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हां की जीत हुई.. हां की जीत हुई…और लोकतंत्र हार गया !


अरुण दीक्षित
दिन बुधवार!तारीख 12 जुलाई 2023।स्थान: मध्यप्रदेश विधानसभा का आलीशान भवन! बड़ा ही आकर्षक दृश्य था।उस ऊंची गोल इमारत में सूरज गोल गुम्बद के जरिए घुसने की कोशिश कर रहा था!हालांकि बादल उसका रास्ता रोकने की भरपूर कोशिश कर रहे थे।हल्की हल्की फुहार भी पड़ रही थी।पर वे सूरज को रोक नहीं पा रहे थे।सूरज नजर उस बड़े हाल पर भरपूर पड़ रही थी।
उसकी रोशनी में दूर से साफ दिखाई दे रहा था कि लोकतंत्र का मंदिर बताए जाने वाली उस गोल इमारत में क्या चल रहा है। सभी दीर्घाओं में बैठे लोग बड़ी ही उत्सुकता से नीचे का नजारा देख रहे थे।ज्यादातर पहली बार इस भवन में आए थे। इसलिए उन्हें कुछ ज्यादा कौतूहल हो रहा था।वे सुरक्षा कर्मी जिन्हें इन दीर्घाओं में आने की इजाजत नहीं होती है,वे भी भीतर घुस कर विस्मय से नजारा देख रहे थे! और मीडिया वाले! वे हमेशा की तरह अपनी लीड तलाश रहे थे।
उधर हाल में सचमुच रोचक नजारा था।विपक्ष के ज्यादातर सदस्य अध्यक्ष के आसन के सामने नारे लगा रहे थे!उनमें से एक के हाथ में भगवान महाकाल के ज्योतिर्लिंग की तस्वीर थी।उनके नारों की आवाज इतनी तेज थी कि कुछ सुनाई ही नही दे रहा था।
हां दिखाई सब दे रहा था।इधर विपक्ष के सदस्य नारे लगा रहे थे तो उधर कुछ मंत्री भी अपने कुर्तों की बाहें चढ़ाकर जोर जोर से बोल रहे थे।उनके हाव भाव यह दर्शा रहे थे कि वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं।इधर मंत्री कुर्ते के बाजू चढ़ा कर चेहरे पर अपने तेवर लाते उधर विपक्ष के नारों का दायरा बढ़ जाता । साथ ही आवाज भी ऊंची हो जाती।
आसंदी पर माननीय अध्यक्ष जी बहुत व्यस्त नजर आ रहे थे।वे खड़े होकर कुछ पढ़ रहे थे।उनका पूरा ध्यान अपने सामने रखे कागजों पर था।
अध्यक्ष जी कुछ पढ़ते..अचानक एक मंत्री जी खड़े होते!फिर अध्यक्ष जी कुछ कहते!फिर मंत्री जी वही क्रम दोहराते!हंगामे के बीच अध्यक्ष जी के माइक से आवाज आती..जो पक्ष में हैं वे हां कहें!माननीय बिना रुके बोलते जाते हैं ! हां की जीत हुई .. हां की जीत हुई! हां की जीत हुई!
इसके बाद अध्यक्ष जी कुछ मिनट तक यही प्रक्रिया दोहराते रहते हैं!हंगामे के बीच हां जीतता रहता है। हर जीत के बाद विपक्ष और जोर से चिल्लाता है। उधर वे मंत्री जो कुछ देर पहले विपक्षी सदस्यों की आवाज दबाने की कोशिश कर रहे थे, हां की हर जीत के साथ नरम होते दिख रहे हैं।उनके चेहरे पर विजई मुस्कान दूर से दिखाई दे रही है। अब वे एक दूसरे से चुहल करते दिख रहे हैं।उधर चिल्लाते चिल्लाते लगभग थक चुके विपक्ष के विधायक अपनी आवाज को और दम देने की कोशिश करते हैं।
इस विधानसभा का यह मानसून सत्र है।यह आखिरी सत्र भी है।अध्यक्ष जी आज बढ़िया बंद गले का सूट पहन कर आए हैं।मजे की बात यह है कि सदन में इस समय न तो वर्तमान मुख्यमंत्री मौजूद हैं और न ही भावी मुख्यमंत्री दिखाई दे रहे हैं।
कुछ मिनट की उत्तेजना के बाद अचानक राष्ट्रगान बजने लगता है।उसके सम्मान में सब खड़े हैं।दो मिनट बाद पता चलता है कि सदन का मानसून सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया है।
सदन में सन्नाटा पसर जाता है।दोनो पक्ष बाहर मौजूद मीडिया के सामने पहुंच जाते हैं।अपनी अपनी बात कह रहे हैं।सत्तापक्ष कहता है विपक्ष ने सदन नही चलने दिया।विपक्ष कह रहा है कि सरकार गंभीर मुद्दों पर चर्चा से बचना चाह रही थी।यह उसकी आदत बन गई है।इससे पहले भी यही होता था !आज भी यही हुआ है।विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है।
उधर पता चलता है कि 26 हजार करोड़ से भी ज्यादा का बजट सिर्फ 26 मिनट में हां की जीत के साथ पारित हो गया है। न कोई चर्चा कोई बहस!बस हां जीत गया।
