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July 5, 2025 3:51 am

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भाजपा का चुनाव घोषणा पत्र धान,किसान और छत्तीसगढ़िया वाद पर रहेगा फोकस लेकिन प्रत्याशी चयन में भी छत्तीसगढ़िया वाद दिखेगा?

बिलासपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस  को विधानसभा चुनाव में पटखनी देने भारतीय जनता पार्टी इस चिंतन में लगी हुई है कि चुनावी घोषणा पत्र में आखिर ऐसी क्या क्या बातें समाहित की जावे जिससे प्रदेश की जनता को भरोसा हो जाए और कांग्रेस के घोषणापत्र तथा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा पिछले साढ़े चार साल के दौरान किए तमाम कार्यों को भूल जाए।यदि यह संभव हो जायेगा तो  भाजपा का घोषणा पत्र तैयार करने वाले भाजपा नेताओ की बल्ले बल्ले हो जायेगी।विधानसभा चुनाव हालांकि पांच राज्यों के होने है लेकिन छत्तीसगढ़ पर भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की कड़ी नजर है और इसीलिए सीधे तौर पर  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यहां  का जिम्मा अपने हाथों में ले रखा है और डेढ़ माह के भीतर वे तीसरी बार छत्तीसगढ़ आ चुके हैं। आगे चुनाव के दौरान 4 महीने के अंतराल में वे और कितने बार छत्तीसगढ़ आएंगे यह इसी से पता चलता है ।चाहे संगठन के नेताओं को चुनाव की तैयारी में लगाना हो या फिर प्रत्याशी चयन का मामला , गृह मंत्री अमित शाह के इच्छा और निर्देश के बगैर एक पत्ता भी छत्तीसगढ़ में नहीं  हिलेगा यह तय है।बात करें भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र का तो प्रारंभिक तौर पर यह खबर छनकर आ रही है कि भारतीय जनता पार्टी चुनावी घोषणा पत्र में प्रदेश के किसान और छत्तीसगढ़िया वाद को विशेष रुप से प्रचारित करेगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसानों के लिए जो घोषणाएं की है उसने भारतीय जनता पार्टी को संकट में डाल दिया है ।इस समस्या से निपटने के लिए संभव है भाजपा अपने चुनावी घोषणा पत्र में धान का समर्थन मूल्य और बोनस राशि को मिलाकर प्रति कुंटल किसानों को ₹3000 तक देने की घोषणा कर दे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा लेकिन छत्तीसगढ़िया वाद पर भाजपा के सामने कई पेच फंसा हुआ है। किसी छत्तीसगढ़िया नेता को चुनावी घोषणा पत्र का संयोजक बना देने भर से कुछ नहीं होने वाला है बात तो तब बनेगी जब छत्तीसगढ़िया लोगों के हितों की बात घोषणा पत्र में प्रमुखता से हो। पार्टी के विश्वसनीय सूत्रों से जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक चाहे कुछ भी हो भा ज पा अपने घोषणापत्र में छत्तीसगढ़िया वाद को ज्यादा हाइलाइट्स करेगी तो फिर बड़ा प्रश्न यह है कि भाजपा प्रत्याशी चयन के मामले में भी क्या छत्तीसगढ़िया वाद  को प्राथमिकता देगी ?

यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा के सिर्फ दो नेताओं को छोड़कर सारे गैर छत्तीसगढ़िया प्रत्याशी चुनाव हार गए थे और इसी वजह से भाजपा के हाथ से सरकार तो गई ही वही विधानसभा में भाजपा  मात्र 14 सीटो पर सिमट कर रह गई । प्रदेश की जनता ने भाजपा के गैर छत्तीसगढ़िया उम्मीदवारों को बेदर्दी के साथ नकार दिया था यह भाजपा के लिए बड़े चिंतन का विषय था पिछले चुनाव में इस तरह मिली बुरी हार से भाजपा के कर्णधार सबक लेंगे ऐसा प्रतीत तो नहीं हो रहा है ।भारतीय जनता पार्टी में हरियाणा राजस्थान उत्तर प्रदेश आदि स्थानों के मूलनिवासी लोगों की बहुतायत है कालांतर में इन्हीं नेताओं के परिजन विधायक से लेकर मंत्री तक बन गए  लेकिन पिछले चुनाव में प्रदेश के मतदाताओं ने ऐसे नेताओं को नकार कर भाजपा को कड़ा सबक दिया है। यदि 4 महीने बाद होने वाले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी गैर छत्तीसगढ़िया लोगों के  बजाय छत्तीसगढ़िया लोगों को प्रत्याशी बनाने के लिए प्राथमिकता देती है तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि भाजपा पिछले चुनाव में हार के कारणों और प्रत्याशी चयन में हुई गलती से सबक ली है। पिछले चुनाव में गैर छत्तीसगढ़िया समझे जाने वाले भाजपा के कद्दावर नेताओं की हार के बाद भी इस बार भी हरियाणा, उत्तर प्रदेश ,राजस्थान ,बिहार आदि से आए और यहां सटल हुए कई ऐसे लोग भी टिकट पाने के जुगाड़ में दिल्ली से लेकर रायपुर तक भाजपा के नेताओं व संगठन के पदाधिकारियों की दौड़ लगा रहे हैं ।ऐसे लोग छतीसगढ़ में आकर अल्प समय में हीं विभिन्न व्यवसाय और नेतागिरी के सहारे आर्थिक रूप से बहुत संपन्न हो गए हैं और अपनी इसी संपन्नता और पहुंच के बल पर वे भाजपा से सिर्फ विधानसभा की टिकट ही नहीं चाह रहे बल्कि  विधायक और मंत्री बनने का भी ख्वाब देख रहे हैं। अब यह तो भाजपा के शीर्ष नेताओं को तय करना है कि विधानसभा चुनाव में वे स्थानीय और युवा नेताओं को मौका दें या फिर बाहरी लोगों को अवसर प्रदान करें ।

