बिलासपुर। विधानसभा चुनाव के पहले से ही कांग्रेस के दो प्रमुख और युवा नेताओ के बीच मतभेद से सारा शहर और पार्टी के बड़े नेता वाकिफ है भले ही दोनो नेता इसे नकारें मगर सच्चाई तो यही है लेकिन सोमवार को तोरवा में आयोजित एक कार्यक्रम में दोनो नेता को साथ देखकर और बातें करते हुए देख लोगो को सहज ही विश्वास नही हो रहा था मगर वाकया एकदम सही था । यक्ष प्रश्न यही है कि क्या दोनो नेताओं के बीच सब कुछ ठीकठाक हो गया है ? यदि ऐसा है तो बिलासपुर शहर के सेहत के लिए इससे अच्छी बात और कुछ नही हो सकती ।
जी हां आपका अंदाजा सही है । ये दोनों उर्जावान नेता हैं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव और शहर विधायक शैलेष पांडेय । दोनो का अपना अपना महत्व है मगर बिलासपुर में सत्ता और संगठन के बीच कुछ ठीक नही होने का नुकसान शहर को होने लगा था । दोनो के बीच मनमुटाव का फायदा कान भरने वाले प्रशासन के अधिकारी और कांग्रेस के ही लोग उठाते आ रहे है । यह शतप्रतिशत सच है कि विधान सभा चुनाव में बिलासपुर से कांग्रेस टिकट का वास्तविक हकदार अटल श्रीवास्तव ही थे लेकिन पार्टी ने शैलेष पांडेय को प्रत्याशी घोषित कर सबंधो में दरार लाने का काम किया । सौभाग्य से शैलेष पांडेय चुनाव जीत गए और भाजपा का 20 साल पुराना किला ढह गया । चुनाव प्रबंधन में पूरे प्रदेश में माहिर भाजपा शासन काल के कथित कद्दावर मंत्री अमर अग्रवाल को पराजय की पीड़ा सहनी पड़ी लेकिन यह सब शहर की जनता की बदौलत सम्भव हो सका क्योकि शहर की जनता ने ठान लिया था कि इस बार अमर अग्रवाल को हार का स्वाद चखाना ही है । जनता यह नही चाहती तो शैलेष पांडेय ही क्या कांग्रेस का कोई भी उम्मीदवार चुनाव नही जीतता ।
विधानसभा चुनाव के बाद एक तरफ जहां शैलेष पांडेय का विधायक के रूप में राजनैतिक पारी की शुरुआत हुई वही भूपेश बघेल के सीएम बन जाने पर अटल श्रीवास्तव का राजनैतिक कद बढ़ गया नतीजन अहं का टकराव शुरू हो गया हालांकि अटल श्रीवास्तव और शैलेष पांडेय ने सार्वजनिक रूप से कभी यह प्रगट नही होने दिया कि दोनों के बीच कोई मतभेद है मगर परिस्थियां साफ बताते रही कि दोनों के बीच कुछ न कुछ ही नही बल्कि बहुत कुछ गड़बड़ है ।
विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी नही बनाये जाने की भरपाई कांग्रेस ने अटल श्रीवास्तव को लोकसभा का प्रत्याशी घोषित करके कर दिया मगर पूरे देश मे भाजपा का एकमात्र चेहरा जब नरेंद्र मोदी हो तो अटल श्रीवास्तव क्या कांग्रेस का कोई भी नेता चुनाव जीतने से रहा । अटल श्रीवास्तव भी चुनाव हार गए मगर कांग्रेस संगठन ने उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बनाकर हार के जख्म पर मलहम लगा दिया मगर शैलेष पांडेय और उनके बीच की दूरी न केवल स्पष्ट दिखाई दे रही थी बल्कि कांग्रेस के कार्यकर्ता , पदाधिकारी,नेता ,पार्षद महिला कांग्रेस की नेत्रियां सब दोनो नेताओ के समर्थंक के रूप में बंट चुके है । दोनो नेताओ के बीच मतभेद की पूरी जानकारी पार्टी के बड़े नेताओं ,मुख्यमंत्री, मंत्रियों सबको भलीभांति है मगर दोनो के बीच स्थायी रूप से सामंजस्य बिठाने की कोई भी पहल नही कर रहा ।
इसके बाद नगर निगम का चुनाव आया तो पार्षद प्रत्याशी तय करने और उन्हें जिताने व हराने के लिए किस तरह तू डाल डाल मैं पात पात और मेरा प्रत्याशी ,उसका प्रत्याशी का खेल चला यह शहर के सारे कांग्रेसी और जानकार नागरिक अच्छी तरह जान चुके है यह तो गनीमत रहा कि निगम कांग्रेस के ज्यादा संख्या में पार्षद चुनाव जीत कर आये और निगम में कांग्रेस का बहुमत हो गया । महापौर ,सभापति , जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भी गुटीय झंझट की झलक स्पष्ट दिखी ।
यह भी सच है कि अनेक अवसरों पर विधायक शैलेष पांडेय की उपेक्षा की गई जो सार्वजनिक रूप से दिखाई दिया और यह भी सच है कि जिन लोगो द्वारा उपेक्षा की गई उनको अटल श्रीवास्तव ने निर्देशित कर रखा हो यह जरूरी नही है और सम्भव है ऐसी घटना की जानकारी अटल को बाद में मिली हो मगर नम्बर बढ़ाने के उद्देश्य से ऐसे करने वालो की कमी भी नही है ।कई ऐसे अवसर भी आये जब शहर विकास के लिए मुख्यमंत्री की घोषणा और केबिनेट में पारित निर्णय को लेकर दोनो पक्षो के लोगो ने श्रेय लेने की कोशिश की । किसी मंत्री या मुख्यमंत्री का समर्थक होने में कोई बुराई नही है मगर उसे लेकर मतभेद नही होना चाहिए भले ही मनभेद हो इसका असर कार्यकर्ताओ पर पड़ता है वे असमन्जस में रहते है कि किधर जाएं?
बहरहाल तोरवा के एक कार्यक्रम में दोनो नेताओ को देख बहुतों को अच्छा लगा और वे इसे एक अच्छा सन्देश मान रहे है । यदि दोनो के बीच सच मे सामंजस्य बनने के संकेत है तो यह कांग्रेस और बिलासपुर शहर के हित में होगा ।