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May 19, 2025 3:44 am

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कभी – कभी मन को मारना भी जीवन के लिए घातक बन जाता है : डा.फूल दास महंत (छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा बिसाहू दास महंत की 45वीं पुण्य तिथि 23जुलाई पर विशेष)

स्वर्गीय बिसाहूदास महंत छत्तीसगढ़ और अविभाजित मप्र के शिक्षाविद,साहित्यकार,समाजसेवी,संस्कारवान तथा कुशल राजनीतिज्ञ थे।आपने संघर्षपूर्ण जीवन जीकर घर -परिवार को सक्षम तथा सामर्थ्य वान बनाया।महान व्यक्ति,अपने चरित्र,चेहरा व व्यवहार से दूसरों के जीवन के लिए प्रेरणास्रोत बन जाते हैं, ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे बाबू जी बिसाहू दास महंत।जन सामान्य व देश के लिए उनमें प्रेम की भावना कूट – कूट कर भरी थी।छत्तीसगढ़ क्षेत्र में उनके जैसा सरल,सहज,हसमुख,ठठ्ठा मसकरी,निश्छल,उदार,सत्य वक्ता, ईमान दार एवम दूरदर्शी राजनीतिज्ञ अब खोजे नहीं मिलता। उन्नत ललाट,दैदीप्यमान मुस्कुराता हुवा चेहरा,धोती -कुर्ता के साथ जैकेट,घुंघराले बाल, काला चस्मा में ठेठ छत्तीस गढ़िया पन छलक -छलक के सामने आ जाता था,और उसकी गहराई की थाह उनके व्यवहार में पूर्व से ही परिलक्षित हो जाता था।
सारागांव,जांजगीर -चांपा जिला में आपका जन्म 01अप्रैल 1924को सूरज देवता की आभामय लालिमा के साथ प्रातः 9बजे गांव के प्रतिष्ठित कृषक कबीर पंथी श्री कुंजराम महंत के यहां हुवा । सन 1946में मारिस कॉलेज नागपुर से बी. ए.की डिग्री प्रथम श्रेणी में तथा लॉ कॉलेज नागपुर से एल. एल. बी.की डिग्री हासिल करने के बाद आपने जीविकोपार्जन का माध्यम वकालत की प्रेक्टिस से शुरुवात की,छतीसगढ़ी,हिंदी,अंग्रेजी भाषा तीनों पर कमांड होने के कारण पेशा अच्छा चलने लगा,किंतु इस पेशे से उनको रोज रोज आत्म ग्लानि होने लगी,उन्होंने इस पेशे में झूठ, छल का समावेश होने से स्वयं इसे छोड़ दिया।
20जून 1950को आपने नगरपालिका हाई स्कूल चांपा में प्रभारी मुख्य आध्यापक पद पर कार्य करना प्रारंभ किया ।आपने 02वर्ष तक शिक्षा विद के रूप में कार्य किया,लोग आपको गुरु जी के नाम से जान ने लगे।
एकाएक आपके जीवन में एक नया मोड़ आया, लोगों ने कांग्रेस की कमजोर पड़ती स्थिति को सुधारने बिसाहू दास जी महंत कर्मनिष्ठ को बिलासपुर जिला के अंतर्गत बाराद्वार विधान सभा (सी. पी.एंड बरार,नागपुर)से चुनाव लड़ाया।आप प्रचंड बहुमत से चुनाव जीत कर विधाभासभा पहुंच गए। बिलासपुर जिला के अंतर्गत बाराद्वार विधानसभा से विधायक के रूप में महंत जी उस समय सबसे कम उम्र के विधायक थे।इसके बाद भी जब भी कोई प्रश्न उनके ओर से उठाया जाता तो शोषित,दलितों,पिछड़े एवम आदिवासियों की समस्याओं की आवाज,बेसहारा लोगों का दर्द उनके वाकपटुता से छन छन के निकलता था। आभाव के दिनों में उन्होंने बबूल के कांटो का प्रयोग आलपीन के रूप में करते थे,यही सब हकीकत गरीब लोगों के दर्द के रूप में प्रस्तुत होने लगा।परिणाम यह हुवा कि उन्होंने लगातार 6..6पंचवर्षीय चुनाव में लगातार भारी मतों से चुने जाते रहे।यहां तक कि 1977के चुनाव में जनता पार्टी को 230सीट मिला और बहुमत से उनकी सरकार बनी तब भी बिसाहू दास जी बिना प्रचार के प्रचंड बहुमत से जीत गए थे।वे अपने राजनीतिक जीवन में कई कई बार अनेकों विभाग के कैबिनेट मिनिस्टर के रूप में शोभायमान होते रहे,इस दौरान कोई भी क्षेत्र वासी उनके पास भोपाल समस्या लेकर जाते उनका समस्या का निदान उनके टेबल पर होता,और उन्हें आवास,भोजन और यहां तक की अपने पैसे से टिकिट कटाकर दिया जाता,अब कहां गए आइसे लोग।क्या अब इस माटी में पुनः सृजन होगा? ऐसे लोगो की?।शायद नहीं!!!अब तो जिधर देखो,भ्रष्टाचार,चाटुकारिता की राजनीति हावी हो गई है!!!।
