प्रेम और भक्ति यह दो ही आधार है, जीवन को सार्थक कर लेने का।हिंदी साहित्य के इतिहास में 15हवीं शताब्दी का महत्व इसलिए बढ़ जाता है , ठीक इसके पहले वीर गाथा काल में खून खराबा, मार काट, जाति , धर्म, ऊंच -नीच, छुआ -छूत, के नाम पर विश्व मानवता शर्मसार हो रही थी, राजा लोग अपने अपने राज्य के विस्तार और आधिपत्य के लिए मानव -मानव के बीच खाई के रूप में भेद डाल दिए थे और युद्ध के
आलावा और कुछ शेष नहीं था, जन और धन की हानि, बर्बादी हो रही थी, तब ऐसी स्थिति से विश्व मानवता को बचाने के लिए भक्तिकाल का अभ्युदय हुवा जिसमें सूर ,तुलसी,कबीर और जायसी इन 4कवियों ने मानव मात्र की रक्षा, समता, एकता, भाईचारा, प्रेम और भक्ति का बीजारोपण कर अपने साहित्य में नियति और प्रकृति के मर्म को स्पष्ट किया,गोस्वामी तुलसी दास ने जहां”ईश्वर अंश जीव अविनाशी “कहकर क्षिति ,जल, पावक,गगन,समीरा,कहकर इन 5तत्वों से बना रूपधारी शरीर को निस्सार,अधम, और नाशवान कहा,वहीं, कबीर ने भी इस शरीर को नाशवान कहकर भक्ति और प्रेम का बीजारोपण कर कहा”यह संसार कागज का पुड़िया,बूंद लगे घुल जाना है,रहना नही,देश विराना है”।इस संसार में अच्छे कर्म,दया,प्रेम,सद्भावना, ही युगों युगों तक रह जाती है।
तुलसी और कबीर दोनों के आराध्य “राम “थे।राम को पाने का माध्यम गुरु थे जिन्होंने भक्ति की शक्ति को स्पष्ट कर “प्रेम”का बीजारोपण किया।तुलसी ने जगत में जितने भी जड़ ,चेतन जीव हैं, उन सबको राममय जानकर सभी के चरण कमलों की हाथ जोडकर विनयपूर्वक वंदना की।यथा
“जड़ चेतन जग जीव जत।
सकल राममय जानि।।
बंदौं सब के पद कमल।
सदा जोरि जुग पानि।।(बालकांड ,दोहा क्रमांक 7)
रामचरितमानस की रचना का प्रारंभ गोस्वामी तुलसीदास जी ने “वंदे वाणी विनायको”से प्रारंभ की है,वहीं संत कबीर वाणी और “राम”की सार्थकता को सिद्ध करते हुवे कहते हैं,यथा”ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय”। राम की सार्थकता देखिए।
“राम नाम के पटान्तरे, देबै को कछु नाही।
क्या लै गुरु संतोसिहौं , हौंस रहि मन माहीं।।”
तुलसी की दृष्टि में “राम”महामंत्र है।राम और राम का नाम दोनो ही सुंदर सावन -भादो मास की तरह है।
“राम नाम बर बरन जुग।
सावन भादव मास”।।
“नाम”और “रूप”में कौन बड़ा है,कौन छोटा है,को तुलसी अपराध कहते हुवे साधु पुरुषो पर निर्णय को छोड़ देते हैं। रूप ,नाम के अधीन देखे जाते हैं,नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता।नाम स्मरण और नाम का जाप करने से वह हृदय में “प्रेम”के माध्यम से आत्मसात हो जाता है।तुलसी के अनुसार
“को बड़ छोट कहत अपराधू।
सुनि गुण भेदु समुझहही साधु।।
देखिअही रूप नाम अधीना।
रूप ज्ञान नहि नाम विहीना।।
अगुन -सगुण बिच नाम सुसाखी।
उभय प्रबोधक चतुर दुभासी।।
अगुण -सगुण दुई ब्रह्म सरूपा।
अकथ अगाध अनादि अनूपा।।
मोरे मत बड़ नाम, दुहू ते।
किए जेहि जग निज बस निज बूते।।
तुलसी के अनुसार नाम को राम से बड़ा बताया गया है ।बालकांड के दोहा क्रमांक 23में तुलसी ने नाम का प्रभाव को बड़ा बताया है,वहीं कबीर ने राम को घट घट वासी कहकर उसे जानने की बात कही है।
