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नए चेहरे मगर जमीन से जुड़े कार्यकर्ता को दिया जा सकता है मौका
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बिलासपुर । डेढ़ दशक तक सत्ता में रहने के दौरान भाजपा संगठन में मनोनयन का ही बोलबाला रहा और पार्टी के कार्यकर्ता इसको स्वीकार करते हुए संगठन के लिए न केवल कार्य करते रहे बल्कि सत्ता में पार्टी को लाने मेहनत भी करते रहे मगर अब पार्टी सत्ता से बाहर है और आने वाले चार साल तक सत्ता के खिलाफ संघर्ष करना है । विधान सभा चुनाव हारने के बाद भाजपा संगठन का जिला व मंडल स्तर पर पहला चुनाव होना है । आने वाले दिनों में सत्ता के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ सके और कार्यकर्ताओं को एक जुट रख सके ऐसे सक्रिय कार्यकर्ता को संगठन का जिला अध्यक्ष बनाये जाने की चर्चाओ के बीच यह भी संभावना है कि महामंत्री को जिला अध्यक्ष बनाये जाने की वर्षों पुरानी परंपरा इस बार टूट सकती है ।
भाजपा में प्राथमिक सदस्यता बनाने का काम चल रहा है और जो लोग निर्धारित संख्या में प्राथमिक सदस्य बना लेते है उन्हें सक्रिय सदस्य बनाया जा रहा है । सदस्यता को लेकर सभी कार्यकर्ता उत्साहित है ऐसा भी नही है । यह डेढ़ दशक बाद पहला मौका है जब भाजपा सत्ता से बाहर है और सदस्यता अभियान चल रहा है ।
पार्टी में संगठन चुनाव अब महज औपचारिकता रह गया है क्योंकि प्रदेश से लेकर मंडल स्तर तक अध्यक्ष का चुनाव मनोयनयन से कर दिया जाता है । राज्य निर्माण के पहले संगठन चुनाव के लिए आपसी सहमति नही बन पाने पर मतदान के द्वारा भी चुनाव हुए है ।
इसके पहले अमूमन यही होता रहा है कि राज्य की सत्ता में काबिज मंत्रियों के समर्थकों को मनोनयन के द्वारा संगठन की जिम्मेदारी दे दी जाती थी ताकि सता और संगठन के बीच तालमेल बनी रहे । इससे मंत्री का प्रभाव सत्ता और संगठन दोनो में रहने लगा मगर दूसरे पक्ष के कार्यकर्ता उपेक्षित होने लगे ।यह सिलसिला 15 से 20 वर्षो तक चलता रहा ।
छत्तीसगढ़ में सत्ता से बाहर हो जाने के बाद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश में संगठन चुनाव कराने पूर्व संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह को चुनाव प्रभारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय को उपचुनाव प्रभारी बनाया है । यानि प्रदेश के इन दो वरिष्ठ आदिवासी नेताओ को संगठन चुनाव कराने की जिम्मेदारी केंद्रीय नेतृत्व ने सौपी है ।
अभी तक जिला भाजपा के महामंत्री रहे अशोक पिगले , गिरीश शुक्ला , भूपेंद्र सवन्नी , राजा पांडेय और रजनीश सिंह को जिला भाजपा का अध्यक्ष बनाया जा चुका है। रजनीश सिंह तो विधायक भी बन गए और जिला भाजपा अध्यक्ष का भी कम देख रहे है । अभी वर्तमान में रामदेव कुमावत और घनश्याम कौशिक पार्टी के जिला महामंत्री हैं । श्री कौशिक तो 2 कार्यकाल से महामंत्री है मगर इस बार सम्भव है कि महामंत्री को जिला अध्यक्ष बनाने की परंपरा टूट जाये ।
संगठन के पुराने चुनाव जो यादगार बन गए
राज्य निर्माण के पूर्व अविभाजित मध्यप्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लखीराम अग्रवाल हुआ करते थे । उस समय भी पार्टी में गुटबाजी थी मगर लखीराम अग्रवाल की संगठन में पूरे प्रदेश में दबदबा हुआ करता था । श्री अग्रवाल दुर्दिन के दिनों में पार्टी संगठन का सफल नेतृत्व कर पार्टी को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया था । उन्ही दिनों मेसानिक हाल में जिला भाजपा अध्यक्ष के लिए चुनाव कार्यक्रम रखा गया था । आम सहमति नही बन पाने के कारण वोटिंग की नौबत आ गई । मुकाबले में डॉ डीपी अग्रवाल और भूपेंद्र सिंह ठाकुर थे । विवाद काफी बढ़ जाने पर भोपाल से लखीराम अग्रवाल ने फोन करके चुनाव स्थगित करने का आदेश दिया । चुनाव रोक देने को लेकर काफी बवाल होने लगा और नारेबाजी भी होते रही । जिला अध्यक्ष के प्रत्याशी भूपेंद्र सिंह ठाकुर विरोध करते हुए समर्थकों व कार्यकर्ताओं के साथ पूर्व मंत्री मूलचंद खंडेलवाल के निवास में पहुंच गए और वहां से चर्चा के बाद जुलूस के रूप में सारे लोग नारे लगाते हुए निकले और चुनाव रोकने पर विरोध जताया । आरोप यह भी लगाया गया कि मतदान की स्थिति आ जाने पर अपने अपने समर्थक प्रत्याशी की हार हो जाने की आशंका में लखीराम अग्रवाल ने संगठन चुनाव को स्थगित करवा दिया है ।
