
बिलासपुर । छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद प्रदेश में एसीबी और ईओडब्ल्यू ने वैसे तो भ्रष्टाचार और अनुपात हीन संपत्ति के मामले में अनेकों कार्रवाई की है और यह भी उल्लेखनीय है कि राज्य बनने के बाद प्रदेश शासन की नौकरी में जो भी शासकीय कर्मचारी अधिकारी एसीबी और ईओडब्ल्यू के बुने हुए जाल में फंसे हैं उनका बच पाना लगभग असंभव ही था यहां तक की अनेक अधिकारी रिटायरमेंट के बाद भी एसीबी और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई से नहीं बचे हैं तथा न्यायालयीन न्यायालयों के चक्कर काटते रहे हैं लेकिन वर्ष 2015: 16 में एसीबी और ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने जब इंजीनियरों पर हाथ डाला तो कई इंजीनियर एसीबी और ई ओ डब्ल्यू के अधिकारियों पर भारी पड़ गए हालांकि कुछ इंजीनियरों को जेल भी जाना पड़ा तो कुछ बरी हो गए लेकिन जिन अधिकारियों पर प्रकरण चलता रहा वह सब ले देकर अपने आप को साफ बचा लिया। एसीबी और ई ओ डब्ल्यू के फेंके गए जाल में अनेक इंजीनियर छेद करके बाहर निकल आए हालांकि जल संसाधन संभाग के तत्कालीन प्रभारी कार्यपालन अभियंता आलोक अग्रवाल ,प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के हरबंस सिंह और अभियंता सुधीर गुप्ता इनमें से अपवाद रहे और इन तीनों को जेल जाना पड़ा था मगर सुधीर गुप्ता कोर्ट से बाइज्जत बरी हो गए ।यहां पर एक और मामले का उल्लेख करना जरूरी है।
करीब 8, 10 साल तक ए सीबी और ई ओ डबल्यू के चालान पेश करने पर जेल जाने के मिथक को स्व इंजीनियर एस एन पाठक ने कोर्ट से अग्रिम जमानत हासिल कर तोड़ दिया था ।इस अप्रत्याशित सफलता में हमेशा परदे के पीछे रहने वाले “das”की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही ।यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि केवल आलोक अग्रवाल,हरबंश सिंह और सुधीर गुप्ता का मामला ही न्यायालय तक पहुंच पाया और शेष आरोपियों का मामला ए सी बी और ई ओ डबल्यू के दफ्तरों में ही रफा दफा हो गया ।अब उन मामलों की चर्चा भी नही होती। मगर अब तो सिर्फ it और ईडी की चर्चा छत्तीसगढ़ नहीं पूरे देश में हो रही है।देशभर के अनेक राज्यों में इन दोनो जांच एजेंसियों ने बहुतों का जीना हराम कर दिया है ।इसके रडार में आए अनेक लोगो को इधर उधर भागना और भूमिगत हो जाने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है ।दरअसल ई डी और आई टी का दायरा व्यापक है और किसी के बारे में पूरी तरह छानबीन कर लेने के बाद ही इन दोनो जांच एजेंसियों के अधिकारी व टीम हाथ डालते है ।अब छत्तीसगढ़ समेत जिन राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले है उनमें से कुछेक को छोड़शेष राज्यों में दोनों जांच टीम सक्रिय है। यह उल्लेखनीय है कि आई टी का लफड़ा तो किसी भी तरह कोशिश करके निपटा लिया जाता है लेकिन ई डी के चंगुल से बच पाना मुश्किल होता है ।वैसे भी ई डी छोटे या बड़े मछलियों पर हाथ नही डालती बल्कि यह विभाग मगरमच्छों की नाक में नकेल डालने वाला या यों कहें कि सुरुवा पिलाके बोटी उगलवा लेने वाला विभाग है और इसके जाल में बड़े मगरमच्छ ही फंसते है। वैसे भी ईडी के जानकार लोगों का कहना है कि ई डी के अफसर हल्के फुल्के या साधारण सबूतों के आधार पर कार्रवाई नही करते। ई डी का हाथ डालने का मतलब पुख्ता सबूतों के साथ 50 फीसदी तैयारी पूरी हो चुकी है । money trail पर पर ये सर्वाधिक छानबीन करते है।दस्तावेज और इलेक्ट्रोनिकस एविडेंस के पुख्ता प्रमाण होने पर ही इस विभाग के अधिकारी हाथ डालते है अन्यथा नहीं।
अब बात करें चुनावी वर्ष में ईडी और आईटी की प्रदेश में धमक की तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सार्वजनिक तौर पर यह बयान दिया है कि चुनावी वर्ष है इसलिए ईडी और आईडी का छत्तीसगढ़ में आना जाना लगा ही रहेगा यह तो ठीक है लेकिन इडी और आईटी के जाल में फसने वाले नौकरशाह व्यापारी और नेता इनका तो रात की नींद चली गई है और दिन का चैन गायब है ।रसूखदारों की भी सिफारिश काम नहीं आएगी । ई डी के जाल में फंसने का मतलब बत्तीस दांत के बीच में जीभ जैसे रहना है बचा सकते हो तो अपने को बचा लो अन्यथा सामाजिक प्रतिष्ठा तो धूमिल होनी ही है । हां इतना जरूर है कि चुनावी साल में ई डी और आई टी के धमक की राज जनता अच्छी तरह समझ रही है ।एक बात और है ई डी की टीम अपने साथ सी आर पी एफ का बल लेकर चलता है और कई मामलों में राज्य की पुलिस के साथ विवाद भी होता है ।चुनावी साल में यह भी देखने को मिल सकता है ।