बिलासपुर। राजनीति में वंशवाद और परिवारवाद को लेकर भारी आरोप-प्रत्यारोप चल रहा है और वंशवाद भी अच्छी तरह से फल फूल रहा है। चुनाव आते ही बड़े राजनीतिक नेता अपने अपने बेटे, भतीजे, बेटियां तथा परिवार की राजनीति में रुचि रखने वाले सदस्यों को टिकट दिलाने के लिए एड़ी चोटी एक कर देते हैं। इस पुण्य कार्य में कई नेता सफल होते हैं और कई इस बार ना सही अगले बार सही कह कर संतोष कर लेते हैं।
देश और प्रदेशों की राजनीति में वंशवाद का बड़ा योगदान है। यहां पर हम देश और प्रदेश की बात न करते हुए बिलासपुर संभाग में राजनीति में वंशवाद की क्या स्थिति है इस पर नजर डालने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे देखा जाए तो बिलासपुर संभाग एक अपवाद ही है कि यहां पर वंशवाद की राजनीति ज्यादा पुष्प पल्लवित नहीं हो पाई।
अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान भी इस संभाग के कद्दावर नेताओं के परिवार में तथा पुत्रों के राजनीति में आने की रूचि नहीं रही या फिर यूं कहा जाए कि ज्यादातर नेता पुत्र राजनीति में अपने आप को फिट नहीं कर पाए। यहां पर हम सिलसिलेवार अधिकांश राजनेताओं के बारे में जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं।
बिलासपुर संभागीय मुख्यालय में कद्दावर नेता समझे जाने वाले और मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहने वाले डॉक्टर श्रीधर मिश्रा के सुपुत्र शिवा मिश्रा आज भले ही प्रमुख कांग्रेसी नेता है लेकिन कांग्रेस पार्टी ने उन्हें किसी भी चुनाव में पार्टी की टिकट नहीं दी हालांकि वे अभी भी प्रयास नहीं छोड़े हैं।
मध्यप्रदेश विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष रहे और विधान पुरुष की उपाधि से नवाजे गए कोटा के विधायक स्व मथुरा प्रसाद दुबे की बेटी नीरजा द्विवेदी राजनीति में आकर टिकट पाने की बहुत कोशिश की मगर पार्टी ने उन्हें महत्व नहीं दिया । स्व मथुरा प्रसाद दुबे के निधन के बाद उनके भांजे और राजनीति में मंजे हुए खिलाड़ी, दबंग व्यक्तित्व के धनी राजेंद्र प्रसाद शुक्ला को कांग्रेस ने कोटा से प्रतिनिधित्व का मौका दिया हालांकि वे लोरमी पंडरिया से भी विधायक रहे ।राजेंद्र प्रसाद शुक्ला भी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष रहे इस दौरान उनकी बिलासपुर ही क्या पूरे प्रदेश और देश तक में तूती बोलती थी लेकिन उनके निधन के पश्चात उनके पुत्र डॉ प्रदीप शुक्ला और सुनील शुक्ला भी राजनीति में “मिसफिट” रहे ।
दिवंगत राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के निधन के बाद कोटा विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के पुत्र तथा टिकट के प्रबल दावेदार सुनील शुक्ला को पता नहीं किस तरह मनाया कि सुनील शुक्ला ने दावेदारी ही छोड़ दी और अजीत जोगी ने अपनी पत्नी डॉक्टर रेणु जोगी को कोटा उपचुनाव में प्रत्याशी बनवाने में सफल रहे जो आज भी वहां की विधायक हैं।
इसी तरह बिल्हा विधानसभा क्षेत्र से लगातार चुनाव जीतने वाले और मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहे स्वर्गीय चित्रकांत जायसवाल के परिवार से भी कोई भी राजनीति में नहीं आया उनके सुपुत्र प्रशांत जायसवाल जो पेशे से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता है और वकालत में ही अच्छा नाम कमाने का निर्णय लेते हुए राजनीति में नहीं आए स्वर्गीय चित्रकांत जायसवाल की धर्मपत्नी श्रीमती सरला जायसवाल भी राजनीति में लगभग” मिसफिट” रही ।