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 20 साल से जिन भाजपा नेताओं की तूती बोल रही है उसमें भी छटनी किए जाने की जरूरत पार्टी के कार्यकर्ता महसूस कर रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का तो यह भी कहना है कि अभी यह अवसर है कि भाजपा यदि वास्तव में प्रदेश में सरकार बनाना चाहती है तो “पूरे घर के बदल डालूंगा” की तर्ज पर प्रत्याशियों का चयन करें अन्यथा बाद में  पछताना पड सकता है। भाजपा के शीर्ष नेता यह भी देखें कि यहां के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की परंपराओं को सहेज कर रखने जो कदम उठाए है उनका  प्रभावी तोड़ क्या हो ।यह जिम्मा उन नेताओ को सौंपा जाए जो 15 साल के शासन में सिर्फ मजे ही मजे किए है ऐसे नेताओं को चुनाव से दूर रखने से ही पार्टी की भलाई है अन्यथा जोड़ तोड़कर भी सरकार बनाना मुश्किल हो जायेगा । जानकारी के मुताबिक पार्टी में चुनावी घोषणा पत्र बनाने की तैयारियां ज़ोरों पर है। फिलहाल मोटे तौर पर जो बात अंदर से निकलकर आ रही है, उसके मुताबिक फोकस किसान और छत्तीसगढ़ियावाद दोनों पर हो सकता है। इसके अलावा आदिवासी, ओबीसी और व्यापारी वर्ग पर ध्यान रहेगा।

अभी घोषणा-पत्र समिति में कुल 32 लोगों की टीम है। पहले 31 थी। मुस्लिमों को साधने की कोशिश में भी एक नाम जोड़ा गया है। डा. सलीम राज घोषणा-पत्र समिति में बाद में शामिल किए गए। ये समितियां कई उपसमितियों में भी बंट चुकी है। बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। घोषणा पत्र तो सभी संभागों-जिलों में फीडबैक के बाद ही बनेगा, लेकिन शुरुआती दौर में समितियों के जितने भी लोग चर्चा कर रहे हैं, उससे लग रहा है कि फोकस सिर्फ किसान नहीं होगा, बल्कि छत्तीसगढ़िया का तोड़ निकालना भाजपा के लिए मुश्किल भरा हो सकता है। भाजपा द्वारा दुर्ग के सांसद विजय बघेल को घोषणा पत्र समिति का अध्यक्ष बनाने का मकसद  यह बताता है कि एक किसान को भारतीय जनता पार्टी ने महत्व दिया है। बघेल पेशे से किसान हैं। वे हर जगह कहते भी रहे हैं कि वे किसान पुत्र हैं। हल चलाते हैं। जिस समिति में कई दिग्गज पूर्व मंत्री हों, पूर्व सांसद हों, उसमें विजय बघेल को कमान सौंपने के दो मायने बताए जा रहे हैं।  सबसे बड़ी बात विजय बघेल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के परिवार के ही है।बघेल के सामने बघेल और किसान के सामने किसान ऐसा करके भाजपा एक ही परिवार को आमने सामने कर दिया है।

भाजपा घोषणा पत्र समिति की उप समितियां लगातार बैठकें कर रही हैं। केंद्रीय गृहमंत्री और दिग्गज भाजपा नेता अमित शाह के सवा महीने में ही तीन बार के दौरे ने संगठन में तेजी ला दी है। उनके पिछले दौरे के बाद ही आनन-फानन में समितियों की घोषणा की गई और भाजपा अब लक्ष्य आधारित काम पर जुट गई है। भाजपा का अगला लक्ष्य 90 विधानसभाओं में 90 सुझाव पेटियां पहुंचाने का है। संभागीय प्रभारी के नेतृत्व में ये सारे काम होने हैं। विजय बघेल खुद सरगुजा संभाग और बिलासपुर संभाग देखेंगे। समिति के सह संयोजक अमर अग्रवाल रायपुर, रामविचार नेताम बस्तर और शिवरतन शर्मा दुर्ग संभाग जाएंगे।

ये सारी कवायदें चल रही हैं, लेकिन जितने लोग भी बैठकें कर रहे हैं। बैठकों के बाहर चर्चा हो रही है, उनमें सभी को सबसे बड़ा मुद्दा धान, किसान और छत्तीसगढ़ियावाद नजर आ रहा है। और इसे लेकर मंथन का दौर अभी से शुरू हो चुका है कि इसके लिए घोषणा पत्र में क्या करेंगे। फीडबैक तो आधार होगा ही। भाजपा के दिग्गज नेता बार बार अलग अलग मंचों से इस बात पर जोर देते रहे हैं कि छत्तीसगढ़ियावाद सिर्फ दिखावे से नहीं होगा। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना और विकास असली छत्तीसगढ़ियावाद है। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी सरकार के 9 साल पूरे होने पर भाजपा ने तकरीबन 50 लाख ब्रोशर पूरे प्रदेश में बांटे। इसमें छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर लगाई गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रायपुर में हुए कार्यक्रम के मुख्य मंच के पीछे बैनर में सबसे ऊपर छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर थी। छत्तीसगढ़ की नई टीम में अध्यक्ष, तीनों महामंत्री समेत सभी मंत्रियों के चेहरों को भी छत्तीसगढ़ियावाद के पैमाने पर भी देखा गया है मगर असली परीक्षा तो प्रत्याशी चयन के दौरान होगा उसमे अगर छत्तीसगढ़िया वाद पूरी तरह नही दिखा तो फिर भाजपा का भगवान ही मालिक होगा।

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