,बिलासपुर । एसबीआर कॉलेज की जमीन के मामले में आए फैसले को लेकर कांग्रेस ,भाजपा के तमाम बड़े नेता कह रहे है कि यह फैसला भूमाफियाओं के लिए बड़ा सबक है मगर बड़ा सवाल यह है कि आखिर ये भूमाफिया लोग कौन है ? इसका खुलासा कैसे हो ? एस डी एम ने अपने फैसले में कहा है कि कालेज की जमीन को बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती । फैसला आते ही पूर्व राजस्व मंत्री अमर अग्रवाल ,शहर विधायक शैलेश पाण्डेय और पर्यटन मंडल के चेयरमैन अटल श्रीवास्तव ने लगभग एक जैसी प्रतिक्रिया दी है और उनके बयान से यह तो स्पष्ट हो गया कि कालेज की वेश कीमती जमीन पर भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि थी मगर वे अपने मसूबे में कामयाब नही हो पाए ।इसका अर्थ तो यही है कि भूमाफिया पूरे शहर में सक्रिय है ।कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए जमीन बचाने हड़ताल पर बैठे छात्रों और पूर्व अध्यक्ष शैलेंद यादव कल शुक्रवार को आभार रैली निकालेंगे ।
फैसले पर,शहर विधायक शैलेष पाण्डेय ने कहा – सच परेशान हो सकता है लेकिन पराजित कभी नही हो सकता है
छात्र हित में निर्णय आने के बाद नगर विधायक शैलेष पाण्डेय ने कहा कि सच परेशान हो सकता है लेकिन कभी पराजित नही हो सकता है। छात्रहित में बहुत बडा फैसला आया है। जमीन माफिया कितना भी बड़ा हो जाए लेकिन हमें न्याय प्रणाली पर पूरा भरोसा है, और अंततः फैसला न्याय का हुआ। खुशी की बात है कि फैसले के समय छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखा गया। साथ ही यह निर्णय जमीनों पर कब्जा करने वाले भू-माफियाओं के लिए सबक भी है ।
एस डी एम देवेंद्र पटेल ने अपने आदेश में उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि किसी स्थिति में कॉलेज की जमीन को बेचने की इजाजत नही दी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा है कि इस जमीन को लेकर ट्रस्ट के सदस्यों की नीयत ठीक नही है। कालेज की जमीन शैक्षणिक गतिविधियों में उपयोग किया जा रहा है। जमीन पूरी तरह से सुरक्षित है। जमीन का उपयोग खेल मैदान के रूप में ही किया जा रहा है। कोर्ट ने ट्रस्ट के सभी दावों को खारिज करते हुए फैसले में दो टूक कहा है कि ट्रस्ट को जमीन बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। एस डी एम ने अपने आदेश में कहा है कि एसबीआर कालेज मैदान की जमीन को किसी भी सूरत में खरीदी बिक्री की इजाजत नहीं है। जमीन का उपयोग ट्र्स्ट के सिद्धांतों के अनुरूप शैक्षणिक गतिविधियों के लिए किया जा रहा है। जमीन पूरी तरह से सुरक्षित है। किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं किया गया है। ट्रस्ट की तरफ से पेश किए गए कमोबेश सभी तर्क तथ्यहीन हैं। सुनवाई के दौरान पाया गया कि ट्रस्ट की नीयत जमीन को लेकर ठीक नहीं है, ना तो जमीन पर अतिक्रमण ही हुआ है और ना ही छात्रहित में जमीन को बेचा जाना उचित होगा। इसलिए ट्रस्ट को जमीन बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
