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November 22, 2024 1:17 am

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विधानसभा चुनाव के नतीजे से सबक नहीं लिए इसलिए लोकसभा चुनाव मे हुई दुर्गति, प्रदेश कांग्रेस संगठन मे क्या बदलाव किया जायेगा ?यदि हाँ तो कमान किसे दी जाएगी भूपेश बघेल या देवेंद्र यादव को?

बिलासपुर। पहले विधानसभा उसके बाद लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है उसके लिए भले हो जिम्मेदार किसी को ठहराया जाए लेकिन  अब समय आ गया है कांग्रेस नेतृत्व छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन में व्यापक फेर बदल करे।प्रदेश से लेकर ब्लाक स्तर पर संगठन में व्यापक बदलाव की जरूरत है ।वर्तमान में जो लोग प्रदेश से जिला स्तर के संगठन में बैठे है उनसे पार्टी नही संभल पा रहा ।उनकी बातो को प्रदेश की जनता सुनना ही नही चाहती।वर्तमान पदाधिकारी  पार्टी को चुनाव जितवाने प्रभावी रणनीति बनाने में पूरी तरह फेल है। अब तो 5 साल भाजपा सरकारों के रहमो करम पर रहना पड़ेगा । ऐसा नहीं करना है तो पार्टी संगठन में आमूलचूल परिवर्तन अपरिहार्य हो गया है ।अब तो 5 साल तक भाजपा और सरकार के खिलाफ लगातार प्रभावी ढंग से आंदोलन ,प्रदर्शन करने और जनता का विश्वास जीतने वाले युवा ,परिश्रमी , जानकार,वाकपटु तथा भाजपा के घोर विरोधी लोगो को संगठन की महती जिम्मेदारी सौपे जाने की जरूरत है ।पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को फिर से प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौपी जा सकती है। अन्यथा की स्थिति मे भिलाई विधायक देवेंद्र यादव

को भी मौका मिल सकता है।

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव भले ही हार गए लेकिन जिस ढंग से उन्होंने चुनाव लडा ,जिस दिलेरी और वाक पटुता के साथ उन्होंने बिलासपुर लोकसभा की जनता के समक्ष अपनी और केंद्र सरकार के खिलाफ बातें रखी उसको देखते हुए कांग्रेस खेमे में देवेंद्र यादव को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठने लगी है । X पऱ भी यही बात हो रही है. देवेन्द्र यादव को राहुल गांधी अच्छी तरह जानते है इसलिए आने वाले दिनों में उन्हे यदि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी जाती है तो कोई आश्चर्य नहीं होगा ।पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिस तरह भाजपा शासनकाल में सरकार के खिलाफ सीना ठोक कर खड़े हुए उसके बदले में 15 साल की भाजपा सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा और श्री बघेल के नेतृत्व में छग में कांग्रेस की सरकार बनी और प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए गए. भुपेश सरकार क़े समय भले ही उपचुनावो मे कांग्रेस क़ी जित होती रही लेक़िन पता नही ऎसा क़्या हूआ कि छत्तीसगगढ़ में कांग्रेस औऱ भुपेश बघेल के खिलाफ प्रदेश मे माहौल बनता गया. कांग्रेसी लोग भाजपा की रणनीति क़ो नहीं समझ पाये या घऱ बैठ गये. विधानसभा चुनाव में मिळी करारी हार से सबक नहीं लिए औऱ उसी ढर्रे पर लोकसभा चुनाव लड़े. आश्चर्य हैं कि उत्तरप्रदेश की जनता ने मोदी और भाजपा को डंके की चोट पर सबक सिखाया तो यही बात छत्तीसगढ़ मे क्यों नहीं हूआ. यहाँ के कांग्रेसी सबक लेने और मेहनत करने से रहे. स्वयं भूपेश बघेल भले ही कम वोटों क़े अंतर से हारे लेक़िन वे भी क्या कर सकते थे. पार्टी से बगावत करने और प्रलोभन से बिकने वाले नेताओं की कांग्रेस मे बाढ़ सी आ गई. कई नेता तो अपना धंधा बचाने और कुर्सी सुरक्षित रखने भाजपा मे चले गये और जो रह गये उनमे से ज्यादातर कांग्रेसी मेहनत करने से जी चुराते रहे. कई नेता तो अपनी दुकानदारी बचाने के लिए लोकसभा चुनाव मे उन उम्मीदवारों के लिए काम नहीं किया जिसे पार्टी ने दूसरे लोकसभा क्षेत्रो मे उम्मीदवार बनाया था फलस्वरूप भूपेश, ताम्र ध्वज, देवेन्द्र, शिव डहरिया चुनाव मे हार गये. नतीजों पर भाजपा ने चिंतन करना शुरू कर दिया हैं मगर कांग्रेस मे अभी चिंतन का दौर शुरू नहीं हूआ है. इसलिए चिंतन करके कांग्रेस संगठन मे ऊर्जावान और भाजपा से टक्कर लेने वाले लोगो को लिए जाने की मांग आज नहीं तो कल जरूर उठेगी. आगे नगरीय निकायों और पंचायत के चुनाव भी होंगे इसलिए पार्टी अभी से काम करने वालों को जिम्मेदारी दे तो ही पार्टी का उद्धार होगा. तात्कालिक तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी संगठन की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. उन्हें संगठन चलाने का अनुभव भी है. विधायक देवेन्द्र यादव को भी संगठन के साथ ही चुनाव लड़ने का अच्छा अनुभव हो गया है. श्री यादव ऊर्जावान तो है ही उसमे भाजपा नेताओं और सरकार के खिलाफ सड़क की लड़ाई लड़ने का माद्दा है. पार्टी मे फेरबदल की बातें उठनी शुरू हो गई है. देखना यह है कि पार्टी कब तक यह निर्णय ले पाती है।

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