अरुण दीक्षित
बीजेपी हाई कमान ने कर्नाटक विधानसभा के लिए अपने प्रत्याशियों की जो सूची अब तक जारी की है उससे उसने एक बड़ा संकेत दिया है।कर्नाटक में अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए उसने जो फैसले लिए हैं उन्हें उन राज्यों के लिए एक संदेश माना जाना चाहिए जो इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव से गुजरने वाले हैं।इन राज्यों में सबसे पहला नाम मध्यप्रदेश का है।
सब जानते हैं कि 2018 के चुनाव में बीजेपी ने तीन राज्यों,राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकारें खोई थीं।उसके लिए सबसे बड़ा झटका मध्यप्रदेश से आया था। जहां बहुत ही कम अंतर से उसकी हार हुई थी।छत्तीसगढ़ में बीजेपी की बहुत ही बुरी हार हुई थी।जबकि राजस्थान की जनता ने हर चुनाव में सरकार बदलने का अपना फैसला बरकरार रखा था।
यह अलग बात है कि कांग्रेस में आंतरिक कलह की वजह से हार के करीब सवा साल बाद बीजेपी ने मध्यप्रदेश में फिर से सत्ता हासिल कर ली थी।मजे की बात यह है कि कांग्रेस में विभाजन के जरिए सत्ता पाने के बाद बीजेपी नेतृत्व ने उन्हीं शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री बनाया जिनकी अगुवाई में वह चुनाव हारी थी।उधर कांग्रेस आज भी यह आरोप लगाती है कि पैसे के बल पर उसकी सरकार को गिराया गया था।उसके विधायक खरीदे गए थे।उसके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ शिवराज सिंह ही हैं।
राजनीतिक क्षेत्रों में यह माना जा रहा था कि बीजेपी नेतृत्व कर्नाटक में ऐसे फैसले नही करेगा जो स्थानीय नेताओं को अच्छे न लगें।क्योंकि दक्षिण में कर्नाटक ही वह राज्य है जिसमें वह सरकार बनाने में सफल हो पाई है।इसके लिए उसने अपने तमाम सिद्धांतों से समझौते किए थे और अब भी कर रही है।
लेकिन इस बार उसने ऐसा किया नहीं।कर्नाटक विधानसभा के लिए घोषित प्रत्याशियों की सूची यह बता रही है कि अब बीजेपी का लक्ष्य सत्ता हासिल करना है,नेताओं को साधे रखना नहीं।हालांकि यह भी कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री की पसंद का पूरा ख्याल रखा गया है।लेकिन साथ ही कई बड़े नेताओं को घर बैठा दिया गया है।
यही वो बात है जिसे मध्यप्रदेश के लिए खास संदेश माना जा रहा है।दरअसल कांग्रेस के एक धड़े को साथ लेकर सरकार बनाते समय बीजेपी ने अपने कई बड़े नेताओं को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था।ऐसा करना उसकी संवैधानिक मजबूरी भी थी और सरकार में रहने का लालच भी।क्योंकि जिनकी मदद से उसने सत्ता हासिल की थी उन्हें सत्ता में हिस्सा देना पहली शर्त थी।
पिछले तीन साल में मध्यप्रदेश में बीजेपी के भीतर बहुत कुछ बदला है।पुरानी पीढ़ी के कई नेताओं को घर बैठा दिया गया है।जो विधानसभा के सदस्य हैं उन्हें मंत्रिमंडल में नही लिया गया।जो मंत्री हैं उनके लिए आगे का रास्ता बंद करने की तैयारी सार्वजनिक हो चुकी है।वरिष्ठ नेताओं की अगली पीढ़ी को परिवारवाद के नाम पर आगे आने से रोकने की व्यवस्था की जा चुकी है!
आज प्रदेश में हालत यह है कि संगठन
अब “निष्ठा” और “शुचिता” जैसे शब्द अपने मानी खो चुके हैं।और बीजेपी भी अटल आडवाणी युग से काफी आगे निकल आई है।
माना जा रहा है कि कर्नाटक चुनाव से निपटने के बाद ऑपरेशन मध्यप्रदेश शुरू होगा।इस ऑपरेशन में एक ही टार्गेट होगा !वह है जीत का!इस जीत के लिए नीति,निष्ठा और नैतिकता को दरकिनार किया जा सकता है।वैसे भी बीजेपी इनका परित्याग कर ही चुकी है।
Sat Apr 15 , 2023
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