Explore

Search

November 21, 2024 8:05 pm

Our Social Media:

शब्द संघानी डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा जिनकी कल एक मई मजदूर दिवस को जन्म दिवस है

शब्द संघानी डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा

प्रस्तुति — सरला शर्मा दुर्ग

छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा का जन्म दिन है 1 मई जो मजदूर दिवस के नाम से जाना जाता है, उन्होंने कहा था मजदूर दिवस था जब मैं धराधाम में आया इसीलिए तो जीवन भर हाथ में कलम लेकर साहित्य की मजदूरी करता रहा हूं। लगभग पचास साल तक उनकी कलम हिंदी और छत्तीसगढ़ी में लिखती रही, साहित्य का भंडार भरने में जुटी रही।

अंग्रेजी अध्यापक के रूप में कर्म जीवन का आरंभ हुआ, हिन्दी के प्रवीण प्राध्यापक रहे प्रबुद्ध साहित्यकार, प्रखर वक्ता थे तो सुधि पाठक भी थे उनकी कृतियां गहन अध्ययन का प्रतिबिंब ही तो हैं।

छत्तीसगढ़ी के विषय में उनके विचार स्मरणीय है, संस्कृत की विभक्ति निष्ठा छत्तीसगढ़ी में ज्यों की त्यों है, क्रियापदों, कारक चिन्हों में लिंगभेद नहीं है। संस्कृत की अंतः सलिला छत्तीसगढ़ी में निरंतर प्रवाहित हो रही है। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में तत्सम का परिवर्तित रूप उच्चारण भेद के साथ रम गया है, जग गया है, थम गया है।”

लोकभाषा की समृद्धि के मूल में उसकी लोकोक्तियां होती हैं। छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ की अस्मिता है उसकी पाहचान है, उसकी संस्कृति है ..लोकभाषा के माध्यम से ही संस्कार अंकुरित होते हैं। उनकी कृतियां छत्तीसगढ़ के तीज त्यौहार, छत्तीसगढ़ के लोकोक्ति मुहावरे, गुड़ी के गोठ, सुसक झन कुररी सुरता ले, आदि के साथ आकाशवाणी में प्रसारित उनके मंतव्य, विभिन्न आयोजनों में व्यक्त वक्तव्य डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा के कथन का जीवंत प्रमाण है।

लेखकीय कौशल के साथ ललित, ध्वन्यात्मक शब्दावली उनकी अन्यतम विशेषता है जो तिरिया जनम झनि देय और सुरूज साखी हैं कृतियों में पूरी गरिमा के साथ उद्घाटित हुआ है। यहां उनकी धार्मिक आस्था का उल्लेख भी समीचीन है जिसका प्रतिफल पाठक वर्ग को नमोस्तुते महामाये” में मिलता है। यह कृति छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक वैभव की शक्ति आराधना की प्रकृति के महिमा मंडन की गाथा है। धर्म के बिना सत्साहित्य का और सत्साहित्य का धर्म के बिना महिमामण्डित होना असंभव नहीं तो दुष्कर अवश्य है। उन्होंने लिखा है “यह अक्षर की आराधना है, शब्दों की उपासना है, पार्वती की प्रार्थना है इसमें धर्म भी है, इतिहास भी है। इसमें वर्तमान भी है अतीत भी है, अभ्युदय भी हैं निःश्रेयस भी है याचना भी है प्रार्थना भी है… व्यथा भी है कथा भी है।” हम उनके समस्त साहित्य को इसी दृष्टि से देखें तो उनके विचारों को आत्मसात करने में सरलता होगी।

सुसक झन कुररी सुरता ले और तिरिया जनम झनि देय ये दोनों कृतियां स्त्री विमर्श की अन्यतम रचनाएं हैं जो छत्तीसगढ़ी और हिन्दी की प्रतिनिधि कृतियां है। पाठक द्रवित होता है, कभी सिसक उठता है तो मन प्राण क्रौंची की व्यथा से कातर हो उठते हैं…. अनयास ओठ बुदबुदा उठते हैं तिरिया जनम झनि दे….!

बांग्ला साहित्य के अद्भुत कथाशिल्पी शरत् चन्द्र चट्टोपाध्याय, हिन्दी के यशस्वी छायावादी साहित्यकार जयशंकर प्रसाद, छत्तीसगढ़ के डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा इन तीनों को विधाता ने पुरूष देह में हृदय स्त्री का दिया होगा तभी तो इन लोगों के सृजन में मन्द्र स्वर में करूणा कलित रागिनी सुनाई पड़ती है। नारी हृदय की चिर संचित व्यथा, सर्वस्व समर्पण की अभिलाषा, अकूत त्याग, अवांछित उपेक्षा, सांद्र अनुभूतियां गलबहियां डाले पाठक के मानस में बरसने लगती है। समस्त नारी वर्ग इन साहित्यकारों का ऋणी रहेगा क्योंकि धन्यवाद ज्ञापन के लिए तो शब्द कम पड़ जायेंगे ।

सबसे बड़ी विशेषता उनकी मौलिकता रही है किन्तु भारतीय संस्कृति की प्रभा जरा भी निस्तेज नहीं हो पाई है। यही कारण है कि उनके साहित्य में ऋषि संस्कृति और कृषि संस्कृति साथ साथ चलती रही है। निश्छल मन ने सबको अपना माना।

आजीवन अपने संचित ज्ञान कोष को उदारता पूर्वक अपने पराए सब पर लुटाते रहे संभवतः ऐसे व्यक्ति के लिए ही हरिवंश राय बच्चन ने लिखा है:

यदि छिपाना जानता तो, जग मुझे साधु समझता, शत्रु मेरा बन गया, छल रहित व्यवहार मेरा ।”

साहित्य सेवक, कलम के मजदूर, शब्दशिल्पी डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा की जयंती पर शतशः नमन

Next Post

नंद कुमार साय ने भाजपा से दिया इस्तीफा,पार्टी में सन्नाटा,चुनाव के पहले ओबीसी और आदिवासियों को साधने में लगी भाजपा के समक्ष नया संकट

Sun Apr 30 , 2023
रायपुर।विधान चुनाव से पहले  भाजपा जहां पिछड़ा वर्ग और आदिवासी समाज के वोटों को साधने तमाम तरह की जुगत लगाने में लगा हुआ है और भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर छत्तीसगढ़ में ही है तब पार्टी को करारा झटका देते हुए  भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता डॉ. नंद कुमार […]

You May Like