कांग्रेस ने उन्हें भी कोई मौका नहीं दिया। भारतीय जनता पार्टी में अविभाजित मध्यप्रदेश के पार्टी संगठन के अध्यक्ष रहे पार्टी के दमदार नेता स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल के पुत्र अमर अग्रवाल वर्ष 19 90 से ही राजनीति में कदम रख चुके थे और अपने पिता लखीराम अग्रवाल की पार्टी में प्रभावों की बदौलत पहले वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष बने और योजनाबद्ध ढंग से सक्रिय राजनीति में आते हुए वर्ष 1998 में बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी की टिकट पाने में सफल रहे। उस वक्त भारतीय जनता पार्टी में और भी कई वरिष्ठ नेता रहे लेकिन ऐसे नेताओं को दरकिनार करते हुए अमर अग्रवाल को भारतीय जनता पार्टी ने प्रत्याशी बनाया और अमर अग्रवाल ने पहली बार चुनाव लड़ते हुए कई बार के कैबिनेट मंत्री रहे बी आर यादव को चुनाव में पराजित कर यह बता दिया कि पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी बनाने का जो निर्णय लिया था वह एकदम सही था। उसके बाद अमर अग्रवाल ने 2018 तक पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति के कई तूफानों को तय करते हुए भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में लगातार कैबिनेट मंत्री रह कर राजनीति के तमाम दांवपेच को न केवल सीखा वरन उन दांवपेंचो को विरोधियों और अपनी ही पार्टी के गुटीय विरोधियों लिए इस्तेमाल भी करना उन्हें बखूबी आया।
यह उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में बेहतर चुनावी प्रबंधन के लिए भाजपा के जिन दो विधायकों का नाम प्रमुखता से लिया जाता रहा है उसमें एक तो बृजमोहन अग्रवाल तो दूसरा अमर अग्रवाल है हालांकि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में अमर अग्रवाल का चुनावी प्रबंधन बुरी तरह फेल हो गया और वह मैं कांग्रेस के नए नवेले प्रत्याशी शैलेष पांडेय से चुनाव हार गए।
मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में बिलासपुर के ही कई महत्वपूर्ण कैबिनेट मंत्री रहे और पत्रकारिता से राजनीति में आए बी आर यादव के परिवार में भी राजनीति में बहुत ज्यादा सक्रिय रहने वाले कोई सदस्य नहीं निकले। उनके सुपुत्र कृष्ण कुमार यादव को कांग्रेस में विधानसभा चुनाव में एक बार प्रत्याशी बनाया मगर वे चुनाव हार गए हालांकि उन्हें वर्तमान में कांग्रेस पिछड़ा वर्ग के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से ही संतोष करना पड़ रहा है जबकि वे अपने पिता स्व बी आर यादव के मंत्रित्वकाल से ही कांग्रेस के बड़े नेता, उद्योगपति कमलनाथ से उनकी बहुत नजदीकी संबंध है। स्व बी आर यादव के दामाद भुवनेश्वर यादव जिला पंचायत के सदस्य तथा प्रभारी अध्यक्ष भी रहे उन्हे कांग्रेस ने उन्हें दो बार विधानसभा का प्रत्याशी बनाया और वे दोनों ही बार चुनाव हार गए जबकि भुनेश्वर यादव के छोटे भाई राम शरण यादव वर्तमान में बिलासपुर नगर निगम के महापौर हैं ।
मध्यप्रदेश में तखतपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक रहे रोहणी बाजपेई के पुत्रों में से एक डा विवेक बाजपेई कांग्रेस में पदाधिकारी तो है लेकिन पार्टी ने उन्हें अभी तक प्रत्याशी नहीं बनाया है हालांकि पार्टी ने स्वर्गीय रोहिणी बाजपेई की बेटी रश्मि सिंह को तखतपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मौका दिया और वर्तमान में वे संसदीय सचिव है। मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र से कई बार विधायक बनकर मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री से लेकर कई विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे बंसी लाल ध्रतलहरे के परिवार से अभी तक सक्रिय राजनीति में कोई भी नहीं आ पाया ।
इसी तरह बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में खाद्य मंत्री रहे स्वर्गीय मूलचंद खंडेलवाल के दोनों पुत्रों दीपक खंडेलवाल और संजय खंडेलवाल को भी भारतीय जनता पार्टी ने कभी मौका नहीं दिया हालांकि दीपक खंडेलवाल पिछले चुनाव में लोकसभा प्रत्याशी के लिए पार्टी नेताओं के समक्ष प्रयास जरूर किए थे।
बिलासपुर जिले के एक और पुराने मंत्री स्वर्गीय गणेश राम अनंत के भी परिवार से कोई भी सक्रिय राजनीति में नहीं आया।पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्रीमती इंदिरा गांधी की सीधी कृपा से बिलासपुर लोकसभा (सुरक्षित) से कांग्रेस की टिकट पाकर सांसद बने गोदिल प्रसाद अनुरागी की पुत्री तान्या अनुरागी को भी कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया मगर वे भाजपा प्रत्याशी पुन्नू लाल मोहले से चुनाव हार गई उसके बाद पार्टी ने उन्हें कभी मौका नहीं दिया ।
