अरुण दीक्षित
इन दिनों एमपी में एक यात्रा और उसके खिलाफ खुल रहे तरह तरह के मोर्चों के चर्चे जोरों पर हैं।इसी बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या कोई यात्रा सत्ता और सत्तारूढ़ दल को भयभीत कर सकती है?वह भी इतना भयभीत कि उसका असर कम करने के लिए साम दाम दण्ड भेद सहित हर संभव पैंतरा अपनाया जाए?
अगर पिछले कुछ दिनों के हालात पर गौर करें तो ऐसा ही कुछ आभास हो रहा है!
आइए अब यात्रा की बात करते हैं।भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी मध्यप्रदेश पहुंचने वाले हैं।केरल से शुरु हुई उनकी यह यात्रा अब तक अपना असर छोड़ने में कामयाब रही है। हर राज्य में यात्रा को पर्याप्त जनसमर्थन मिला है।एमपी वह पहला हिंदी भाषी राज्य है जहां राहुल का काफिला आ रहा है।एमपी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां कांग्रेस की चुनी हुई सरकार को गिराकर भाजपा की सरकार बनी है। कांग्रेस के सत्ता से हटने की मुख्य वजह “विभीषण” (विधायक) थे।वे आज भी चर्चा में हैं।राम के समय के विभीषण को तो अपने भाई का राजपाठ मिल गया था।लेकिन बताते हैं कि एमपी के इन विभीषणों ने कुबेर का खजाना तो हासिल किया ही साथ में सत्ता में भागीदारी
भी ली।यही वजह है कि जहां एक ओर विभीषण चर्चा में हैं वहीं दूसरी ओर उनके बल पर सरकार चला रहे “राम सेवक” भयभीत नजर आ रहे हैं।
शायद यही वजह है कि भारत जोड़ो यात्रा से जनता का ध्यान हटाने की भरपूर कोशिश की जा रही है।मजे की बात यह है कि इस कोशिश में कांग्रेस में मौजूद विभाषण के वंशज भी भरपूर मदद कर रहे हैं।
एक नजर उन घटनाओं पर डालते हैं जो पिछले दिनों सामने आई हैं।
राहुल की यात्रा की शुरुआत के समय से ही प्रदेश में कांग्रेस को बदनाम करने का रणनीति बनी।इसमें सरकार और सत्तारूढ़ दल के साथ सरकारी मशीनरी भी शामिल हुई।
सरकारी मशीनरी अपने स्तर पर जो कुछ कर सकती है वह कर रही है लेकिन सरकार और सत्तारूढ़ दल दोनों ने अब तक हर तरह की कलाबाजी दिखाई है।
सत्ता के गलियारों से एक बार फिर यह संदेश प्रसारित किया गया कि कुछ और विभीषण लंका छोड़ने को तैयार बैठे हैं।उनकी संख्या भी बताई गई।इस पर सत्तारूढ़ दल के नेताओं के बड़े बड़े बयान भी आए।अगर कुछ सामने नही आया तो यह कि कोई नया विभीषण कांग्रेस से नही निकला!लेकिन इस बात को लेकर सत्ता के सूत्र आज भी अटकलें चला रहे हैं।
ऐसी ही एक कोशिश यात्रा के प्रभार को लेकर कांग्रेस के भीतर चल रही उठापटक को लेकर भी हुई।लेकिन वह भी कारगर नही हुई।
इसके बाद हुआ इंदौर कांड!गुरुपरब पर इंदौर के सिखों ने कमलनाथ का सम्मान किया।उन्हें सरोपा भेंट किया।लेकिन कमलनाथ के जाते ही एक भजनी से बयान दिलाकर कमलनाथ पर सिख दंगो का आरोप फिर उछाला गया।खूब बयानबाजी हुई।सत्तारूढ़ दल ने यह ऐलान भी कर दिया कि अगर राहुल गांधी के साथ कमलनाथ इंदौर आए तो उन्हें काले झंडे दिखाएंगे।उनका विरोध करेंगे।जिस खालसा मैदान पर यात्रा को रुकना था उसे लेकर भी मुद्दा बनाया गया।इस पर जब सामने स्थित दूसरे परिसर का नाम आया तो यात्रियों द्वारा मांसाहार का मुद्दा बनाकर विरोध किया गया।कांग्रेस ने विवाद से बचने के लिए तीसरा स्थान खोज लिया।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई।1984 के सिख दंगों का संदर्भ देते हुए एक पत्र आ गया।जिसमें कमलनाथ को उड़ा देने की धमकी दी गई।फिलहाल पुलिस इस पत्र की जांच कर रही है।
इसी बीच सत्ता ने आदिवासी कार्ड भी खेला।भोपाल और शहडोल में बड़े आयोजन किए गए।राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को बुलाया गया।आदिवासियों को विशेष अधिकार देने का पुराना ऐलान दोहराया गया। आदिवासी इलाकों में पेसा कानून लागू करने का ऐलान किया गया।इसके साथ ही प्रदेश में पेसा जागरूकता यात्रा शुरू कर दी गई।खुद सरकार के मुखिया इन यात्राओं की निगरानी कर रहे हैं और इनमें शामिल भी हो रहे हैं।
