भारत वर्ष उत्सव मंगल हर्ष पर्व का देश है, जीवन के प्रति समाज देश के प्रति आशा, आस्था, जिगीषा, जिजीविषा का विशेष आग्रह है, इसीलिए नव संवत्सर का आरंभ ही वर्ष प्रतिपदा से होता है। भाई दूज यम द्वितीया, अक्षय तृतीया, गणेश चतुर्थी, नाग पंचमी, हलषष्ठी, संतान सप्तमी, जन्माष्टमी, रामनवमी, विजयादशमी, देवउठनी एकादशी, शिवरात्रि, हरेली, पोला, दीवाली अमावस्या, शरद पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा जैसे लगातार वर्ष भर अनेक अनेक उत्साह-उल्लास पूर्ण उत्सव भारत की अपनी विशेषता है। यह त्यौहारों का अनोखा देश है। जन्मोत्सव जयंती मनाने की परंपरा है, मरण तिथि मनाने की नहीं। अंधकार की अपेक्षा आलोक, मृत्यु की अपेक्षा जीवन को प्राथमिकता दी है, इसीलिए मरण भी हमारे यहां त्यौहार है, क्योंकि आत्मा अजर है, अमर है, शरीर नष्ट होते हैं, आत्मा नहीं।
पंडित रमाकांत मिश्र शास्त्री के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमीं को धात्री वृक्ष (आँवला) की पूजा कर उसकी छाया में भोजन बनाकर भगवान को भोग लगा ब्राम्हण कुटुम्बी आदि को भोजन कराने पर बहुत पुण्य होता है। धात्री पूजन कैसे करना चाहिए उसकी विधि और मंत्रों का वर्णन किया जा रहा है।
धात्री वृक्ष के नीचे कलश जलाकर गणेश स्मरण कर संकल्प करें।
ऊपर वर्णित तिथि और समय आदि का स्मरण करते हुए कहिए- ”मैं अपने सभी पापों के नाश से पहले दामोदर की प्रसन्नता के लिए माता की जड़ में विष्णु की पूजा करूंगा।कर अर्ध देवे – फिर पुरूष सुक्त से या किसी प्रकार सोलहों प्रकार भगवान और ऑवले की पूजा
हे प्रभु, आधा-आधा ले लो और अपनी सभी इच्छाएं पूरी करो। हे दामोदर, अक्षय सतनान्ति मुझ पर बनी रहे, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं धात्री पूजा विधि –
“ॐ धात्रये नमः” “ॐ स्वधायै नमः” आदि मंत्रों से माता का पूजन करें तथा वृक्ष के चारों ओर निम्न मंत्रों से दीप अर्पित करें। 16 दीपक दें –
1. ॐ धात्रये नमः
2 ॐ स्वधायै नमः
2. ॐ कामनीयै नमः
4. ॐ शिवाय नमः
5. ॐ विष्णुपतन्यै नमः
6ॐ महालक्ष्म्यै नमः
7. ॐ रामायै नमः
8. ॐ इन्दिरायै नमः
9. ॐ लोकमात्राय नमः
10. ऊ ब्रह्मण्यै नमः
11. ॐ शांत्यै नमः
12. ॐ मेघायै नमः
13. ॐ गायत्री नमः
14. ॐ सुधृत्यै नमः
15. ॐ विश्वरूपायै नमः
8. ॐ इन्दिरायै नमः
16. ॐ अग्नि मेधायै नमः
डाले। फिर यात्री की जड़ में दूध गंगाजल तिल-जव लोटे में लेकर तर्पण करे
जल तर्पण मंत्र
‘पिता, दादा तथा जिस गोत्र के कोई पुत्र न हो, वे उस अक्षय दूध को पियें जो मैंने उन्हें माता के मूल में दिया है। उन्हें वह अक्षय दूध पीने दो जो मैंने उन्हें दिया है, जड़ की धाय।फिर धात्री वृक्ष में सूत्र लपेटते हुए परिक्रमा करें -उत्तम होता है। प्रणाम कर भोग लगाकर भोजन ग्रहण करे। सफेद कुम्हड़े (रखिया) का दान
सूत्र बंधन –
मंत्र – हे दामोदर के निवास स्थान, हे देवी माता, मैं आपको नमस्कार करता हूं। मैं तुम्हें इस धागे से बांधता हूं, हे देवी मां, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं।