मध्य प्रदेश की राजनीति में 1977का चुनाव कांग्रेस के लिए महंगा पड़ा।जनता पार्टी को 230के स्थान पर कांग्रेस को छत्तीसगढ़ और महाकौशल मिलाकर कुल84सीट प्राप्त हुवे।कांग्रेस अध्यक्ष श्री ब्रम्हानंद रेड्डी ने इस्तीफा दिया,सरदार स्वर्ण सिंह नए अध्यक्ष बनाए गए।इंदिरा जी ने जोखिम पूर्ण निर्णय ले डाला,कांग्रेस 2भागों में विभक्त हो गई।ऐसी स्थिति में भी महंत जी ने चुनाव जीता,कांग्रेस को संभाला,और57 विधायको को इंदिरा कांग्रेस का सच्चा सिपाही बन कर अपने पक्ष में बटोर कर रखा,इंदिरा जी ने इसका पुरुस्कार उन्हें विपक्ष का नेता बनाना चाहा, पर उन्होंने पर हित सरिस धर्म नही भावना से माननीय अर्जुन सिंह का नाम प्रस्तावित कर दिया, ऐसे लोग अब कहां,।
इंदिरा जी ने बिसाहू दास पर इतना भरोसा किया कि उन्हें मध्यप्रदेश का कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नियुक्ति दे दी।8सितंबर 1977को उन्होंने अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला।
कांग्रेस की नीति ,गरीबों की सेवा,जाति,धर्म ,संप्रदाय से अलग,नेहरू,गांधी की नीति को बिसाहू दास जी महंत दिल से स्वीकारते रहे,अपने को कांग्रेस एक कांग्रेस का सिपाही मात्र मानते रहे,सफेद टोपी उनके इस भावना का प्रतीक रहा है।पर इतना होने के बाद भी कांग्रेस में विभाजन से अंदर ही अंदर दुखी थे,व्यथित थे,पर उन्होंने बताया किसी को नहीं, ऐसे नेता कहा अब।यदि उनके सुपुत्र डॉ चरण दास महंत जी, वर्तमान विधान सभा अध्यक्ष को उनके साथ लेकर देखें तो पिता के धर्मो को,संस्कार को,उनके चरण चिन्ह पर चलकर माननीय चरण दास महंत जी ने की कोशिश कर रहे हैं।सबसे वरिष्ठ कांग्रेसी होते हुवे भी छत्तीसगढ़ में उनका व्यवहार शालीन,सौम्य,और संस्कारों से अनुशासन से व्यवस्थित भरा पड़ा है।बिसाहू दास महंत जी अपने पढ़ाई के समय ही बिलासपुर में महात्मा गांधी जी के भाषण से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए थे।मुझे ऐसा लगता है उन्होंने कांग्रेस की नीति को जीवन का आधार बनाया,और अंतिम समय तक बनाए रखा,इसीलिए वे आज भी अमर होकर कांग्रेस के सच्चे सिपाही के रूप में जाने जाते हैं।मुझे ऐसा लगता है कभी कभी मन को न चाहते हुवे भी अपने वसूल,देश,राज्य,और ईमान के लिए मारना पड़ता है ऐसी स्थिति में जब हम मन से हट कर निर्णय लेते हैं तो वह जीवन को बचा भी लेता है और यदि ईमान धर्म, सत्य, को साथ रखते है तो यही जीवन के लिए घातक भी बन जाता है। 23मई 1978को सुबह सुबह यह ध्रुव तारा अपने सूरज के साथ सुबह निस्तेज हो गया विलीन हो गया, आसमा में।

फिर भी वे अजर हैं, अमर हैं।

नाम से अनाम के रूप में हैं।

वे प्रेरणा से पुरुषार्थ हैं।

प्रकृति से निवृति हैं।

साध्य से असाध्य हो गए हैं।

पर निरंतर शास्वत हैं,और रहेंगे।

डॉ फूल दास महंत

शिक्षा विद,प्रोफेसर (बिलासपुर)

9109374444

 

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