बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले की नए सिरे से जांच करने की अनुमति हाईकोर्ट ने दी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी एक ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है। उल्लेखनीय कि लगभग दस साल पहले रायपुर के इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक में करोड़ों का घोटाला सामने आया था। उस दौरान मामले की जांच भी हुई थी। लेकिन अब राज्य सरकार ने उसी मामले की नए सिरे से जांच की अनुमति के लिए हाईकोर्ट में अपील की थी। इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक में तो ₹280000000 का घोटाला हुआ था लेकिन उससे भी बड़ा घोटाला जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर में भाजपा शासनकाल के दौरान ही हुआ था तब जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष देवेंद्र पांडेय थे घोटाला 10, 20 करोड़ का नहीं बल्कि 100 करोड़ के घोटाले का आरोप लगा था। जिसकी जांच पंजीयक सहकारिता विभाग द्वारा कई साल से कराया जा रहा था। जांच पूरी होने के पश्चात पंजीयक द्वारा लगभग ₹500000000 की वसूली हेतु नोटिस जारी किया गया। इस नोटिस के खिलाफ तत्कालीन बैंक अध्यक्ष देवेंद्र पांडे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिस पर अभी फैसला आना बाकी है । अब जबकि इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक के घोटाले की फिर से जांच के लिए हाई कोर्ट का आदेश आ चुका है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में हुए कथित घोटाले की जांच पश्चात वसूली नोटिस को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिका पर भी शीघ्र फैसला आएगा।
****विस्तार से जानें प्रियदर्शिनी बैंक और जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के घोटालों को******
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने ट्वीट में कहा है कि प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले में भाजपा के कई लोग शामिल हैं। बैंक संचालकों सहित अन्य लोगों को भी पैसे दिए गए। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि भ्रष्टाचार उजागर होना चाहिए। दोषियों को सजा मिलनी ही चाहिए।
आरोपी ने किए थे बड़े-बड़े नामों के खुलासे बाद में इनकार***
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में भाजपा सरकार के कार्यकाल में जब पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट पेश की थी तो उस समय इंदिरा बैंक के मैनेजर उमेश सिन्हा के नार्को टेस्ट का उसमें जिक्र नहीं था। दरअसल, उमेश सिन्हा ने अपने नार्को टेस्ट में कई बड़े नाम लिए थे। साथ ही कहा था कि इन लोगों को पैसे पहुंचाए गए हैं। करीब 10 साल पहले इसका वीडियो भी वायरल हुआ था। हालांकि, बाद में सिन्हा अपनी बातों से पलट गए थे और कहने लगे कि उन्होंने किसी मंत्री या नेता को पैसा नहीं पहुंचाया है।
दरअसल, साल 2006 में आर्थिक अनियमितता पाए जाने पर प्रियदर्शिनी बैंक बंद हुआ था। इंदिरा बैंक में 28 करोड़ का घोटाला सामने आने के बाद सभी खातेदारों में हड़कंप मच गया था। बैंक में करीब 22 हजार खातेदार थे। घोटाला उजागर होने के बाद बैंक ने अपने आप को डिफॉल्टर घोषित कर दिया था और इंश्योरेंस कंपनियों की मदद से खातेदारों को राशि भी लौटाई थी। यह राशि काफी कम थी। अभी भी उपभोक्ताओं के करोड़ रुपये लौटाने हैं।
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में घोटाले का सच