एसडीएम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एसबीआर कालेज की स्थापना एसबीआर ट्रस्ट ने 1972 में किया है। कालेज के सामने ट्रस्ट की करीब ढाई एकड़ जमीन है। जमीन का उपयोग वर्तमान में कालेज के खेल मैदान के रूप में किया जा रहा है। जबकि ट्रस्ट का उद्देश्य भी जमीन का उपयोग शैक्षणिक गतिविधियों को लेकर किया जाना बताया गया है। इसलिए जमीन को बेचकर दूसरी जगह जमीन खरीदने की बात उचित नहीं है। जैसा की वर्तमान ट्रस्ट की तरफ से सुनवाई के दौरान कहा गया है। एसडीएम कोर्ट ने दूसरे प्रमुख बिन्दु में कहा कि साल 1944 में ट्रस्ट का गठन किया गया। 2014 तक ट्रस्ट में सिद्धान्तों और ट्रस्टियों में भी किसी प्रकार का परिवर्तन नही हुआ। साल 2014 के बाद यकायक नए सदस्य आ जाते हैं। पहले कहते हैं कि ट्रस्ट की बैठक नहीं हुई..फिर जमीन बेचने के लिए आवेदन करते हैं। इस दौरान ट्रस्ट ने कोर्ट को बताया कि जमीन बेचने की मंशा नहीं है। फिर जमीन बेचने के लिए आवेदन करते हैं। इससे जाहिर होता है कि वर्तमान ट्रस्ट की नीयत ठीक नहीं है। वैसे भी जमीन का उपयोग ट्रस्ट के उद्देश्य के अनुसार शैक्षणिक हित में किया जा रहा है। इसलिए जमीन बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। अपने फैसले में एसडीएम कोर्ट ने बताया कि एसबीआर ट्रस्ट ने दावा किया था कि जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है। मौके पर पाया गया कि बतायी गयी जमीन पर किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं हुआ है। जमीन पूरी तरह से सुरक्षित है। ट्रस्ट के दावा में किसी प्रकार की सच्चाई नहीं है।
एसबीआर कालेज मैदान को लेकर पिछले कुछ सालों से ट्रस्ट और ट्रस्ट फाउंडर परिवार के बीच विवाद चल रहा है। बजाज परिवार के सदस्य अतुल बजाज ने ट्रस्ट के गठन और कालेज मैदान की बिक्री को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अतुल बजाज ने कालेज की जमीन को बेचने के निर्णय के खिलाफ एसडीएम कोर्ट में भी वाद दायर किया था। अतुल बजाज ने सिविल कोर्ट में भी जमीन बेचे जाने के ट्रस्ट के फैसले को चुनौती दी। स्टे नहीं मिलने पर अतुल बजाज ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई। यहां भी अतुल बजाज को असफलता हाथ लगी। उन्होने सुप्रीम कोर्ट के सामने मामले को रखा। सुप्रीम कोर्ट में पहली सुनवाई हो चुकी है। अतुल बजाज के अलावा बजाज परिवार के फाउन्डर पीढ़ी के तीन अन्य संतोष बजाज, सुमित बजाज ने भी ट्रस्ट की वैधता और जमीन बिक्री के खिलाफ सिविल कोर्ट से स्टे लिया है।एसडीएम देवेन्द्र पटेल ने ट्रस्ट के खिलाफ फैसला देकर जमीन की खरीदी बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। साथ ही कोर्ट ने फैसले में ट्रस्ट की नीयत पर भी सवाल उठाया है। एसबीआर कालेज की जमीन को बचाने के लिए पिछले 15 दिन से भाजपा के युवा नेता शैलेन्द्र यादव की अगुवाई में कालेज के छात्र हड़ताल पर हैं।
ट्रस्ट को इन बिन्दुओं पर मिली हार एसडीएम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एसबीआर कालेज की स्थापना एसबीआर ट्रस्ट ने 1972 में किया है। कालेज के सामने ट्रस्ट की करीब ढाई एकड़ जमीन है। जमीन का उपयोग वर्तमान में कालेज के खेल मैदान के रूप में किया जा रहा है। जबकि ट्रस्ट का उद्देश्य भी जमीन का उपयोग शैक्षणिक गतिविधियों को लेकर किया जाना बताया गया है। इसलिए जमीन को बेचकर दूसरी जगह जमीन खरीदने की बात उचित नहीं है। जैसा की वर्तामन ट्रस्ट की तरफ से सुनवाई के दौरान कहा गया है।
