अरुण दीक्षित
आज आप को बहुत खुश होना चाहिए!जी हां खुश होना चाहिए!
क्यों!
क्योंकि अपने एमपी ने बीमारू राज्य से देश का पहला “चीता राज्य” बनने का बहुत ही कठिन सफर पूरा जो कर लिया!
खुशी की थोड़ी डिग्री और बढ़ाइए…!
अरे ज्यादा सवाल मत करिए।सवाल बड़े साहब को पसंद नही है।इसी वजह से अपने मुख्यमंत्री को भी पसंद नही है।खैर अब पूछ ही लिया है तो सुन लीजिए!
हाड़ तोड़ मेहनत करके ये जो 8 चीते दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया से लाए गए हैं,ये कोई सामान्य चीते नही हैं।ये अपनी संख्या बढ़ाएं या ना बढ़ाएं पर इतना तय है कि कुपोषण के लिए नाम कमा चुके श्योपुर जिले में रोजगार के अवसर जरूर बढ़ाएंगे!अब ये मत पूछने लगना कि क्या ये चीते जिले के कुपोषित बच्चों के लिए “पोषण आहार” भी लेकर आए हैं?
अरे भाई अब ये आए हैं तो बहुत कुछ आएगा।जहां तक रोजगार की बात है तो जरा पता कर लो इनकी अगवानी भर के लिए कितने लोग “रोजगार” पा गए! कुछ को दिहाड़ी मिली! कुछ को दिहाड़ी की गारंटी मिली!कुछ ने अपने लिए स्थाई व्यवस्था कर ली!कुछ को लग रहा है कि उनका “काउंटर” लगा रहेगा!कई सोच रहे हैं कि पहले चीता सिर्फ पीता था..अब खायेगा भी!जब खायेगा पिएगा तो क्या दूसरों को खाने पीने के लिए नहीं पूछेगा?
अरे न पूछे तो भी कुछ नहीं।खुद खाकर थाली थोड़ी ना साफ करेगा!वे तो अपना काम जूठन से ही चला लेंगे!अरे भाई चीता है!जंगल के राजा का रिश्ते में भाई लगता है।इतनी दूर से, बड़े ठाठ से आया है।उसे भी तो इस बात का अहसास होगा कि अपने साथ साथ अपनी “प्रजा” का भी ख्याल रखना है। है कि नहीं?
भेड़िया और तेंदुआ की बात छोड़ दो!अपने भोपाल के गिद्ध और चंबल नदी के घड़ियाल याद हैं न!जब वे अपने कारिंदों का भरपूर ख्याल रखते हैं तो ये तो फिर चीते हैं।इन्हें तो अपनी साख बचा कर रखनी ही होगी।
अरे यार अब यह मत पूछो कि चीतों की पुनर्स्थापना हुई है या उन्हें नामीबिया से लाकर अपने एमपी में स्थापित किया गया है? अरे आप जानते तो हो!अपने एमपी के साहब लोग बहुत चटक हैं। उन्होंने पुनर्स्थापना करा दी यह क्या कम है। वे जिंदगी भर लोगों को “विस्थापित” ही करते रहे हैं। कभी अभ्यारण्य बना कर तो कभी बांध बना कर!अभी कुछ साल पहले ही तो मार्गदर्शक मंडल बनाया था।
अरे ठीक है..विस्थापन के बाद पुनर्वास भी किया!अगर वो नही करते तो अपना और भोपाल वाले बड़े साहबों का पुनर्वास कैसे हो पाता!पता है ये साहब लोग देश तो क्या अमरीका और ब्रिटेन तक में “पुनर्स्थापित” हो चुके हैं।इनकी अगली पुश्तें तो वहीं गिल्ली डंडा खेल रही हैं।
ये सवाल ठीक है..चीते लुप्त कब हुए थे?
अरे भाई पहले राजा फिर महाराज,फिर नवाब साहब और फिर लाट साहब!सबने मिल के चीते निपटा दिए थे।एक थे कोरिया रियासत के महाराज.. उन्ने 1948 में तीन चीते मारकर देश चीतों से खाली कर दिया था।
अब हर काम के लिए जिम्मेदार पंडित नेहरू ने यहां भी गड़बड़ कर दी।उन्होंने चार साल तक देश के जंगलों में चीते ढूंढबाए!चीते का पता बताने वाले को एक लाख का इनाम देने का ऐलान भी करवाया। इसके 1952 में उन्होंने भी हथियार डाल दिए!कह दिया -अब देश चीता विहीन हो गया है। सच में चीते देश से लुप्त हो गए!
अरे यार..अब बब्बर शेर और टायगर की बात तो मत ही करो! चार टांग वाले तो चिड़ियाघर में बंद हैं!जो जंगल में हैं उन्हें कभी देखा नहीं। हां जे दो टांग वाले हैं जो जब तब “दहाड़ते” रहते हैं! कोई कहता है – टाइगर अभी जिंदा है!तो किसी के चेले उसे आदमी की जमात से निकाल कर जानवर बना देते हैं। वे कहते हैं -अपना 56 इंच सीने वाला बब्बर शेर सब पर भारी है!
लो फिर वही सवाल!
अरे दुनियां भर में चीते या तो गुर्राते हैं या फिर अपनी बिल्ली मौसी जैसी आवाज निकालते हैं! लेकिन अपने 15 लाख वाले तो कुछ भी करा सकते हैं।उनका टाइगर मिमिया सकता है।और चीता दहाड़ सकता है।कुछ भी हो सकता है।इंदिरा गांधी बेनजीर भुट्टो के साथ शिमला समझौता कर सकती हैं। रडार बादलों की ओट में छिपे विमान नही पकड़ सकते हैं।बाबा नानक और कबीर एक साथ बैठ कर चिंतन कर सकते हैं?तो फिर चीते का दहाड़ना कौन बड़ी बात है?
अब इस सवाल का जवाब तो मैं कतई देने वाला नही हूं कि जन्मदिन पर चीता चीता का खेल और जन सेवा पखवाड़ा क्या “टायगर” को इनिंग पूरी करने में सहायक होंगे! या फिर दो टांग वाला बब्बर शेर गुजरात जैसा कोई खेल दिखाएगा?
देखो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर तो मैं एक शब्द न बोलूंगा!अरे कुछ भी हो अपना एमपी तो टॉप पर ही है ना?
बाकी आप सोचो और आप जानो..अपन तो यही कहेंगे.. कि..अपना एमपी गज्जब है। बोलो है कि नहीं!