“हृदय बसे तेहि राम न जाना “कहकर कबीर नेकहा”राम नाम की गति नहीं जानी,कैसे उतरसि पारा।”
मुख से राम राम कहना और राम को मन से भजना दोनो में अंतर है।कबीर और तुलसी दोनो ने ही राम का भजन करने का संदेश दिया।प्रेम भक्ति की विरह अवस्था राम से विमुख प्राणी राम नाम के बिना जी नहीं सकता उसकी स्थिति पागलों के समान हो जाती है ,देखिए उनकी साखी में।
“विरह भुवंगम तन बसे मंत्र न लागे कोय।
राम वियोगी न जिए, जिवै तो बौरा होई।।”
कबीर के अनुसार जगत में जो कुछ भी सत्य है,रमणीय आकर्षक है, वह राम है, रमने योग्य है।कबीर ने बार -बार निर्गुण राम के “नाम”को भजने का उपदेश दिया।उनके लिए यही नाम ही खेती -बाड़ी,माया -पूंजी,बंधु -बांधव और निर्धन का धन,पूंजी, सम्पत्ति है।कबीर ने अपने राम को सत्य स्वरूपी कहा।कबीर जीवनभर समझाते रहे कि राम ‘ रूप ‘ नहीं ‘गुण ‘की संज्ञा है।रूप या देह तो नश्वर है, शास्वत नहीं है।सत्य है राम, न कभी पैदा होता है, न कभी मरता है।कबीर की दृष्टि में यही राम,परम सत्य है।
कबीर ने कहा – ‘दसरथ सुत तिहूं लोक बखाना।राम नाम का मरम है आना।’
रामचरित मानस के बालकांड में गोस्वामी तुलसी दास जी ने दशरथ के सुत राम और परमब्रह्म राम की भिन्नता -अभिन्नता के संबंध में पार्वती द्वारा शिव से प्रश्न पूछवाया है,।पार्वती ने शिव से पूछा –
राम सो अवध नृपति सुत सोई
की अज अगुन अलखगति कोई।
जो नृप तनय तो ब्रम्ह किमि
नारी बिरह मति भोरि।
देखि चरित महिमा सुनत,
भ्रमति बुद्धि अति मोरि।।
“राम कोऊ आना”पर शिव जी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। गोस्वामी जी शुद्ध वैष्णव प्रकृति के होने से रावण को भी गाली देने से परहेज करते हैं। वे “राम कोऊ आना” मानने वालों को अज्ञानी, अभागा,कुटिल,तथा अपनी लाभ -हानि को न समझने वाला कहते हैं।
कबीर के राम का आगमन भक्ति और प्रेम से होता है।
“भगति दुहेली राम की,नहीं कायर का काम।
सीस उतारे हाथ सौ, सौ ऐसे हरिनाम।।
कबीर के राम की लोकब्यापक्ता इस तरह है।
“एक राम दशरथ के जाए
एक राम है घट घट वासी,
एक राम है जगत पसारा।
एक राम है जग से न्यारा।।, “
तुलसी दास जी बालकांड में राम की बंदना ऐसे करते हैं।
“वंदऊं नाम राम रघुवर को।
हेतु कृसानु ,भानु हिमकर को।।
विधि हरि हरमय बेद प्रान सो।
अगुन अनुपम गुन निधान सो।।
अर्थात जो अग्नि ,सूर्य,चंद्रमा का हेतु ‘र’ ,’आ ‘,और ‘म’ रूप से बीज है।वह राम, ब्रम्हा,विष्णु,और शिव रूप है।वह वेदों का प्राण है।निर्गुण,उपमरहित,और गुणों का भंडार है।”राम”एक महामंत्र है।
सुंदर काण्ड में राम की शोभा देखते बनता है।
“राम नाम बिनु गिरा न सोहा।
देखि विचारि त्यागि मद मोहा।।
बसन हीन नहि सोह सुरारी।
सब भूषण भूषित बर नारि।।”
राम विमुख संपति प्रभुताई
जाई रही पाई बिन पाई।
सजल मूल जिन्ह सरितंह नाही।
बरसि गए पुनि तबही सुखाई।।”
तुलसी दास ने “राम ” के चरित गान कर उसे लोक में,जन जन में,गांव ,गली चौराहे पर, डेहरी और आंट तक पहुंचा दिया,समन्वय का ऐसा विराट सोच भक्तिकाल के कवियों में देखने को नहीं मिलता। हारमोनियम ,तबला,मंजीरा ,झुमका के साथ जब सावन के महीने भर गांवों में जब राम के चरित गाए जा रहे हो तो ,रिमझिम रिमझिम बारिस में रामायण का वह धुन आज भी मन में गुंजित हो उठता है।