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर में 100 करोड़ रुपए के घोटाले के पीछे पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र पांडेय की भूमिका को अहम माना गया था। उन्हें ही इस घोटाले का मास्टरमाइंड बताया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस वक्त वे बैंक में अध्यक्ष के पद पर काबिज रहे, यह घपला भी उसी दौरान का है। मामले में रायपुर के पंजीयक दफ्तर से आरोपियों को पेशी पर बुलाया जाता रहा। पर इस घोटाले के 11 आरोपियों में हर बार कोई ना कोई गायब हो जाता । रिकॉर्डों को छुपाने का खेल और कई तरह की गड़बड़ी को दबाने का खेल चलता रहा। यही कारण है कि बैंकों की विभिन्न शाखाओं में हुई आर्थिक अनियमितता और किसानों के पैसों को हजम करने वाले लोगो पर कार्रवाई में देरी होती रही। गड़बड़ी की यह कहानी साल 2014-15 के दौरान की है। तब बैंक के अध्यक्ष देवेंद्र पांडेय थे। और तब से बैंक में कभी धान खरीदी में घोटाला, कभी कर्मचारियों की नियुक्ति में गड़बड़ी, कभी शाखाओं को मिलने वाली राशि का गायब होना, कभी ब्रांचों में बिल्डिंग बनाने के नाम पर नियमों को तोड़ना तो कभी सुतली खरीदी में घोटाला तो कभी कुछ और। गड़बड़ी का यह सिलसिला लगातार जारी रहा। तब बैंक के पूर्व अध्यक्ष पांडेय पूर्व सहकारिता मंत्री ननकीराम कंवर के करीबी माने जाते थे। इसलिए ही गड़बड़ी खुली भी तो जांच दबा दी गई। फाइलों को बंद कर दिया गया। पूर्व अध्यक्ष पांडेय बैंक को अपने ही तरीके से चलाया करते थे। कहीं कंप्यूटर ऑपरेटर को ब्रांच मैनेजर बना देना कहीं प्यून का प्रमोशन तो कहीं कुछ और। कई कर्मचारियों का सुबह तबादला आदेश तो शाम को निरस्त करने का आदेश जारी होने का खेल चलता रहा। आरोप तो यह भी था कि बैंक के घोटालों की जांच के लिए किसी अधिकारी को नियुक्त किया जाता तो श्री पांडेय उनका तबादला करवा देते थे । श्री पांडेय के बैंक अध्यक्ष पद से हटने के बाद सहकारी संस्था के अधिकारियों ने मामले में जांच शुरू की। पहले जिला पंजीयक उमेश तिवारी और फिर ज्वाइंड डायरेक्टर केएल ढारगांवे ने बैंक में होने वाली गड़बड़ी की जांच शुरू करवाई। जो सामने आया वह हैरान करने वाला था। तब तक बैंक में करीब 100 करोड़ रुपए का घोटाले की बात सामने आई । पर सहकारिता के नियम ऐसे हैं कि आरोपी बड़ी आसानी से सरकार और कानून को छकाते आ रहे हैं। बैंक में इतनी बड़ी गड़बड़ी होने के बाद भी आरोपी खुले आम घूमते रहे ।पुलिस ने चंद प्यादो को आरोपी बनाया ।
एक करोड़ से अधिक का धान घोटाला भी हुआ!
उरगा क्षेत्र के सोहागपुर में दस साल पहले एक करोड़ से अधिक का धान घोटाला सामने आया था। मामले में पुलिस ने धान खरीदी से जुड़े लोगों को आरोपी बनाया था। भाजपा नेता सह व्यापारी देवेंद्र पांडेय तब जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित बिलासपुर के अध्यक्ष थे। उनके ऊपर भी का तरह के आरोप लगे थे, लेकिन प्रकरण में उनका नाम शामिल नहीं था। मामले में पुलिस ने 5 आरोपियों के खिलाफ प्रकरण बनाकर कोर्ट में पेश किया, जहां से उक्त प्रकरण में उनकी भूमिका संदिग्ध मानते हुए कोर्ट ने पुलिस को विवेचना का आदेश दिया। पुलिस ने प्रकरण में पूछताछ के लिए उन्हें तलब किया तो उन्होंने अपने भाई के कोरोना संक्रमित होने के कारण 10 दिन के लिए खुद को होम क्वारेंटाइन करना बताया। साथ ही उक्त अवधि के बाद बयान देने के लिए आने की बात कही थी। इसके बाद वे पुलिस के समक्ष नहीं पहुंचे। पुलिस ने उनके मोबाइल पर कॉल कर संपर्क की कोशिश की गई। मोबाइल बंद मिला। तब पुलिस उनके मकान पहुंची, जहां वह नहीं थे। परिजन ने उनके संबंध में जानकारी नहीं दी। पुलिस उनके तलाश में रायपुर के मकान में पहुंची, लेकिन देवेंद्र वहां भी नहीं मिले। बाद में पुलिस को उनका पता बताने वाले को ईनाम देने की घोषणा करनी पड़ी। इधर पंजीयक सहकारिता द्वारा बनाई गई जांच कमेटी द्वारा रिपोर्ट पेश करने के बाद पंजीयक सहकारिता ने करीब 50 करोड़ की वसूली के लिए आदेश जारी किया ।वसूली आदेश के खिलाफ तत्कालीन बैंक अध्यक्ष देवेंद्र पांडेय ने हाईकोर्ट में कई याचिकाएं लगा रखी है। हाईकोर्ट ने अब जबकि इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक में हुए घोटाले की दुबारा जांच के आदेश दे दिया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित बिलासपुर में हुए बड़े घोटाले और वसूली आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जल्दी फैसला आए।
Thu Jun 22 , 2023
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