घोषित कार्यक्रम के अनुसार इस सत्र को 5 दिन चलना था।लेकिन चला सिर्फ दो दिन!दो दिन में भी कुल दो घंटे 35 मिनट कार्यवाही चली।पहले दिन भी करीब सवा घंटे बाद सदन स्थगित हो गया।मजे की बात यह थी कि एक दिन पहले भी विपक्ष के सदस्य जब गंभीर मुद्दों पर चर्चा की मांग कर रहे थे तब अध्यक्ष महोदय उन्हें विधानसभा में बने मंदिर के जीर्णोद्धार के उपलक्ष्य में आयोजित भंडारे में शामिल होने का न्योता दे रहे थे।नारे लगाते विपक्षी सदस्यों के पास इतना समय कहां है कि वे मंदिर और भंडारे पर कोई बात करते।क्योंकि उन्हें तो बस सूचना दी गई थी।
विधानसभा आंकड़ों पर चलती है।उसके आंकड़ों से पता चला कि 15 वीं विधानसभा का यह सबसे छोटा सत्र रहा।हालांकि पिछले करीब 20 साल में विधान सभा के सत्र लगातार सिकुड़ते चले आ रहे हैं।
वर्तमान विधानसभा राज्य की 15 वीं विधानसभा है।यह कई मायनों में ऐतिहासिक हो गई है।यह विधानसभा बिना चुनाव के सरकार बदले जाने की गवाह भी है।सबसे कम घंटे काम का रिकॉर्ड भी इसी के नाम है।पिछले पांच साल में कुल 79 दिन विधानसभा की कार्यवाही चली।हालांकि इस अवधि में भी निर्धारित समय तक सदन नही चला।आंकड़ों के मुताबिक कुल 286 घंटे काम हुआ।जबकि औसतन कम से कम 650 घंटे काम होना चाहिए था। अब नही हुआ तो नही हुआ।इस पर सवाल कौन उठा सकता है।
14 वीं विधानसभा का रिकॉर्ड थोड़ा बेहतर था।तब पांच साल में 135 दिन तक सदन चला था।कुल 598 घंटे काम हुआ था।
एक जमाना था जब विधानसभा का एक एक सत्र 50 से 70 दिन तक चला करता था।
उधर सदन के बाहर केंद्रीय कक्ष में अलग अलग बहस चल रही है।सरकार की ओर से कई मंत्री मोर्चा संभाले हुए हैं।वे बेहद अक्रामक भी हैं।उनका साफ कहना है विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है।इसलिए उसने सदन की कार्यवाही में व्यवधान डाला।और भी गंभीर आरोप विपक्ष पर मंत्री गण लगा रहे हैं।
विपक्ष के सदस्य भी मीडिया के सामने अपनी बात पूरी ताकत से रख रहे हैं।लेकिन वे हताश भी दिख रहे हैं।विपक्ष के नेता कहते हैं – हम गंभीर मुद्दों पर चर्चा कराना चाहते थे।लेकिन सरकार ने हमारी आवाज दबा दी।प्रदेश में भगवान लुट रहे हैं।आदिवासियों के मुंह पर पेशाब की जा रही है।व्यापम की तर्ज पर अब पटवारी भर्ती घोटाला हुआ है।समाज का हर वर्ग परेशान है।लेकिन हमारी बात ही नही सुनी गई।
वे कहते हैं – कोई बात नहीं!सदन में नही बोलने दिया तो हम सीधे जनता के बीच जाएंगे।उसे बताएंगे कि यह सरकार क्रूर और जालिम है।सबको धोखा दे रही है।हम चुप नही बैठेंगे!
उधर दर्शक दीर्घाओं से निकल रहे लोग अपने जूते व अन्य सामान समेटते हुए आपस में बातिया रहे हैं!एक कहता है – मुझे तो लगा कि जे लोग तो यहीं लिपट पड़ेंगे एक दूसरे से।दूसरा कहता है – अरे ये तो होता ही रहता है।अपनी विधानसभा बहुत अच्छी है।कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश में तो हिंदुस्तान पाकिस्तान हो गया था। उते मद्रास में जयललिता की तो साड़ी ही खींच ली थी।यहां तो फिर भी सब अच्छो है भाई!
सुरक्षा ड्यूटी पर आया एक युवा पुलिस कर्मी अपने साथी से पूछता है – अगर भीतर लॉ एंड ऑर्डर की समस्या आ जाय तो क्या होता है। उसका साथी कहता है – अरे काहे दुबरे हो रहे हो भाई।भीतर कोई समस्या नहीं आती है।जो आज तुमने देखी वा तो नूरा कुश्ती थी। नही मानो तो नीचे हाल में देख लो।सब एक दूसरे के सामने खिलखिला रहे हैं। नेतागीरी ऐसे ही चलती है।
भीड़ छंट रही है।विधायक गण अपने कागजात सहायकों को सौंप मंत्रियों के कमरों की ओर चले गए हैं।कुछ सेंट्रल हाल में खड़े हैं।उनके चेहरों से लग रहा है कि या तो पार्टी उन्हें घर बैठाएगी या फिर जनता।कुछ देर में हाल खाली खाली दिखने लगता है।विधानसभा के सुरक्षाकर्मी निश्चिंत हो गए हैं! वे आपस में हास परिहास कर रहे हैं!दशकों से यही काम करने से उनका अनुभव एकदम परिपक्व हो गया है।एक अपने साथी से कहता है – किसी से मिलना हो तो जाओ मिल लो!अगले सत्र में इनमें बहुत से नजर नहीं आएंगे!दूसरा कहता है – कैसे नही आयेंगे? बताते हैं कि भूतों का तो यह बहुत बड़ा डेरा है!इसके साथ ही ठहाका लगाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं!

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