“हरि से प्रीत लगाले जगत में,कोई नहीं पराया है,दुख में राम , सुख में राम,राम ही राम समाया है।
मंदोदरी ,रावण को समझाने का प्रयास करती हुई दुखी होती और कहती है।
“अहह कन्त कृत राम बिरोधा।
काल बिबस मन उपज न बोधा,।।”
पर काल के वशीभूत रावण का आंततोगत्वा अंत ही हो जाता है।
उधर रामचरित मानस में हनुमान जी की प्रभु राम से प्रार्थना देखते बनता है।
“एक मैं मंद मोह बस ,कुटिलहृदय अज्ञान।
पुनि प्रभु मोहि बिसारेऊ दीन बंधु भगवान।।”
घट घट में रमने वाले राम की सार्थकता को हमे समझना होगा,जो सरल हैं,सहज हैं,और हर पल हमारे साथ हैं।
“घट घट में जो रम रहा,
कण -कण करता वास।
जिसके रमने से चले,
बाहर -भीतर शवांस।।
पशु पक्षी सुर नर मुनि,
करते जिसके आस।
उसको कौन बताए बन्दे
जो है तेरे पास।।रमता है सो राम।।
कबीर राम की भक्ति का संदेश देते फिरते हैं।
“कबीर तासो संग कर,जो रे भजाहि राम।
राजा राणा छत्रपति ,नाम बिना बेकाम।।
गोस्वामी तुलसी दास जी की आज 527वी जयंती पर्व है,।कबीर तुलसी से 98वर्ष छोटे थे,परंतु भक्तिकाल में दोनो ने ही राम भक्ति की साधना की. ।तुलसी ने सगुण भक्ति के द्वारा राम की भक्ति को प्रेममय बनाया वहीं कबीर ने निर्गुण भक्ति के माध्यम से राम की भक्ति को प्रेम के द्वारा सत्य निरूपित किया।
तुलसी का जन्मभूमि राजापुर आज भी सुविख्यात हो गया जो उत्तर प्रदेश के प्रयाग के पास बांदा जिले में है।तुलसी जन्म के समय रोए नहीं,उनके श्री मुख से “राम”निकला।माता हुलसी ,पिता आत्माराम दुबे सरयूपाणी ब्राम्हण थे। तुलसी का जन्म सन 1497में श्रावण शुक्ल सप्तमी को हुवा था।पत्नी रत्नावली तथा गुरु नारहर्यानंद जी थे, जिन्होने तुलसी का नाम “रामबोला”रखा था।रामचरित मानस की रचना संवत 1631अर्थात सन 1574में शुरू होकर 2वर्ष,7माह,26दिन में पूरा संवत 1633(सन 1576 )में हुवा। गोस्वामी तुलसी दास ने संवत 1680(सन 1623) में आसीघाट कासी में श्रावण मास कृष्ण पक्ष तृतीया शनिवार को “राम राम “कहते हुवे ही देह त्याग किया।कबीर की तरह उन्होंने ज्यों की त्यों धरि दिन्ही चदरिया।
तुलसीदास जी शिव जी के माध्यम से रामकथा को माता पार्वती को सुनाते हुवे जन जन से मानो आज भी कह रहे हैं।
“राम कथा गिरिजा मैं बरनी,।
कलिमल समनि मनोमल हरनी।।।संसृति रोग सजीवन भूरी।
रामकथा गावहि श्रुति सूरी।।””
सबके राम
डॉ 0 फूल दास महंत
प्रोफेसर हिन्दी
नवीन शासकीय महाविद्यालय सकरी
जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
9109374444
Tue Aug 22 , 2023
कोरबा ।जिला पंचायत, कोरबा एवं उप जिला निर्वाचन अधिकारी, कोरबा द्वारा एनटीपीसी कोरबा में मतदाता जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। 22 अगस्त 2023 को जिला निर्वाचन अधिकारी कोरबा द्वारा प्राप्त मौखिक आदेशानुसार एनटीपीसी कोरबा द्वारा ‘मतदाता जागरूकता कार्यक्रम’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम एनटीपीसी कोरबा के संयंत्र परिसर में आयोजित […]