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अक्सर देखा जाता है कि संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद समस्याएँ हल नहीं होतीं, वहीं एक छोटी-सी युक्ति से बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकल आता है। ऐसा ही कुछ बिलासपुर जिले से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित भरारी ग्राम पंचायत में देखने को मिला। यहाँ एक सौ ग्यारह एकड़ में स्थापित पावरग्रिड कार्पोरेशन लिमिटेड के 765 केवी उपकेंद्र परिसर से हर साल बारिश का पानी यूँ ही गाँव में बहा दिया जाता था। पंप के माध्यम से परिसर के निकासी सिरे से तेजी से निकलने वाले वर्षाजल से ग्राम पंचायत में मिट्टी का कटाव हो रहा था और आबादी वाले इलाके में जल भराव की स्थिति भी निर्मित हो रही थी। वर्षा ऋतु में गाँव के लिए चिंता का सबब बनी इस समस्या का हल ग्राम पंचायत ने एक युक्ति से ढूंढ निकाला। इस युक्ति के तहत साल 2016-17 में महात्मा गांधी नरेगा और अन्य योजनाओं के तालमेल से मिली राशि से नाली बनाकर बिजली उपकेन्द्र के निकासी केन्द्र को तालाब से जोड़ दिया गया। इससे वर्षाजल तालाब में संरक्षित होने लगा। वहीं इस तालाब से लगे पाँच अन्य नजदीकी तालाबों को भी अगले वर्ष 2017-18 में एक-दूसरे से जोड़ दिया गया। इस उपाय से अब हर साल यूँ ही व्यर्थ होकर बह जाने वाला लाखों लीटर वर्षाजल तालाबों में एकत्र हो रहा है और वाटर रिचार्जिंग के साथ ही कई अन्य कार्यों में उपयोग में लाया जा रहा है।
इस कहानी की शुरुआत होती है, साल 2016-17 में। बिलासपुर जिले के बिल्हा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत भरारी में पावरग्रिड कार्पोरेशन लिमिटेड के द्वारा 765 केवी उपकेंद्र स्थापित किया गया है, जहाँ से बिजली का वितरण होता है। यह उपकेन्द्र 111 एकड़ में फैला हुआ है, जिसका तल कांक्रीट का बना है। बारिश के समय यहाँ इकट्ठे होने वाले पानी की निकासी पाईप के द्वारा ग्राम पंचायत की ओर की गई है। जनवरी, 2016 के पहले तक, दो से तीन घंटे लगातार पानी बरसने पर, उपकेन्द्र के परिसर में एकत्र हुये पानी का प्रवाह पम्प के माध्यम से निकासी द्वार से ग्राम पंचायत क्षेत्र में होने लगता था। इससे उपकेन्द्र से लगी ग्राम पंचायत की भूमि में पानी अत्यधिक वेग के साथ बहने लगता था और थोड़ी ही देर में ग्राम की भूमि डूब जाती और पानी यूँ ही बरबाद हो जाता था। पानी की इस बरबादी और तेज जल प्रवाह से हो रहे मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए ग्राम पंचायत भरारी ने एक युक्ति अपनाई। इसके अनुसार सबसे पहले बिजली उपकेन्द्र के जल निकासी केन्द्र से जोड़कर तीन सौ मीटर लंबी नाली का निर्माण कराया गया और इसे दूसरे छोर पर नया तालाब से जोड़ दिया गया। इससे वर्षा जल सीधे तालाब में एकत्रित होने लगा। कल तक यूँ ही बर्बाद हो रहा वर्षाजल साल 2016-17 से लगभग एक हेक्टेयर के इस तालाब में संरक्षित होकर, जल संरक्षण की अपनी कहानी बयां कर रहा है। इस कहानी में नाली निर्माण की जो युक्ति अपनाई गई, उसके लिए 5 लाख 91 हजार रुपयों की राशि की व्यवस्था अभिसरण के माध्यम से की गई। इसमें महात्मा गांधी नरेगा, 14वें वित्त आयोग की राशि एवं राज्य योजना- मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना का अभिसरण हुआ।
ग्राम पंचायत के सरपंच श्री विनय शुक्ला बताते हैं कि ग्राम सभा के अनुमोदन के आधार पर यह कार्य 3 जनवरी 2017 को प्रारंभ किया गया और तीन चरणों में 6 मार्च को पूरा करा लिया गया। इस कार्य में 16 ग्रामीणों को सीधे रोजगार मिला। इसमें 9 महिलाएं भी थीं। नाली के माध्यम से नया तालाब में संग्रहित हो रहे वर्षाजल का आधार बढ़ाने के लिए साल 2017-18 में ग्राम पंचायत के द्वारा इस तालाब के गहरीकरण का कार्य कराया गया। इस हेतु महात्मा गांधी नरेगा से 9 लाख 91 हजार रुपयों की स्वीकृति प्राप्त हुई। इसमें 312 जॉबकार्डधारियों को रोजगार प्राप्त हुआ। इसमें 168 महिलाएँ थीं। ग्रामीणों के सहयोग से हमने यह कार्य 15 मार्च को ही पूरा कर लिया। पिछले साल हुई बारिश में इससे गाँव को बहुत फायदा हुआ।
