बिलासपुर ।नगर निगम बिलासपुर में पिछड़ा वर्ग से सर्वाधिक महापौर हुए है । यह परंपरा जारी रहेगी इसका खुलासा 4 जनवरी को हो जाएगा । वैसे इस बार महापौर के दावेदारों में 2 पिछड़ा वर्ग के और 3 सामान्य वर्ग के पार्षद कांग्रेस से निर्वाचित हुए है और सभी हाथ पैर मार रहे है ।
महापौर कौन बने और कौन पार्षद सबसे योग्य है इसके लिए विचार मंथन कांग्रेस में चल रहा है साथ ही निर्दलीय 5 पार्षदो को खेमे में लाने जोड़तोड़ भी चल रहा है ।कांग्रेस महामन्त्री पूरे 70 प्रत्याशियों को डिनर देकर मेलमिलाप भी कर चुके मगर कांग्रेस से महापौर प्रत्त्याशी के नाम का खुलासा नही हो रहा । उधर भाजपा नेता मौन जरूर है मगर वहां क्या खिचड़ी पक रही है यह गोपनीय है । भाजपा के 30 पार्षद है इस लिहाज से अंतिम समय मे भाजपा कोई चमत्कार कर दे तो आश्चर्य नही होगा । कांग्रेस के डिनर पॉलिटिक्स की शहर विधायक को जानकारी तक नही होना यह बताता है कि कांग्रेस में क्या चल रहा है जबकि विधायक ने पार्षद चुनाव में दर्जन भर से ज्यादा कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में उनके वार्ड जाकर प्रचार किया था ।
निगम में महापौर और सभापति का चयन 4 जनवरी तक हो जाना है । चूंकि कांग्रेस के पास सर्वाधिक 34 और स्व शेख गफ्फार की जीत को मिला दें तो 35 पार्षद है इस लिहाज से महापौर कांग्रेस का ही बनना चाहिए मगर राजनीति में सब कुछ सम्भव है । निर्दलीय 5 पार्षद है जिन्हें कांग्रेस कहती है कि उनसे बातचीत चल रही है । महापौर कांग्रेस का होगा इसमें दो राय नहीहै लेकिन बड़ा प्रश्न है महापौर कौन होगा ?
भाजपा के 30 पार्षद है इसलिए वह चुप है और महापौर पद को लेकर उसने हथियार डाल दिया है ऐसा जो लोग सोच रहे है वे गलतफहमी में है । भाजपा हमेशा आखरी वक्त में दांव चलती है उसके पहले जो रणनीति बनाई जाती है उसकी कानोकान खबर किसी को नही होती । मेयर चुनाव में भी भाजपा चुप नही बैठने वाली है ।
कांग्रेस प्रदेश महामंत्री अटल श्रीवास्तव ने पार्टी के सभी हारे जीते 70 पार्षद प्रत्याशियों को डिनर पर बुलवाया। जाहिर है चर्चा होनी थी कि मेयर प्रत्याशी के नाम पर रायसुमारी हुई होगी मगर इस चर्चा को यह कहकर विराम देदिया गया कि डिनर आयोजन में इस पर कोई बात नही हुई । मेयर के लिए 4,5 दावेदार है जिसपर मुख्यमंत्री और पार्टी जो तय करेंगे उस पर अमल किया जाएगा साथ मे एक बात और कहा गया कि वरिष्ठता और निगम के कार्यो का अनुभव पर ध्यान दिया जाएगा ।इसका मतलब पहली बार पार्षद का चुनाव लड़े महापौर के दावेदार पार्षद का पत्ता साफ हो जाएगा ।
कांग्रेस महामंत्री के डिनर की जानकारी शहर विधायक को नही होना यह साबित करताहै कि पार्षद चुनाव में बहुमत पा जाने के बाद भी कांग्रेस में सब कुछ सामान्य नही है और गुटीय राजनीति हावी है । यह ठीक है कि महापौर के लिए नाम का चयन मुख्यमंत्री और पीसीसी द्वारा ही किय्या जायेगा और वही फाइनल होगा लेकिन शहर विधायक की इसमें कोई भूमिका होगी कि नही और उन्हें अपनी राय रखने की अनुमति रहेगी भी कि नही इसको लेकर चर्चाओ का दौर शरू हो गया है ।
पार्षद चुनाव में कांग्रेस भाजपा दोनो में निचले और ऊपर स्तर तक जमकर भितरघात हुआ है । विरोधी प्रत्याशियों को मदद पहुंचाई गई है । भाजपा के एक पार्षद प्रत्याशी को कांग्रेस प्रत्याशी की बड़ी चिंता थी उसने कांग्रेस प्रत्याशी को जितवाने निर्दलीय प्रत्याशी का नाम वापस लेने प्रयास किये । एक भाजपा नेता का ऑडियो वायरल हुआ है जिसमे वह महापौर के प्रबल दावेदार भाजपा प्रत्याशी को हरवाने की बात कह रहा है । भाजपा प्रत्याशी को हरवाने पार्टी के कार्यकर्ता को बागी बनाकर चुनाव लड़वाया गया । कांग्रेस का एक प्रत्याशी खुद तो हार गया मगर उसने एक अन्य काँग्रेस प्रत्याशी को हरवाने निर्दलीय प्रत्याशी खड़ा कर दिया था । सवाल यह उठता है कि कितने भीतर घातियो को पार्टी से निकाला जाएगा ? कांग्रेस भाजपा दोनो में सुनियोजित ढंग से पार्टी प्रत्याशियों को हराने के खेल चला है ।