एसडीएम कोर्ट ने दूसरे प्रमुख बिन्दु में कहा कि साल 1944 में ट्रस्ट का गठन किया गया। 2014 तक ट्रस्ट में सिद्धान्तों और ट्रस्टियों में भी किसी प्रकार का परिवर्तन नही हुआ। साल 2014 के बाद यकायक नए सदस्य आ जाते हैं। पहले कहते हैं कि ट्रस्ट की बैठक नहीं हुई..फिर जमीन बेचने के लिए आवेदन करते हैं। इस दौरान ट्रस्ट ने कोर्ट को बताया कि जमीन नहीं बेचने की मंशा नहीं है। फिर जमीन बेचने के लिए आवेदन करते हैं। इससे जाहिर होता है कि वर्तमान ट्रस्ट की नीयत ठीक नहीं है। वैसे भी जमीन का उपयोग ट्रस्ट के उद्देश्य के अनुसार शैक्षणिक हित में किया जा रहा है। इसलिए जमीन बेचने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
दावा में सच्चाई नही अपने फैसले में एसडीएम कोर्ट ने बताया कि एसबीआर ट्रस्ट ने दावा किया था कि जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है। मौके पर पाया गया कि..बतायी गयी जमीन पर किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं हुआ है। जमीन पूरी तरह से सुरक्षित है। ट्रस्ट के दावा में किसी प्रकार की सच्चाई नहीं है।
**उल्लेखनीय है कि एसबीआर कालेज का न केवल बिलासपुर बल्कि अविभाजित मध्यप्रदेश में अपना अलग महत्व रहा है। प्रसिद्ध रंगकर्मी. फिल्म जगत के पुरोधाओं में से एक सत्यदेव दुबे एसबीआर कालेज में पढ़े ही नही बल्कि प्राध्यापक की नौकरी भी की । पिछले दो तीन सालो में अटल श्रीवास्तव ने जब तब कालेज जमीन को बचाने अलग अलग मंच पर अपनी बातों को पुरजोर तरीके से पेश भी किया।। कुछ दिनों पहले ही भाजपा के दिग्गज नेता ,पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने भी इशारो ही इशारों में एसबीआर कालेज की जमीन को लेकर बयान दे चुके हैं। उन्होने कहा था कि जनहित की किसी भी जमीन को बिकने नहीं दिया जाएगा। 0अमर अग्रवाल के इस बयान के बाद भाजपा यूथ विंग ने कालेज की जमीन बचाने को लेकर छात्रों के साथ पिछल
े 15 दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे थे ।
प्राइम लोकेशन में होने के कारण एसबीआर जमीन की कीमत वर्तमान में करोड़ों की है। जमीन को पाने के लिए सालों से ट्रस्ट के सदस्यों ने अभियान चलाया। ट्रस्ट के गठन में भारी धांधली की गयी। फिर मामला कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट पर दबाव बनाने रसूखदारों ने एड़ी चोटी लगाया। सूत्र ने बताया कि जमीन को हथियाने के लिए सफेदपोश से लेकर जमीन माफियों कोई कसर नहीं छोड़ा। बावजूद इसके कोर्ट के सामने किसी की नहीं चली। एसबीआर कालेज का ना केवल बिलासपुर बल्कि अविभाजित मध्यप्रदेश में अपना अलग महत्व रहा है। प्रसिद्ध रंगकर्मी. फिल्म जगत के पुरोधाओं में से एक सत्यदेव दुबे ना केवल एसबीआर कालेज में पढ़े हैं। बल्कि प्राध्यापक की नौकरी भी किए हैं। वर्तमान पर्यटन मण्डल बोर्ड अध्यक्ष और पीसीसी उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने एसबीआर कालेज जमीन को बचाने को लेकर मुहिम भी चलाया था। कुछ दिनों पहले ही भाजपा के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने भी इशारो ही इशारों में एसबीआर कालेज को लेकर बयान दे चुके हैं। उन्होने कहा था कि जनहित की किसी भी जमीन को बिकने नहीं दिया जाएगा। 0अमर के इस बयान के बाद भाजपा यूथ विंग ने कालेज की जमीन बचाने को लेकर छात्रों के साथ पिछले 15 दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन
कर रहे थे ।भाजपा यूथ विंग के शैलेंद्र यादव ने एस डी एम कोर्ट से आए फैसले का स्वागत करते हुए बताया कि कल शुक्रवार को आभार रैली निकाली जाएगी ।
।