भरारी गाँव में शिव मंदिर से लगा नवा तालाब और उसका नवा पैठू तालाब तथा सिंघरी तालाब व उसका सिंघरी पैठू तालाब 100 साल से भी अधिक समय से पुराने हैं। इनका उपयोग ग्रामीण बारहों महीना करते हैं। फिर भी गर्मी के आते-आते केवल मंदिर से लगा नवा तालाब में ही रोजमर्रा के उपयोग के लायक पानी बच पाता था। इस विकट परिस्थिति के निराकरण में ग्राम पंचायत को आई.सी.आर.जी. (इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर क्लाइमेंट रेजिलिएंट ग्रोथ) परियोजना के तकनीकी विशेषज्ञ श्री विभाष चौबे ने काफी मदद की। श्री विभाष चौबे के तकनीकी मार्गदर्शन में ग्राम पंचायत ने नाली और नया तालाब के जुड़ाव के पहले एक सिल्ट चैम्बर का निर्माण कराया, ताकि नाली के माध्यम से वर्षाजल के साथ बहकर आने वाली गाद इस चैम्बर में रुक जाये और साफ पानी तालाब में एकत्र हो सके। इसके बाद सबसे पहले नया तालाब के आउटफ्लो को नवा पैठू तालाब के इनलेट के साथ जोड़ा गया। इसके बाद नवा पैठू तालाब के आउटलेट को नवा तालाब के इनलेट के साथ जोड़ा गया। इसी क्रम में सिंघरी तालाब, सिंघरी पैठू तालाब एवं सामुदायिक तालाब को एक-दूसरे से जोड़ा गया।
इसी क्रम में बिल्हा विकासखण्ड के कार्यक्रम अधिकारी श्री महेन्द्र भारद्वाज ने बताया कि भरारी ग्राम पंचायत महात्मा गांधी नरेगा और अन्य योजनाओं के अभिसरण के द्वारा नाली निर्माण कर बिजली सबस्टेशन के पानी को तालाब में एकत्र करना और इससे लगे बाकी 5 तालाबों को परस्पर जोड़ना एक दूरगामी सोच है। आज की स्थिति में यदि बारिश अच्छी हो जाये, तो ग्रामीणों को दैनिक उपयोग और सिंचाई कार्य के लिए साल भर पानी की उपलब्धता रहेगी। जल संरक्षण की इस परियोजना में छठवें नम्बर के सामुदायिक तालाब का गहरीकरण भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से कराया गया है। साल 2017-18 में यह कार्य 9 लाख 89 हजार रुपयों की लागत से पूरा कराया गया था। इससे 320 ग्रामीणों को सीधे रोजगार मिला। तालाबों का स्थायित्व बढ़ाने के उद्देश्य से इन तालाबों की मेड़ पर वृक्षारोपण का कार्य भी महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत कराया जा रहा है।
जल संरक्षण की इस परियोजना के लाभार्थी श्री जतनलाल पिता श्री इतवार 40 साल के हैं। इनका लगभग एक हेक्टेयर का खेत तालाब से लगा हुआ है। इनका कहना है कि वे तालाबों को जोड़ने की इस परियोजना के पहले अपने खेत में 1.85 एकड़ में ही धान की फसल ले पाते थे। इससे उन्हें 15 क्विंटल धान मिल पाता था। जब से तालाबों में नाली से वर्षाजल भरा रहता है, तब से अच्छी खेती कर पा रहा हूँ। साल 2017 में 24 क्विंटल और 2018 में 26 क्विंटल धान का उत्पादन हुआ है। रबी में 1.3 एकड़ में गेहूँ की फसल से 11 क्विंटल गेहूँ भी उत्पादित हुआ है।
भरारी गाँव के ही एक अन्य किसान श्री देवीप्रसाद पिता श्री लच्छन बताते हैं कि वे अपने 7 सदस्यीय परिवार के मुखिया हैं और तालाब से उनकी 1.3 हेक्टेयर खेत भूमि लगी है। तालाबों के एक दूसरे से जुड़ने से बहुत फायदा हुआ है। बारिश के बाद भी खेतों में नमी बनी रहती है। उन्हें अब 1.45 एकड़ कृषि भूमि से 20 क्विंटल धान की पैदावार हुई है, जो पूर्व से 7 क्विंटल अधिक है।
जतनलाल और देवीप्रसाद की तरह श्री नंद कुमार, श्री भरतलाल और श्री परमेश्वर भी उन चुनिंदा किसानों में से हैं, जिनकी कृषि भूमि तालाब से लगी हुई और खेती में तालाब से सिंचाई करते हैं। वर्षाजल को संरक्षित एवं एकत्रित करने के उद्देश्य से इस परियोजना में हुए नाली निर्माण, दो तालाबों का गहरीकरण एवं वृक्षारोपण कार्य से भरारी गांव के 723 ग्रामीणों को सीधे रोजगार भी मिला है और 12 हजार 462 मानव दिवस सृजित हुए। गांव के 23 अनुसूचित जाति परिवारों के द्वारा 2 तालाबों में मछलीपालन का कार्य किया जा रहा है। छः तालाबों के एक दूसरे से जड़ने के कारण, 25 हेक्टेयर भूमि में खरीफ और 8 हेक्टेयर में रबि की फसल सिंचित हो रही है। इससे लगभग 45 परिवार लाभान्वित हो रहे हैं। ग्रामीण महिलाओं को दैनिक जीवन के उपयोग के लिए पानी मिल पा रहा है। साल 2016 के बाद से परियोजना का बहुपयोगी प्रभाव साल दर साल देखने को मिल रहा है। इससे यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि युक्तिपूर्वक योजनाओं से मिले लाभ से गाँव ने जल संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर स्थापित कर दिया है ।