ठीक 94 साल पहले एक मई 1928
को जांजगीर पुरानी बस्ती स्थित बड़े दुबे के घर चिर प्रतीक्षित बालक का जन्म हुआ माता सेवती देवी और पिता श्याम लाल दुबे (शर्मा ) सहित पूरे परिवार को प्रसन्नता हुई ।
संयुक्त परिवार था तो घर में चार बड़े भाई तीन बड़ी बहनों का दुलार पाकर बालक का बचपन समृद्ध हुआ बहुत स्नेह से घर के सभी सदस्य बालक को मुसाफिर कहते थे ।
एक बार उन्होंने बताया था कि मुसाफिर तो हूं ही किन्तु 1 मई मजदूर दिवस को धरा धाम में आया हूं तभी तो साहित्य का मजदूर मुसाफिर बन सका । आज सोचती हूँ ठीक ही तो कहा था उन्होंने छत्तीसगढ़ी , हिंदी साहित्य की सेवा ही तो आजीवन करते रहे ..आप चाहें तो इसे साहित्यिक मजदूरी कह सकते हैं तो साहित्यजगत के मुसाफिर ही तो थे तभी तो साथ चलने , लिखने वालों , पाठकों का अशेष सम्मान प्राप्त कर सके ।
‘ प्रबन्ध पाटल ‘ साहित्य के विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शक निबन्ध संग्रह है । ” छत्तीसगढ़ का इतिहास एवं परम्परा ” यथा नाम तथा गुण छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करता ग्रन्थ है ।
इसी श्रंखला की अगली कड़ियाँ हैं ” छत्तीसगढ़ के तीज त्यौहार ” और ” छत्तीसगढ़ के लोकोक्ति मुहावरे ” यही नहीं धान के कटोरा की प्रमुख फसल धान का परिचयात्मक ग्रन्थ है ” छत्तीसगढ़ की खेती किसानी ” ।
ये सभी पुस्तकें सिद्ध करती है डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा को छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र के रूप में …अपनी जन्मभूमि , कर्मभूमि और मरण भूमि के प्रति इतना गहन प्रेम बिरले साहित्यकारों की कृतियों में मिलता है ।
” नांव के नेह मं ” अनूठी कहानी है जिसका प्रत्येक पैराग्राफ बिलासपुर के एक एक अक्षरों से शुरू होता है तो बिलासा केवटीन की गाथा इनकी भाषा का स्पर्श पाकर इतिहास में अमर हो गई । ” सुसक झन कुररी सुरता ले ” छत्तीसगढ़ी कहानियों का संकलन है जो याद दिलाता है आदि कवि वाल्मीकि की करुणा स्रोत क्रौंची के करुण विलाप की जो रामायण की रचना का आधार बनी । डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा की कृति पाठकों को स्मरण दिलाती है क्रौंची ( कुररी ) अभी भी सिसक रही है …अनुरोध करते हैं लेखक थोरकुन सुरता ले कुररी …।
” तिरिया जनम झनि देय ” नारी मन की व्यथा , विवशता की कथा है तो दूसरी ओर नारी के त्याग ,समर्पण , घर परिवार को बांधे रखने के गुणों को रेखांकित करती है । इस कहानी संग्रह को एम. ए. के पाठ्यक्रम में स्थान मिला है ।
पत्रकारिता भी अछूती नहीं रही तभी तो तत्कालीन अखबार में सर्वाधिक दिनों तक प्रकाशित होने वाले लेखों का संग्रह ” गुड़ी के गोठ ” के नाम से प्रकाशित हुआ है यह पुस्तक तत्कालीन राजनैतिक , सामाजिक घटनाओं का दर्पण है ।
इनकी रचनाधर्मिता की सबसे बड़ी विशेषता गहन अध्ययन है तो प्रवाहमयी , शुद्ध परिनिष्ठित भाषा शैली अन्यतम उपलब्धि है । हिंदी हो या छत्तीसगढ़ी ललित निबन्धों की परिपाटी के उत्तम उदाहरण हैं …इनकी रचनाओं में श्रुतिमधुर , ध्वन्यात्मक शब्दों का अकूत भंडार है जिसने साहित्यजगत में इन्हें विशिष्ट स्थान पर प्रतिष्ठित किया है । लेख वृहद न हो जाये इसलिए यहां दृष्टांत नहीं दे पाई पाठक गण क्षमा करेंगे ।
जितने लोकप्रिय प्राध्यापक थे उससे रंचमात्र कम लोकप्रिय लेखक तो नहीं ही थे । इनकी कृतियों को पढ़कर ” गद्यम कवीनाम निकषं वदन्ति ” सटीक लगता है । हिंदी , छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं के विशुद्ध गद्यकार थे ।
उनके जन्मदिन पर क्या लिखूं ?मन कातर हो उठा है , सुरता के बादर बरसने लगे है । कलम थक गई तो लिखना ही पड़ा …छत्तीसगढ़ के प्रखर वक्ता , प्रवीण प्राध्यापक , अदब के मजदूर मुसाफिर डॉ पालेश्वर प्रसाद शर्मा को ” आखर के अरघ ” दे रही हूं ।
लेखिका
सरला शर्मा
पद्मनाभपुर , दुर्ग
मोबाइल . 9826167502