बिलासपुर । जगतगुरु शंकराचार्य जी अब हमारे बीच नहीं रहे । 33 साल पहले जब वे बिलासपुर आए तो उनका नागरिक अभिनंदन किया गया था तब के कार्यक्रमों को याद करते हुए अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता अभिजीत तिवारी ने जानकारी साझा की।
श्री तिवारी ने बताया कि श्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का वर्ष1989 में बिलासपुर आगमन हुआ था।इस वर्ष स्वामी जी अपने नागरिक अभिनंदन के अवसर पर सम्मिलित होने के लिए बिलासपुर आये थे और इस आयोजन का मैं अपनी 6 वर्ष की छोटी आयु में साक्षी रहा ।।
इस आयोजन में नगर के साहित्यकार,भाषाविद,अवंशिक्षाविद डॉ पालेश्वर प्रसाद शर्मा,पंडित रमाकांत मिश्र(साहित्य रत्न)एवं प्रो रामनारायण शुक्ल को छत्तीसगढ़ी ब्राह्मण समाज की ओर से कार्यक्रम के उचित संचालन ,एवं जगतगुरु के गरिमानुरूप वैदिक सत्कार एवं अनुशासन से युक्त निर्बाधय आयोजन की पृष्ट भूमि निर्माण की चिंता से ग्रस्त थे तब उसी दौरान नगर के हेतु चर्चा के दौरान नगर के सभ्रांत विधिवेत्ता साधुलाल गुप्ता जी का आगमन हुआ जो कि इस वार्तालाप का हिस्सा बने और अपना अभिमत व्यक्त करते हुए कहा कि चूंकि आयोजन हमारी धार्मिक आस्था से संदर्भित होने से है इसलिये आयोजन के मंच के संचालन हेतु पंडित रमाकांत मिश्र जी उपयुक्त होंगे ,पंडित जी आचरण एवं आवरण से सनातनिय ,मंत्रो के विद्वान,वैदिक कर्मकाण्ड के ज्ञाता,एवं हिन्दी व संस्कृत भाषा मे पण्डित जी की ज्ञान की गहराई एवं भाषा पर मर्यादा के कवच के समन्वय एवं संतुलन केवल पण्डित जी ही कर सकते हैं, और अंततःपण्डित रमाकांत मिश्र जी ने समारोह में संस्कृत में भाषण प्रस्तुत किया पंडित जी के भाषण से स्वामी जी अत्यंत प्रभावित हुए।
पंडित जी ने अपने उद्बोदन से स्वामी जी को अवगत करतेहुए बताया कि बिलासपुर जिले में छत्तीसगढ़ी ब्राह्मण समाज की प्रथम सामाजिक सम्मेलन वर्ष 1950 में बिलासपुर समाज के प्रसिद्ध विधिवेत्ता श्री कन्हैया लाल पाठक जी जो की बिलासपुर को स्वाधिनता आंदोलन एवं सहकारिता आंदोलन के अग्रदूत रहे,ने आयोजित किया एवं उक्त आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में अपने अग्रज आदरणीय व अनुकरणीय मालगुजार लोहरसी सोन एवं स्वाधीनता आंदोलन के अमर सेनानी पंडित श्यामसुंदर लाल तिवारी जी ने समेलन में मंच के माध्यम से समाज के संगठित रहने एवं प्रगति हेतु सुझाव पर विस्तार पूर्वक अपना उद्बोधन दिया।
पंडित रमाकांत मिश्र जी के उद्बोदन के पश्चात स्वामी जी ने वेदांत एवं सनातन धर्म पर विस्तार से उदबोधन दिया स्वामी जी के बिलासपुर में आयोजित कार्यक्रम अविस्मरणीय रहा।।
इस वर्ष मेरे जीवन मे दो महत्पूर्ण प्रसंग का अनुभव प्राप्त हुआ ,पहला -सन 1989 की अक्षय तृतीया तिथि में पूर्वज कृपा से हमारे भवन “उमा वदन” का गृह प्रवेश हुआ और हमारा परिवार नवीन भवन में आया,कुछ ही दिनों के पश्चात दूसरा महत्वपूर्ण प्रसंग जगतगुरु शंकराचार्य जी का बिलासपुर आगमन एवं देव कृपा से जगतगुरू के दर्शन लाभ हुआ साथ ही उन्हें समीप से सुनने,देखने,एवं चरण स्पर्श करने का सौभाग्य मुझे अपने जीवन के उत्तरार्ध में प्राप्त हुआ।
हमारे नवीन निवास स्थान में देव,पितृ के तसवीर के पश्चात जगतगुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद जी की तसवीर हमारे नवीन भवन के मुख्य बैठक कक्ष में हम तीनों भाई बहनों ने मिलकर स्थापित किया जो आज भी यथावत हैं, आज स्वामी जी भौतिक रूप से उपस्थित नही है, किंतु इसके पश्चात भी स्वामी जी की स्मृति हमारे परिसर “उमा वदन” एवं हमारे स्मृति पटल में सदैव आशीष स्वरूप विद्यमान रहेगी।।