तो अच्छे शहरी हल्के में वापस आने के लिये साज़िश षड्यंत्र रचने से चूकते नही इसकी एक बानगी देखिए कि दो पूर्व पटवरियो के द्वारा हल्का छीना जाने पर महिला पटवारी पर रिकॉर्ड में छेड़छाड़ का आरोप लगा दिया गया जबकि जिन रिकार्डो की बात हो रही है उसे ख़ुद उन दोनो पूर्व पटवारी ने नहीं सुधारा। अभी कुछ दिनों पहले ही पदस्थ हुई पटवारी अचला तंबोली से इस बारे जब संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि उनके द्वारा रिकॉर्ड में कोई छेड़छाड़ नहीं किया गया है । कास्तकार के नाम छूटने वाले मामले शासन स्तर से हुए है। हमने सिर्फ डिजिटल सिग्नेचर किए है ।यदि किसी कास्तकार का नाम छूटा है तो वे अपना स्टांप प्रस्तुत कर सुधरवा सकते है। उन्होंने बताया कि पूर्व पटवारी से जैसा रिकॉर्ड प्राप्त हुआ था उसमें केवल शासन के आदेश से डिजिटल सिग्नेचर बस किया गया है। पटवारी किसी भी रिकॉर्ड को ख़ुद से नहीं सुधार सकता है जब तक की उसे तहसीलदार का आदेश न मिले। दूसरी तरफ़ जैसा आरोप नव पदस्थ पटवारी अचला तंबोली पर लग रहा है वैसा ही आरोप पूर्व सिरगिट्टी पटवारी दिनेश वर्मा पर भी है कि उन्होंने मौजा सिरगिट्टी प.ह.न. 41, के खसरा नंबर 117/5 एरिया 0.0510 में तो सीधे भूमिस्वामी और उसके पिता का नाम ही ग़ायब कर दिया है। ऐसे कई कई पीडीएफ़ ध्यान में लाया गया है जिसमें पटवारी दिनेश वर्मा पर फ़र्जीवाडा के आरोप लग रहें हैं। इसी तरह पूर्व पटवारी राश्मिलता साहू के द्वारा भी तिफ़रा में ही खसरा नंबर 1075/1/ख एरिया 0.004 में भूमिस्वमी का नाम और पिता का नाम ही ग़ायब कर दिया है और डिजिटल हस्ताक्षर भी कर दिया हैं। यहाँ पर यह विचारणीय बात है कि पटवारी राश्मिलता साहू और पटवारी दिनेश वर्मा इतने लंबे समय तक तिफ़रा सिरगिट्टी में थे तो उन्होंने रिकॉर्ड को सुधारा क्यों नहीं। बिलासपुर तहसील में पटवारियों के बीच विभाग की गोपनीयता ख़त्म करके हल्के की लड़ाई को सड़क में लाने का गंदा खेल चालू जो गया है। इसका मुख्य उद्देश्य उसी पटवारी हल्का में फिर से पदस्थ होने की कोशिश है इसमें पटवारी, महिला पटवारियों को भी बदनाम करने से नहीं चूक रहें हैं। उनका उद्देश्य अब तिफरा पटवारी हल्का में पदस्थ होना है।