उधर मरवाही विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुनकर कई बार कैबिनेट मंत्री रहे और भाजपा में शामिल हो सुंदरलाल पटवा मंत्रिमंडल में पशुपालन मंत्री रहे डॉक्टर भंवर सिंह पोर्ते के परिवार से भी किसी को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला हालांकि उनकी धर्मपत्नी हेमवंत पोर्ते को तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाकर उपकृत किया ।स्वर्गीय डॉक्टर पोर्ते के दो सुपुत्र हैं वही उनकी पुत्री अर्चना पोर्ते भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर मरवाही से चुनाव लड़ी लेकिन वह हार गई बाद में कांग्रेस में शामिल हो गई।वे अजजा आयोग की सदस्य हैं। बात अजीत जोगी की हो रही तो वे सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रहे ।उनकी धर्मपत्नी डा रेणु जोगी आज भी कोटा की विधायक है जबकि उनके सुपुत्र अमित जोगी मरवाही से एक बार विधायक रहे लेकिन श्री जोगी ने बसपा से गठबंधन के तहत अपनी बहू रिचा जोगी को अकलतरा से बसपा की टिकट चुनाव लड़वाया मगर वे हार गई।
इसी प्रकार राज्यसभा सदस्य रहे स्व भगत राम मनहर और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला मनहर को भी राज्यसभा में कांग्रेस में भेजा मगर उनके परिवार से अभी तक ना कोई विधायक है और ना ही कोई सांसद हालांकि उनके सुपुत्र जयंत मनहर मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव से ही टिकट हासिल करने काफी प्रयास कर रहे हैं एवं मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं से लगातार संपर्क में है ।
मध्यप्रदेश शासन में स्वास्थ्य मंत्री रहे स्व अशोक राव की 3 बेटियां है इसलिए उनके परिवार से उनके बाद राजनीति में कोई नहीं आया हालांकि उनकी भाई बहू श्रीमती वाणी राव बिलासपुर नगर निगम की महापौर रही। विधानसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली।श्रीमती वाणी राव वर्तमान में कांग्रेस की पदाधिकारी है। मध्यप्रदेश शासन में राज्य मंत्री रहे डॉक्टर भानु गुप्ता के परिवार से भी किसी को भारतीय जनता पार्टी ने सक्रिय राजनीति में आने का मौका नहीं दिया वही सिंचाई मंत्री रहे स्वर्गीय मनहरण लाल पांडे के सुपुत्र अनुराग पांडे तो राजनीति में नहीं आए लेकिन उनकी पुत्री हर्षिता पांडे को भारतीय जनता पार्टी ने तखतपुर से चुनाव लड़ने का मौका दिया मगर वे चुनाव हार गई ।वे भारतीय जनता पार्टी की सक्रिय राजनीति में है ।वे राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य और राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष भी रही और वे अभी भी टिकट की दावेदार मानी जा रही है।
बिलासपुर लोकसभा से तीन बार सांसद रहे और मुंगेली से लगातार विधायक निर्वाचित होते आ रहे पूर्व मंत्री पुन्नू लाल मोहले भी ऐसे शख्स हैं जिनके परिवार का कोई भी सदस्य और उनके कोई भी सुपुत्र सक्रिय राजनीति में नहीं आ पाये है।
रामपुर विधानसभा क्षेत्र से कई बार के विधायक पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर की बात करें तो उनकी पत्नी शकुंतला कंवर जिला पंचायत की अध्यक्ष रही तो उनके सुपुत्र संदीप कंवर जिला पंचायत सदस्य थे। इसी तरह मध्य प्रदेश शासन के उप मुख्यमंत्री रहे प्यारेलाल कंवर के परिवार के सदस्य श्याम लाल कंवर ने ननकी राम कंवर को विधानसभा चुनाव में हराया था।उनके परिवार से कोई राजनीति में नहीं है।अविभाजित बिलासपुर
जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तथा कई बार विधायक रहे बोधराम कंवर के सुपुत्र पुरुषोत्तम कंवर वर्तमान में कटघोरा सामान्य सीट से विधायक है।
