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April 10, 2025 12:18 am

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शिक्षण संस्थानों में अलग राज्य बन जाने के 21 बरस बाद भी बाहरी लोगो का प्रभुत्व ,क्या छत्तीसगढ़ में योग्य शिक्षाविदों की कमी है या फिर राजनैतिक विचारधारा हावी है जिसके सामने सब असहाय है ?

बिलासपुर ।छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बने 21 बरस हो गए मगर दुर्भाग्य है कि प्रदेश के अनेक उच्च शिक्षण संस्थानों में बाहरी लोगो का कब्जा है या यों कहें कि हमारे ऊपर बाहरी लोगो को थोपा जा रहा है ।राजनैतिक विशेष के विचारधारा के लोगो को शुरू से यहां लाकर बिठाया जा रहा है और यहां के कर्ता धर्ता असहाय हैं ।अहम प्रश्न यह है कि क्या छत्तीसगढ़ में योग्य शिक्षाविदों का अभाव है ?

यह कटु सत्य है कि छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में बाहरी प्रतिभाओं का ज्यादा सम्मान है बनिस्बत इसी राज्य के हस्तियों का ।यही कारण है कि बिलासपुर विश्वविद्यालय जिसे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेई के नाम से यानि अटल यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है, में महाकौशल क्षेत्र के शिक्षा वेद प्रोफेसर अरुण दिवाकर नाथ बाजपेई को वाइस चांसलर बनाया गया है वे सेवानिवृत हुए कुलपति प्रो जी डी शर्मा का स्थान लेंगे । प्रो बाजपेई की शैक्षणिक योग्यता को लेकर कोई संदेह नहीं है किंतु उस योग्यता के साथ सत्ता की जिस लेवल का ठप्पा लगा हुआ है उससे यह पता चलता है कि छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में आज भी चलती तो आर एस एस की ही है। सबको पता है कि कुलपति की नियुक्ति में राज भवन का अपर हैंड है और छत्तीसगढ़ में राज भवन तथा सीएम भवन के बीच कई मामलों को लेकर तल्खी है उन्हीं में से एक विषय विश्वविद्यालय में नियुक्तियों का भी है अटल यूनिवर्सिटी में कुलपति की नियुक्तियां विवादित रही हैं। पिछले कुलपति प्रो गौरी दत्त शर्मा लम्बे कार्यकाल तक रहे । गुरु घासी दास विश्व विद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रूप में मान्यता दी गई तो उसके बदले बिलासपुर विवि की नींव रखी गई और इसके पहले कुलपति प्रो गौरी दत्त शर्मा रहे । बिलासपुर वि वि का नाम अटल यूनिवर्सिटी रखा गया तब प्रो शर्मा का कार्यकाल बढ़ा दिया गया । प्रो शर्मा किस विचारधारा से जुड़े हुए है यह बताने की जरूरत नही है । विचारधारा के स्तर पर उन्होंने अपने पराए का खूब भेदभाव किया यहां तक कि विश्वविद्यालय का शैक्षणिक स्तर, प्रश्न पत्र की चोरी, उत्तर पुस्तिकाओं की जांच ,संविदा नियुक्ति तक हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा। उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद जिस किसी का नाम इस पद पर आया तो कभी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद तो कभी एन एस यू आई ने आपत्तियां की इस बार आपत्ति का मौका ही नहीं मिला सीधी ही नियुक्ति हो गई।

नव नियुक्त कुलपति प्रोफेसर वाजपेई महाकौशल क्षेत्र से वास्ता रखते हैं ।नर्मदा नदी का तट देखे हुए हैं इसलिए राजनीति की धार खूब समझते हैं। चित्रकूट यूनिवर्सिटी में कोई कुलपति बने और उस पर आर एस एस की मेहरबानी ना हो यह नहीं हो सकता। हिमाचल तक चले गए उसी संगठन की दम पर ।महाकौशल क्षेत्र से इन दिनों छत्तीसगढ़ में खूब लिंक जोड़ी जा रही है इसी का परिणाम है कि शिक्षा संस्था के उच्च पदों पर केशव कुंज के स्थान पर महाकौशल का आर एस एफ कैंप हावी हो गया है अब सवाल ये उठता है कि छत्तीसगढ़ राज्य के शिक्षाविदों को देश के किस किस राज्य में नियुक्तियां मिल रही हैं ?यदि नहीं मिल रही तो हम अपने राज्य में अन्य जगह की प्रतिभा लाकर क्यों रखते हैं ?फिर प्रतिभा के साथ छोटी-छोटी छाया भी आती है इसके पहले केंद्रीय विश्वविद्यालय में बनारस की प्रतिभा आई थी और पूरे विश्वविद्यालय में आज भी उत्तर प्रदेश की गंदगी फैली हुई है ।इशारा साफ़ है महाकौशल से कितना कचरा लाया जाएगा। इस पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को नजर रखनी चाहिए बिलासपुर के विश्वविद्यालय में ऐसा ही एक कचरा बुंदेलखंड से भी आता है जो कई बार कुल परिषद के सदस्य बन चुके हैं।

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