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November 21, 2024 3:42 pm

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पर्यावरण विभाग वाले खुद पटाखों से होने वाले प्रदूषण के आंकड़े छिपाते है , हाई वाल्यूम सैंपल लगाए है 2 स्थानों में पर रिपोर्ट 4 स्थानों का भेजते है!

बिलासपुर। (विक्रम सिंहठाकुर )दीपावली के त्योहार में बेहिसाब पटाखे फोड़े जाते है और तेज आवाज वाली आतिशबाजी भी रात भर की जाती है लेकिन पटाखों से होने वाले प्रदूषण के आंकड़े पर्यावरण विभाग के अधिकारी छिपाते है और लोगो के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते है ।पटाखों से प्रदुषण का एक भी प्रकरण प्रदूषण विभाग वालो ने रिकार्ड किया हो या बनाया हो ऐसा कहीं प्रतीत नही होता ।जानकारी मांगने पर अधिकारी ऐसा व्यवहार करते है मानो उनके खुद की चल अचल संपत्ति या जायदाद की जानकारी मांगी जा रही हो और वे सीधे सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने की बात कह पल्ला झाड़ रहे है ।

इस दीपावली लोगों को नहीं पता चल पाएगा कि पटाखों से हमने कितना प्रदूषण फैलाया है क्योंकि करीब 20 लाख की आबादी वाले शहर में पर्यावरण विभाग द्वारा केवल दो जगहों पर हाई वॉल्यूम सैंपल लगाया गया है जबकि शहर के करीब चार प्रमुख जगहों पर मशीन लगना था। दूसरी ओर विभाग के द्वारा रोज उसकी रिपोर्ट भी तैयार की जा रही है जिसे अधिकारी लोगों को नहीं बताना चाहते हैं। इस साल केवल 2 घंटे आतिशबाजी के लिए निर्धारित की गई है लेकिन अभी से शहर सहित गांवों में पटाखे जलाए जा रहे हैं जिन पर कार्यवाही नहीं की जा रही है।
पटाखों के प्रयोग से खतरनाक कण पी एम 2.5 pm10 वायु की गुणवत्ता को अतिरिक्त प्रभावित करती है जिसमें खतरनाक विषाक्त गैस ,हानिकारक रसायन गैस पर्यावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है पटाखों के प्रयोग से होने वाले वायु प्रदूषण के मुद्दे एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट के सामने समय-समय पर उठते रहे हैं ।रंग बिरंगे रोशनी पैदा करने वाले पटाखे एंटीमोनी सल्फाइड ,बेरियम नाइट्रेट ,एलुमिनियम तांबा ,लिकविम और स्ट्रेटियम के मिश्रण से बने होते हैं ।जब यह पटाखे जलाए जाते हैं तो इनमें कई प्रकार के रसायन हवा में मिलते हैं और हवा की गुणवत्ता को काफी बिगाड़ देते हैं ।पटाखों से न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है बल्कि इससे निकले हुए धुएं से सेहत को भी गंभीर नुकसान पहुंचता है ।रिसर्च से यह पता चला है कि आतिशबाजी से निकलने वाले केमिकल के कारण हवा का स्तर बहुत खराब हो जाता है ।ये कण पदार्थ गले, नाक और आंखों से हुई दिक्कतों को जन्म दे सकते हैं ।इस तरह सेहत को कई तरह से नुकसान पहुंच सकता है जैसे क्रॉनिक, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा ,सर्दी जुकाम ,निमोनिया, लैरिंजाइटिस इत्यादि पटाखों के फटने पर पर क्यों निकलते हैं जो रंग निकलते हैं जिन्हें बनाने के लिए रेडियो एक्टिव और जहरीले तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है यह तत्व लोगों में कैंसर फैलाने का प्रमुख कारण है। आतिशबाजी की आवाज काफी तेज होती है जो 140 डेसीबल से ऊपर जा सकती है ।आपको बता दें कि मनुष्यों के लिए मानव डेसीमल 60डेसीमल है।शोर का स्तर अगर ऊंचा हो तो इसमें गर्भवती महिलाओं ,बच्चों और सांस की समस्याओ से पीड़ित लोगों में बेचैनियां अन्य दिक्कतें पैदा हो जाती है ।हानिकारक होने से गर्भवती महिलाओं का गर्भपात भी हो सकता है।

दीपावली पर क्या है एन जी टी निर्देश?

*नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में 4 नवंबर को दिवाली के पर्व को ध्यान में रखते हुए सरकार को निर्देश जारी किया है कि केवल 2 घंटे रात्रि 8:00 से 10:00 तक ही आतिशबाजी की जाए और इसके अलावा उन्ही पटाखों को बाजार में बेचा जा सकेगा जिनमें से उत्पन्न ध्वनि का स्तर निर्धारित सीमा के भीतर हो साथी उससे ऊपर के मानक वाले पटाखों की बिक्री उपयोग तथा निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि ऐसे पटाखों में लिथियम ,आर्सेनिक एंटी मनी लेड एवं मरकरी में टॉक्सिन तत्व होते हैं जिन से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो सकती है और मानव जीवन के लिए काफी खतरनाक होती है ।

आर टी आई से लें जानकारी
क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी देवव्रत मिश्रा का इस बारे में कहना है कि कोई भी जानकारी हम नहीं दे सकते यदि जानकारी लेनी है तो सूचना का अधिकार लगाकर जानकारी ले सकते हैं। पटाखों से प्रदुषण जांच के लिए विभाग की ओर से कार्य किया जा रहा है।

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