बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एण्टी करप्शन ब्यूरो के पूर्व पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह एवं अन्य की याचिका रिट पीटिशन 536 / 2020 एवं 564 / 2020 में पूर्व में पारित आदेश के तहत लगायी गयी रोक को हटाते हुये जांच जारी रखने का आदेश दिया है। इस संबंध में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में शिकायतकर्ता पवन अग्रवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता किशोर भादुड़ी एवं अधिवक्ता श्रेयांश अग्रवाल ने पक्ष रखा।उल्लेखनीय है कि बिलासपुर निवासी पवन कुमार अग्रवाल द्वारा एसीबी के तत्कालीन चीफ मुकेश गुप्ता, एसीबी के एसपी रजनेश सिंह, ईओडब्ल्यू के एसपी अरविंद कुजुर, डीएसपी अशोक कुमार जोशी एवं अन्य अधिकारियों के विरूद्ध शासकीय दस्तावेजों में कूटरचना करके फर्जी दस्तावेज तैयार करने एवं एवं कम्प्यूटर से हुबहु फर्जी एफआईआर तैयार कर कार्यवाही करने के संबंध में माननीय सीजेएम न्यायालय में परिवाद दायर किया था जिसमें न्यायालय ने दिनांक 24.12.2019 को सिविल लाइन थाना बिलासपुर को दोषी अधिकारियों के विरूद्ध अपराध दर्ज करने के निर्देश दिया था।
न्यायालय के आदेश के पालन में सिविल लाइन थाना बिलासपुर ने भारतीय दण्ड संहिता की गंभीर धाराओं 120 (बी), 420, 467, 468, 471, 472, 213, 218, 166 167, 382, 380 के तहत अपराध क्र. 791 / 2020 दर्ज कर विवेचना प्रारंभ की थी इसी बीच एसीबी के निलंबित पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह एवं अन्य के द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर पर माननीय न्यायालय ने जांच पर रोक लगा दी थी।
उल्लेखनीय है कि एसीबी के अधिकारियों ने खारंग संभाग बिलासपुर के कार्यपालन अभियंता आलोक कुमार अग्रवाल एवं अन्य अधिकारियों द्वारा जिन 15 टेंडर्स में करोड़ो रूपये की अनियमितता किये जाने एवं चहेते ठेकेदारों को टेंडर देने के संबंध में हुयी फर्जी शिकायत को सही ठहराकर वर्ष 2014-15 में झूठी कार्यवाही की गयी थी. उन सभी टेंडरों में आलोक अग्रवाल द्वारा कोई भी टेंडर स्वीकृत नहीं किये जाने और सभी टेंडर सही प्रक्रिया का पालन करते हुये मुख्य अभियंता एवं अधीक्षण अभियंता द्वारा निविदा में पात्र सही ठेकेदारों के टेंडर स्वीकृत किये जाने के संबंध में एसीबी के उपरोक्त अधिकारियों द्वारा स्वयं ही दिसंबर 2018 में किसी भी प्रकार का अपराध न पाये जाने का खात्मा रिपोर्ट तैयार कर दिया था जिसे न्यायालय में प्रस्तुत भी कर दिया गया है। उन टेंडरों में परिवादी पवन कुमार अग्रवाल ने ना ही कभी भाग लिया था ना ही उनको कोई भी निविदा आबंटित की गयी थी। एसीबी के अधिकारियों द्वारा जिस एफआईआर 56 / 2014 के आधार पर कार्यवाही करना दिखाया गया था वैसी कोई भी एफआईआर एसीबी ईओडब्ल्यू रायपुर के थाने में संधारित वैध एफआईआर बुक के पन्नों में पंजीबद्ध ही नहीं है। बल्कि विधि प्रावधानों के विपरीत कम्प्यूटर से फर्जी कूटरचित एफआईआर तैयार करके कार्यवाही किये जाने के संबंध में दस्तावेजी सबूतों के साथ दायर परिवाद में एसीबी के तत्कालीन शीर्ष अधिकरियों के विरूद्ध अपराध दर्ज करने के न्यायालयीन आदेश पर अब पुनः जांच हो सकेगी।
Wed May 10 , 2023
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