बिलासपुर ।राजकिशोर नगर में नगर निगम द्वारा निर्मित व्यवसायिक परिसर के दुकानों की 2 माह पूर्व हुई नीलामी में गड़बड़ी की शिकायत और अपनों को उपकृत करने के आरोप पर नगर निगम ने जांच कमेटी गठित कर दी है । कमेटी ने अभी अपनी रिपोर्ट नही दी है इसी बीच दुकानों का आबंटन नही हुआ है क्योंकि आबंटन की प्रक्रिया काफी लंबी है और इसमें 8 से 9 माह लग सकते है जबकि निगम सूत्रों ने टेंडर प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी से इनकार किया है । उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में नगर निगम में शामिल किए गए राजकिशोर नगर में पूर्ववर्ती भाजपा शासनकाल के दौरान नगर निगम ने व्यवसायिक परिसर का निर्माण कराया था जिसमे कई दुकानों की नीलामी भाजपा शासनकाल के दौरान हो चुका है । शेष बची दुकानों को आवंटित करने 7 बार नीलामी की जा चुकी है मगर हर बार निरस्त कर दी जाती रही है । अभी 2 माह पूर्व कुछ दुकानों की नीलामी के लिए पुनः टेंडर बुलाया गया था जिस पर कलेक्टर ,निगम आयुक्त ,विधायक महापौर आदि को लिखित में की गई शिकायत में कहा गया कि टेंडर प्रक्रिया में नियमो का पालन नही किया गया । ई टेडरिग के बजाय मेन्युअल टेंडर स्वीकृत किया गया । कई टेंडर के लिफाफे खोल बाद में सेलोटेप से चिपकाया गया । टेंडर पेटी का उपयोग करने के बजाय निगम कर्मी टेंडर लिफाफो को झोले में लेकर घूमता रहा ।टेंडर के कुछ लिफाफा को खोल कर उसमें भरे गए रेट से कुछ सौ और हजार रुपये ज्यादा का टेंडर भरकर अपनो को उपकृत किया गया । शिकायत में टेंडर की पूरी प्रक्रिया को निरस्त कर फिर से टेंडर आमंत्रित करने की मांग की गई थी । इन शिकायतों की जांच हो इसके पहले यह भी खबर उड़ी कि एक पूर्व पार्षद ने रिंग बनाकर अपने लोगो को दुकान दिलवाने सुनियोजित ढंग से टेंडर की प्रक्रिया पूरी करवाया ।
इन आरोपो पर निगम के अधिकृत सूत्रों का कहना है कि टेंडर प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नही हुई है । जिन्हें दुकान नही मिली वे स्वभाविक है शिकायत करेंगे फिर भी प्राप्त शिकायतों को ध्यान में रख निगम अधिकारयियो की एक जांच कमेटी गठित की गई है । यह कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट नही दी है । जांच रिपोर्ट आने के बाद सत्यता स्वतः सामने आ जायेगी । दुकानों के आबंटन के प्रश्न पर निगम सूत्रों का कहना है कि टेंडर हों जाने के बाद भी दुकान आबंटन आसानी से नही होती । आबंटन की प्रक्रिया काफी लंबी है । टेंडर की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसकी स्वीकृति के लिए पहले निगम के एमआईसी के पास जाता है उसके बाद सामान्य सभा मे भेजा जाता है दोनो जगह स्वीकृति के बाद अंतिम स्वीकृति के लिए राज्य शासन के पास भेज दिया जाता है । इन सबमे लम्बा समय लग जाता है । करीब 8 से 9 माह की अवधि तक तो इंतजार करना ही पड़ता है । सूत्रों ने कहा कि टेंडर प्रक्रिया में दुकान का नम्बर लिखने का कोई प्रावधान नही है । राजकिशोर नगर व्यवसायिक परिसर के दुकानों के लिए 85 फार्म बिके थे मगर आवेदन सिर्फ 45 ही आये और 34 दुकानों की ही नीलामी हो पाई । अभी भी 13 दुकाने बच गए है यदि रिग बनाकर दुकाने लेने की साजिश की गई होती तो 13 दुकाने भला क्यों बचती ? रिंग बनाने वाले उन 13 दुकानों को भी अपनो को देकर उपकृत कर दिए होते इसलिए टेंडर के लिफाफे फाड़ने और रेट देखकर उसे फिर से चिपका देने जैसा आरोप व्यवहारिक नही है फिर भी जांच कमेटी पूरे मामले की जांच कर रही है ।