बाद में भूपेंद्र सिंह ठाकुर लखीराम अग्रवाल के खेमे में जाकर जिला अध्यक्ष बनने में कामयाब भी रहे ।
इसी तरह तिलक नगर राममंदिर में संगठन चुनाव होना नियत किया गया तो पूर्व सांसद निरंजन प्रसाद केशरवानी ने अपनी दावेदारी ठोकी तब लखीराम अग्रवाल खेमे ने निरंजन प्रसाद केशरवानी के रिश्तेदार और राज्य परिवहन निगम के पूर्व उपाध्यक्ष रहे भानु प्रसाद गुप्ता को श्री केशरवानी के खिलाफ प्रत्याशी उतार दिया । चुनाव मतदान के द्वारा हुआ और निरंजन केशरवानी चुनाव जीते । एक चुनाव भाजपा कार्यालय में भी जुलाई के महीने में हुआ था ।जिसके विरोध में लखी विरोधी खेमा कोर्ट चला गया था । जिसके चलते प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के साथ ही भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे को भी जिला न्यायालय से समन्स जारी हुआ था ।
दरअसल मतदान के द्वारा संगठन चुनाव कराने का समर्थन करने वाले पार्टी के नेता आज भी यह मानते है कि वोटिंग से वही प्रत्याशी चुनाव जीतता है जो कार्यकर्ताओ में ज्यादा लोकप्रिय हो लेकिन मनोयनयन से बनने वाला अध्यक्ष जरूरी नही है कि वह कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय हो । वह सिर्फ अपने गुटीय नेता के प्रति ही समर्पित हो तब भी मनोनयन से वह अध्यक्ष बन सकता है ।
दूसरी तरफ मनोनयन के पक्षधर नेता मानते है कि वोटिंग के जरिये चुनाव से गुटबाजी बढ़ती है और आपसी सम्बन्ध भी खराब होते है इसलिये पार्टी नेतृत्व आम सहमति से संगठन का चुनाव कराने में ज्यादा जोर देता है ।
पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष रहे बद्रीधर दिवान जब जिला भाजपा के अध्यक्ष रहे तो लखीराम अग्रवाल और अमर अग्रवाल से उनकी कभी नही बनी । उनके अध्यक्षीय कार्यकाल में अमर अग्रवाल बिलासपुर लोकसभा चुनाव के पार्टी की ओर से प्रभारी बनाये गए थे । चुनाव सम्पन्न होने के बाद श्री दिवान और अग्रवाल पिता पुत्र के बीच विवाद सार्वजनिक हो गया था । तब वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को बिलास पुर आकर श्री दिवान के निवास में पहुंच चर्चा करना पड़ा था । कालांतर में बेलतरा विधानसभा क्षेत्र से टिकट पाने के चलते श्री दिवान को विरोध करने के बजाय तटस्थ रहकर राजनीति करने का रास्ता चुनना पड़ा ।
[02/09, 20:43] निर्मल माणिक: वर्ष 1998 के बाद से भाजपा का जिले व सम्भाग में जनाधार निश्चित रूप से व्यापक बढ़ा और हर तरह के चुनाव में उसे सफलता मिलनी शुरू हो गई मगर भाजपा संगठन में 2 साल के भीतर ही अमर अग्रवाल खेमे का प्रभुत्व हो गया । विरोधी खेमा संगठन से अलग थलग पड़ गया । विरोधी खेमे के नेता या तो शांत बैठ गए या फिर उन्हें पूरी तरह उपेक्षित कर दिया गया । वर्ष 2003 में भाजपा के सत्ता में आते ही भाजपा संगठन में अमर अग्रवाल की ही चलने लगी । तमाम नियुक्तियां और मनोनयन तथा सभी प्रकार के चुनाव में प्रत्याशियों का चयन अमर अग्रवाल की पसंद और अनुमोदन तथा अनुशंसा से होने लगी ।पार्टी ने भी बिलासपुर सम्भाग को अमर अग्रवाल के हवाले कर दिया । इसका श्री अग्रवाल ने पार्टी को बेहतर रिजल्ट भी दिया । पूरे सम्भाग में भाजपा का व्यापक जनाधार बना मगर श्री अग्रवाल के विरोधी कहलाने वाले तमाम भाजपाई पार्टी तो नही छोड़े मगर वे पार्टी की सक्रिय राजनीति से अवश्य दूर हो गए । श्री अग्रवाल ने इसके बदले हजारों लोगों को पार्टी से जोड़ा जो उनके चुनाव में काम आते रहे लेकिन विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद अधिकांश ऐसे कार्यकर्ताओ का अतापता नही है ।
सत्ता से बाहर होने के बाद उनके साथ कितने कार्यकर्ता अभी भी जुड़े हुए है यह संगठन चुनाव से भी पता चल जाएगा । अभी तो यह भी स्पष्ट नही है कि भाजपा का अगला जिला अध्यक्ष कौन होगा मगर श्री अग्रवाल यह जरूर चाहेंगे कि जिला अध्यक्ष उनके पसन्द का ही हो ।