इसी बीच एक कांग्रेसी आदिवासी नेता की निजी जिंदगी भी बड़ा मुद्दा बन गई।कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे इस युवा विधायक की कथित पत्नी की ओर से उनके खिलाफ यौन हिंसा और उत्पीड़न का मामला धार जिले में दर्ज कराया गया।पति पत्नी के बीच झगड़े की सार्वजनिक सूचना सरकार के प्रवक्ता ने मीडिया को दी।साथ ही यह भी बताया कि उक्त महिला विधायक की पांचवी पत्नी है।बताया जा रहा है कि विधायक के घर में काफी समय से युद्ध चल रहा था।लेकिन उसको सार्वजनिक करने का समय सोच विचार करके चुना गया।क्योंकि वह विधायक कांग्रेस के राष्ट्रीय पदाधिकारी भी हैं और हराने की तमाम कोशिशों के बाद भी तीन बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि यह भी सच है कि परिवार को लेकर विधायक महोदय पहले भी चर्चा में रहे हैं।पार्टी के भीतर दिग्विजय सिंह से उनकी लड़ाई भी जगजाहिर है।
फिलहाल विधायक महोदय फरार हैं।उन्होंने एक बयान जारी करके कहा है कि मैने महिला के खिलाफ बहुत पहले थाने में शिकायत की थी।लेकिन पुलिस ने कुछ नही किया।अब राहुल गांधी की यात्रा के समय यह मुद्दा इसलिए उठाया जा रहा है ताकि मेरा राजनीतिक जीवन खराब किया जा सके और आदिवासियों के बीच यात्रा का असर कम किया जा सके।
इस बीच एक और सरकारी फैसला भी सामने आया।उज्जैन प्रशासन ने महाकाल मंदिर में फोटो खींचने और वीडियो बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।हालांकि यह स्पष्ट नही है कि इस प्रतिबंध में मीडिया कवरेज शामिल है या नहीं।वैसे इस तरह का प्रतिबंध पुराना है।पर उसका पालन कोई नही करता था। अब इस आदेश को दुबारा निकालने का एक अर्थ यह लगाया जा रहा है कि मंदिर में राहुल की मौजूदगी का प्रचार रोकने की कोशिश की जा रही है।प्रशासन ने अभी तक स्थिति साफ नही की है।
फिलहाल जो माहौल है उसे देखते हुए ऐसा लग रहा है कि यात्रा का असर कम करने के लिए एक सुनियोजित मुहिम चलाई जा रही है।इसमें मुखिया,मंत्री,कार्यकर्ता,
अफसर,और आई टी सेल सब शामिल हैं।
वैसे इसके लिए कुछ हद तक कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भी जिम्मेदार है।आपसी समन्वय की कमी और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की कार्यशैली सत्तारूढ़ दल को पूरा मौका दे रही है।राहुल के स्वागत में जुट रहे कांग्रेस नेता अक्सर पौरुष के हाथियों की याद दिला देते हैं।
हां एक बात और!कुछ साल पहले तक भाजपा और कांग्रेस में ऐसी कटुता नही दिखती थी।जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराया था।दिग्विजय के घर जाने वालों में अटल विहारी बाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल थे।पूरी राष्ट्रीय कार्यसमिति उनके घर गई थी।अपने दस साल के कार्यकाल में दिग्विजय ने भाजपा नेताओं का भरपूर ख्याल रखा था।वर्तमान मुख्यमंत्री की भी पूरी मदद उन्होंने की थी।कहा तो यह भी जाता है कि अपने दस साल के राजनीतिक सन्यास में भी परोक्ष रूप से वे मददगार ही रहे।
लेकिन भाजपा नेताओं ने उनका कोई अहसान नहीं माना।जिस तरह के हमले उन पर भाजपा नेता करते रहे हैं वे सभी को चौंकाते हैं।खासतौर पर उन लोगों को जिन्होंने दिग्विजय से इमदाद पाने वाले भाजपा नेताओं को करीब से देखा है।
हो सकता है कि नए जमाने की राजनीति का यही चलन हो!लेकिन राहुल की यात्रा से पहले कांग्रेस की अंतर्कलह का उभार और सत्ता की साजिशों का खेल बहुत ही रोचक हालात में पहुंच गया है।देखना यह है राहुल के आने के बाद क्या होता है!
जो भी हो..इतना तो तय है कि अपना एमपी गज्ज़ब है!
है न?