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November 21, 2024 9:41 am

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पूर्व कद्दावर मंत्री पर नए मंत्री का इतना गुस्सा क्यों?अपने बिलासपुर में भी रहते है पूर्व कद्दावर मंत्री

           ठल्हा बैठे बस यूं ही 

बिलासपुर। कद्दावर  का मतलब क्या होता है? जवाब में शायद यही कहा जायेगा कि कुछ ज्यादा ही प्रभाव शाली, मगर एक पूर्व मंत्री को कद्दावर कह देना एक नए नवेले मंत्री को नागवार गुजर गया और उसने पूर्व मंत्री के बारे में खूब खरी खोटी सुना दी ।बात जायज भी है पूर्व मंत्री जब तक मंत्री थे ,कद्दावर थे चुनाव हार गए तो कहां के कद्दावर ।उस पूर्व मंत्री की पूरी सरकार कद्दावर थी और पूरी सरकार ही हाथ से निकल गई जबकि सरकार हाथ वाली थी ।जनता जनार्दन ने हाथ मरोड़ दिया इसलिए  पिछले 5 साल से कुम्हलाई फूल तरोताजा हो गई ।वैसे 15 साल तक A में काफी खाद और दवाइयां डाली गई थी जिससे कली , कली न होकर फूल बनकर कुछ ज्यादा ही खिल गई थी जिसे 5 साल पहले  हाथ ने मरोड़ दिया था मगर मुरझाए फूल को जनता ने ऐसा खाद पानी दिया कि वह फिर से खिल गई ।बात कद्दावर कहने को लेकर था ।जुम्मा जुम्मा 3 माह ही हुए है मंत्री बने और माननीय को  ऐसा लगता है कद्दावर रहे मंत्री से भारी एलर्जी है। यह बाद में पता चला लेकिन नए मंत्री को लिहाज रखनी चाहिए थी क्योंकि उनकी भी पार्टी के एक मंत्री को बिलासपुर में कद्दावर कहा जाता था/है ।बिलासपुर के पूर्व कद्दावर मंत्री को मोदी, शाह वाली वर्तमान भाजपा के नेता और प्रदेश सरकार की पटकथा लिखने वाले रणनीति कारो ने मंत्री नही बनने दिया।उसके  मंत्री बनने के रास्ते में रोड़ा बन गए ।ये अच्छी बात नहीं है ।मंत्री नही बनाए तो क्या बिलासपुर की जनता उन्हें पूर्व कद्दावर मंत्री कहना छोड़ देगी ?हरगिज नही !स्वजातीय पूर्व मंत्री को कद्दावर कहने पर भला बुरा कहते हुए अपनी भड़ास निकालने वाले वर्तमान मंत्री को यह ध्यान रखना होगा कि कोरबा के पूर्व मंत्री तो 5 साल ही  कद्दावर  रहे लेकिन उस पूर्व मंत्री के स्वजातीय पूर्व मंत्री बिलासपुर में 15 साल तक कद्दावर मंत्री कहे जाते रहे इस लिहाज वरिष्ठता क्रम में बिलासपुर के पूर्व मंत्री पहले नंबर पर है ।कद्दावर पूर्व मंत्री के बारे में भला बुरा कहने से बिलासपुर के पूर्व स्वजातीय मंत्री  को बुरा लग गया तो ?क्योंकि दोनो पूर्व मंत्री के बीच स्वजातीय होने के कारण मधुर संबंध रहे है। दोनो के बीच पार्टी  का अलग अलग होना कभी आड़े नहीं आई ।सौजन्यता से सभी खुश रहते है ।पूर्व मंत्री को हराकर नए बने मंत्री को दिल बड़ा रखना चाहिए। वैसे उनके मंत्री बनने से उनके विभाग के लोग क्या सोचते है यह भी बड़ा सवाल है और सवाल का जवाब मंत्री के समर्थकों को खोजना चाहिए। बिलासपुर के पूर्व कद्दावर मंत्री का कांग्रेस के नेताओं से इतना मधुर संबंध है कि विधान सभा चुनाव हार जाने के बाद भी कांग्रेसी उन्हे बड़े ही आदर भाव से “अमर भैया” ही बोलते है ।कांग्रेस नेताओं का संस्कार ही ऐसा है इसलिए नए मंत्री को बिलासपुर के कांग्रेस नेताओं से सीख लेनी चाहिए ।चुनाव भी जितवा दिए और भैया कहने के आदर सूचक भाव का मान भी बनाए रखे हुए है ।क्या पता उनके भैया आने वाले दिनों में मंत्री बन जाएं इसलिए कांग्रेसी आगे की सोच रखते है ।बहरहाल नए मेहनत मंत्री को उतावला होने से बचना चाहिए क्योंकि उनके विधानसभा का पूर्व कद्दावर मंत्री लोकसभा चुनाव तो नही लड़ रहा है और उनकी पार्टी ने जिसको प्रत्याशी बनाया है वह भी उनके जिले का नही है लेकिन रस्म अदायगी तो बनती है इसलिए मंत्री ने दो लाख वोटों से जीतने की गारंटी दे दी है। 

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