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April 7, 2025 12:47 pm

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परम चिरंजीवी, तपस्वी,ओजस्वी,यशस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी,मुनिस्वी,श्री हरि अवतार,धर्मावतारी -भगवान परशुरामजी* भगवान परशुराम जयंती: धरती पर धर्म के अवतार

भारतीय समाज में धर्म और धार्मिक महापुरुषों का महत्व अत्यंत उच्च है। उनके जीवन और कार्यों के माध्यम से, हम जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को सीखते हैं और उनका आदर्शों का अनुसरण करते हैं। एक ऐसे महापुरुष का जन्म हुआ था, जिनका नाम भगवान परशुराम है। उनकी जयंती का त्योहार, जिसे हम अक्षय तृतीया के रूप में मनाते हैं, एक स्मृति है जो हमें धरती पर धर्म के अवतार की महिमा को याद दिलाता है।
*परशुराम: धर्म का रक्षक*
परशुराम, भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं, जिनका धरती पर आगमन धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए हुआ था। परशुराम ने अपने पिता के पराधीन होने पर धरती पर असत्य के नाश के लिए अवतार धारण किया था। उनके जीवन के कई घटनाक्रमों ने धरती पर धर्म की रक्षा की और अधर्म के विनाश के लिए उन्होंने बहुत समर्थ प्रयास किए।
भगवान परशुराम के जीवन में कई महानतम प्रसंग हैं जो हमें धार्मिकता, समर्पण, और समाज सेवा के महत्व को समझाते हैं।
हिंदू धर्म ग्रंथों में अष्ट चिरंजीवी का वर्णन है, इनमें से एक भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी है-
अश्वत्थामा बलीर्व्यासो हनुमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविन:।।
मार्कंडेय महाराज जी अष्टम चिरंजीव के रूप में विद्यमान हैं।
परशुराम दो शब्दों के योग से बना है परशु तथा राम। परशु अर्थात फरसा तथा राम। इन दोनों शब्दों को मिलाने पर अर्थ होता है फरसा के साथ राम अर्थात परशुराम। जैसे प्रभु राम भगवान विष्णु के अवतार है। इसी प्रकार परशुराम जी विष्णु जी के अवतार है। परशुराम जी को भगवान विष्णु जी व राम जी के समान शक्तिशाली माना जाता है।
विष्णु अवतारी, भगवान परशुराम जी परम चिरंजीवी हैं। उन्हें अमरत्व का वरदान है और आज भी भगवान परशुराम कहीं तपस्या में लीन हैं।
भगवान परशुराम जी का प्राकट्य अक्षय तृतीया के दिन हुआ था इस संबंध में मान्यता है कि पूरे वर्ष में कोई भी तिथि क्षय हो सकती है लेकिन वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया का कभी क्षय नहीं होता।इस कारण से इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। इसे सौभाग्य सिद्धि,अक्ति, आखातीज भी कहते हैं ।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं उनका अक्षय फल मिलता है। वैशाख माह की अक्षय तृतीया स्वयंसिद्ध मुहुर्तों में मानी गई है।
अक्षय तृतीया को भगवान श्री कृष्ण से भी जोड़ा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने पूरे मन से अपने मित्र सुदामा के विनम्र प्रसाद को स्वीकार किया और उनके ऊपर धन की वर्षा की। इसलिए बैशाख माह की तृतीया वह अक्षय दिन है जब सुदामा का भाग्य बदल गया और वह धन संपदा से परिपूर्ण हो गए थे।
अक्षय तृतीया के दिन अवतरण होने के कारण भगवान परशुराम की शक्ति, साहस, बल, ओज कभी क्षय नहीं हो सकता।
भगवान परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्म लिए थे।ऋषि जमदग्नि और रेणुका भगवान परशुराम के माता पिता थे।अक्षय तृतीया को जन्म लेने के कारण भगवान परशुराम की शास्त्र संपदा भी अनंत हैं । भगवान परशुराम दरअसल परशु के रूप में शस्त्र और राम के रूप में शास्त्र का प्रतीक है।शास्त्र मत से भगवान परशुराम भगवान विष्णु के अवतार हैं किंतु परशु में भगवान शिव समाहित हैं और राम में भगवान विष्णु इसलिए परशुराम भगवान ‘शिव हरि’ हैं।
महान पराक्रम के प्रतीक भगवान परशुराम चिरंजीवी, तपस्वी,तेजस्वी, ओजस्वी,वर्चस्वी,यशस्वी,मुनीस्वी है ।एवं माता पिता की आज्ञा, सेवा भक्ति भाव से परिपूर्ण हैं।
शास्त्र मत है कि भगवान परशुराम ने जहां पिता की आज्ञा से माता जी का गला काट दिया वही पिताजी से माता को दोबारा जीवित करने का वरदान भी मांग लिया था।भगवान परशुराम महान प्रतापी देव हैं ।
ब्रह्मा वैवर्त पुराण के अनुसार एक बार परशुराम भगवान शिव के दर्शन हेतु कैलाश पर्वत पहुंचे लेकिन भगवान गणेश ने उन्हें अपने पिता शिवजी से मिलने नहीं दिया। इस बात से भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधित होकर अपने फरसे से भगवान गणेश जी के ऊपर प्रहार कर दिया था तब भगवान गणेश जी का एक दांत टूट गया था। तभी से गणेश जी को एक दंत कहा जाता हैं।
भगवान परशुराम की महिमा अनंत एवं अपार है। शस्त्रधारी और शास्त्रज्ञ भगवान परशुराम की महिमा का वर्णन शब्दों के सीमा में संभव नहीं हैं।
आज अक्षय तृतीया के महान पर्व में हम सभी विप्रकुल गौरव, विप्र शिरोमणि,विप्रों के देव,भगवान परशुराम को कोटि कोटि प्रणाम करते हैं। शास्त्र मान्यता है कि जो मनुष्य आज के दिन पूरे भक्ति भाव व श्रद्धा से भगवान परशुराम जी के मूर्ति के सामने पूजा-पाठ नमन करते हैं वे अक्षय पूर्ण फल प्राप्त करते हैं और अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेने की पूरी संभावना होती है। अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर अभीष्ट सिद्धि एवं मनोरथ पूर्ण करने हेतु हमें इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
ओम जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो: परशुराम: प्रचोदयात् ।
भगवान परशुराम की जयंती का महापर्व हमें यह याद दिलाता है कि धर्म की रक्षा के लिए हमें सदैव संघर्ष करना चाहिए और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
आप सभी को अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम जी के पावन प्राकट्य दिवस पर अनवरत बधाई एवं शाश्वत मंगल कामनाएं प्रतिश्रुत हो।

रविंद्र कुमार द्विवेदी
शिक्षक एवं साहित्यकार
चांपा, जांजगीर चांपा छग

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