वर्ष भर में एकादशी की संख्या 26 होती है, किन्तु देवशयनी और देव उठनी एकादशी का विशेष महत्व है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी देवशयन के बाद बड़े मांगलिक उत्सव रूक जाते हैं, फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी-देव प्रबोधन के बाद उत्सव शुरू हो जाते हैं।
वराह पुराण के अनुसार एक वेदी पर सोलह पॉखुरिया का कमल बनाकर जल,
रत्न, चंदन तथा सफेद वस्त्र से चार कलश ढांककर स्थापित करें तथा उनके बीच चतुर्भुज
धारी विष्णु तथा शेषधायी के सोने की प्रतिमा स्थापित करके ऋचाओं द्वारा पूजन करे, जागरण के पश्चात् दूसरे दिन चार वेदपाठी ब्राम्हणों को चार कलश तथा पांचवें को स्वर्ण प्रतिमादान eदेकर, भोजन करवाकर भोजन करे यही विधान है।
मदन रत्न ग्रंथ के अनुसार वर्षा के चार माह आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक
शुक्ल एकादशी तक ब्रह्म, इंद्र, रूद्र, अग्नि, वरुण, कुबेर, सूर्य और सोम आदि देवों के भी
पूजनीय महाप्रभु और सागर में चार मास शयन करते हैं। यद्यपि भगवान कभी भी क्षण भर सोते नहीं, तथापि उपासना के इस विधान के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को रात्रि के समय हरि को जगाया जाता है। स्त्रोत, भजन, घंटा शंख बजाकर उन्हें जगाना ही पूजा है।
मंत्र द्वारा उन्हें जगाया जाता है
उठो, उठो, गोविंदा, ब्रह्मांड के स्वामी, अपनी नींद त्याग दो। हे ब्रह्माण्ड के स्वामी जब रवाया सो जाता है तो यह संसार सो जाता है जब तुम उठते हो, तो सब कुछ चलता है। उठो, उठो, हे माधव। बादल छंट गए हैं और आकाश साफ़ है और दिशाएँ साफ़ हैं।Sमंदिर या आसन पर भगवान को विभिन्न पुरुषों से सजाएं और विष्णु की पूजा करें और कपूर की नीराजन (आरती) भी करें। फिर यज्ञेन यज्ञमयजंता देवस्तानि धर्माणि प्रथमन्यासना… मंत्र के साथ पुष्प अर्पित करें। पूजा के बाद भगवान को पालकी में बिठाकर शहर ले जाना चाहिए। इस प्रकार भगवान योग निद्रा को त्याग देते हैं और प्राणियों का पोषण करते हैं।
पद्म पुराण के अनुसार उपवास रहकर सोने या चांदी की लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा का पूजन कर तुलसी मंजरी अर्पित करें -ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जाप कर व्रत पूर्ण करे।
यह एकादशी छत्तीसगढ़ में तुलसी विवाह अनुष्ठान के रूप में प्रसिद्ध है। गन्ने का मंडप बनाकर नवीन तुलसी तरू का विवाह करें। गणेश मातृका पूजन के बाद श्री लक्ष्मी नारायण की मूर्ति के साथ गोधूली बेला में तुलसी कन्या का दान करें, वस्त्र भूषण दान करें, कुलीन ब्राम्हण को तृप्त कर स्वयं भोजन कर व्रत का पालन करें यही देव बोधिनी एकादशी है।
छत्तीसगढ़ में यादव-वीर इसी एकादशी से महाप्रभु श्री कृष्ण की रासलीला का
लोक महोत्सव “मड़ई” नृत्यगान प्रारंभ करते हैं। गोपाल-गोवर्धन-अन्नकूट-कार्तिक पूर्णिमा
अन्न लक्ष्मी के पूजन का समापन समारोह है। दोहा प्रसिद्ध भी है –
आवत देवारी लुहलुहिया
Sजात देवारी बहुत दूर है.
जा जा देवारी अपन घर,
फागुन उड़ाही धूर ।।
डा० पालेश्वर प्रसाद शर्मा
विद्यानगर बिलासपुर छ०ग०