जांजगीर के सांसद रहे प्रभात मिश्रा के परिवार से भी कोई राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर नहीं रहे। इसी तरह बिलासपुर के पूर्व सांसद मुंगेली के पूर्व विधायक और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय डॉक्टर खेलन राम जांगड़े के परिवार से भी कोई भी राजनीति में नहीं आ पाए।
इसी तरह बिलासपुर के सांसद और जरहागांव के विधायक रहे निरंजन केशरवानी के परिवार से भी कोई विधायक या सांसद नहीं बन पाया हालांकि उनके परिवार से कुछ लोग स्थानीय राजनीति में सक्रिय रहे हैं। चांपा के विधायक रहे और मध्यप्रदेश शासन में जेल व खाद्य मंत्री रहे बलिहार सिंह के निधन के बाद उनके परिवार से भी किसी को राजनीति में आने का मौका नहीं मिला। राज्यसभा सदस्य अधिवक्ता गोविंदराम मिरी के परिवार से किसी को भाजपा ने राजनीति में आने और पद पाने का मौका नहीं दिया हालांकि उनके अधिवक्ता पुत्र संजय गिरी ने भारतीय जनता पार्टी से मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाए जाने की मांग कई बार की छत्तीसगढ़ विधानसभा में अध्यक्ष रहे ।
मस्तूरी के वर्तमान और 3 बार विधायक निर्वाचित पूर्व मंत्री डा कृष्ण मूर्ति बांधी के परिवार से भी कोई सक्रिय राजनीति में नहीं है।
बिल्हा विधानसभा के वर्तमान विधायक, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक के पुत्रों को भी अभी भारतीय जनता पार्टी में मौका नहीं मिला है।
जांजगीर और सारंगढ़ लोकसभा क्षेत्र से कई बार सांसद रहे स्वर्गीय परसराम भारद्वाज के सुपुत्र रवि भारद्वाज को कांग्रेस ने लोकसभा प्रत्याशी बनने का मौका दिया लेकिन भाजपा के गुहाराम अजगले ने उन्हें पराजित किया।
जांजगीर से एक और सांसद रहे स्वर्गीय मदनलाल शुक्ला के परिवार से भी किसी को भारतीय जनता पार्टी अभी तक मौका नहीं दिया है हालांकि उनके एक सुपुत्र अधिवक्ता है तो वहीं दूसरा सुपुत्र भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय हैं ।
बात करें मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री रहे स्व अर्जुन सिंह के द्वारा मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनवाए गए स्व बिसाहुदास महंत के सुपुत्र और नायब तहसीलदार की नौकरी छोड़ राजनीति में आए छत्तीसगढ़ विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत की तो वे सांसद भी रहे, विधायक भी रहे, राज्य और केंद्र में मंत्री भी रहे, उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ज्योत्सना महंत वर्तमान में कोरबा के सांसद हैं ।अब चर्चा यह है कि डॉक्टर महंत के सुपुत्र भी सक्रिय राजनीति में आने को तैयार हैं।
भाजपा ने जिस दिलीप सिंह जूदेव को हिंदू हृदय सम्राट की उपाधि से नवाजा था उसी जूदेव को लोकसभा चुनाव में पराजित कर राजनीति में नया आयाम स्थापित करने वाले कांग्रेस के व्योवृद्ध नेता भवानी लाल वर्मा के सुपुत्र नोबेल वर्मा चंद्रपुर से सिर्फ एक बार विधायक का चुनाव जीत पाए अभी वे वर्तमान में ncp के प्रदेश अध्यक्ष हैं ।
मध्य प्रदेश शासन में कैबिनेट मंत्री रहे सक्ती के राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह के परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं है । सक्ती से ही सुरेंद्र बहादुर सिंह को हराने वाले और भाजपा शासन में खाद्य और स्कूली शिक्षा मंत्री रहे मेघाराम साहू का भी परिवार राजनीति से दूर है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे भाजपा नेताओं बनवारी लाल अग्रवाल और बद्रीधर दीवान के परिवार से भी कोई राजनीतिक पद पर नहीं है हालांकि श्री दीवान के बेटे विजयधर दीवान आज भी बेलतरा विधानसभा से टिकट के दावेदार है।
शेष छूटे हुए व्यक्तित्व का उल्लेख अगले किसी अंक में पढ़िएगा ।
Sun Jun 18 , 2023
बिलासपुर—भारतीय जनता पार्टी व्यापारी कार्यकर्ता सम्मेलन में भाग लेने आए पूर्व मुख्यमंत्री डा रमन सिंह ने बिलासपुर में रविवार को कहा कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धर्म के नाम पर कभी भी चुनाव नहीं लड़ा और विकास के नाम पर वोट मांगे 2024 के चुनाव में भी भारतीय […]