इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फ़िज़ा गरमाई हुई है। मसला है दिल्ली से बेहद गुपचुप तरीक़े से राजधानी रायपुर पहुँचे आयकर विभाग के दस्ते द्वारा राज्य के दो दर्जन से अधिक रसूखदार लोगों के यहाँ छापे की कार्रवाई। राजनीतिक बवाल बशर्ते नहीं मचता यदि छापे राज्य शासन के कुछ उच्चाधिकारियों के यहाँ नहीं पड़ते। चूँकि राज्य सरकार को पूर्व जानकारी दिए बिना सरकारी अधिकारियों को घेरा गया है अत: वह इसे बदले की भावना से की गई कार्रवाई व संघीय ढाँचे पर प्रहार मान रही है। सेन्ट्रल पुल से धान ख़रीदी के मामले में टकराव के बाद एक बार फिर राज्य व केन्द्र सरकार आमने- सामने हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आरोप है कि छत्तीसगढ में प्रचंड बहुमत से हुई कांग्रेस की जीत से भाजपा अभी भी बौखलाई हुई है। आयकर विभाग का छापा इसी बौखलाहट का परिणाम है ताकि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बने।
यह समझ से परे है कि मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय विभागों की संयुक्त कार्रवाई की खबर मिलने के बाद आनन-फ़ानन में क्यों प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्हें थोड़ा धैर्य रखना चाहिए था। परिस्थितियों की परख करनी चाहिए थी क्योंकि छापे केवल सरकारी अधिकारियों के यहाँ नहीं पड़े हैं । और भी लोग हैं जो इसकी जद में आए हैं। इससे यह ध्वनि निकलती है कि सरकार को सिर्फ अफ़सरों के यहाँ हुई जाँच पड़ताल पर आपत्ति है।यह सवाल उठता है कि यदि सरकारी अधिकारियों के ख़िलाफ़ केन्द्र को मिली शिकायतों के आधार पर पड़ताल करनी है तो राज्य सरकार के मुखिया को छापे की पूर्व सूचना कैसे दी जा सकती है? इसलिए इस मुद्दे पर आपत्ति उठाने का कोई औचित्य नहीं है अलबत्ता स्थानीय पुलिस को परे रखकर दिल्ली से सीआरपीएफ़ को साथ में लेकर छापे की कार्रवाई राज्य के मामले में हस्तक्षेप है जिसे मुख्यमंत्री ने दो मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे गए पत्र में रेखाकिंत किया है। तीन पेज के इस पत्र में बघेल ने प्रधानमंत्री से आयकर कार्रवाई में हस्तक्षेप की अपील की है। छापों में केन्द्रीय बल के इस्तेमाल को असंवैधानिक बताते हुए कहा गया है कि यह कार्रवाई एक ओर राजनीतिक प्रतिशोध है तो दूसरी ओर संघवाद के मूल सिद्धांत के विपरीत भी।
प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा देने वाले इस मामले की शुरूआत 27 फ़रवरी की सुबह हुई जब बिना स्थानीय आयकर अफ़सरों को विश्वास में लिए दिल्ली से सौ से अधिक आईटी अफसर पूरी गोपनीयता बरतते हुए विशेष विमान से रायपुर आए तथा करीब दो सौ सीआरपीएफ़ के जवानों के साथ अलग-अलग टुकड़ियों में बँट गए। अलग-अलग समूह ने रायपुर, भिलाई और बिलासपुर में छापे मारे व दस्तावेज़ों की जाँच शुरू की । इस टीम में केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ( सीबीडीटी ) के अफसर भी थे। टीम ने राज्य के पूर्व मुख्य सचिव व वर्तमान में रेरा ( रियल एस्टेट रेगुलेटरी एक्ट ) के चेयरमैन विवेक ढांड, मेयर एजाज़ ढेबर , उनके कारोबारी भाई अनवर ढेबर , मेयर के क़रीबी अफ़रोज़ अंजुम , आईएएस अनिल टुटेजा ,उनकी कारोबारी पत्नी मीनाक्षी टुटेजा ,शराब ठेकेदार अमोलक सिंह भाटिया , सीएम भूपेश बघेल के सचिवालय में पदस्थ व उनकी विश्वसनीय उप सचिव सौम्या चौरसिया , आबकारी विभाग के ओएसडी ए पी त्रिपाठी , सीए कमलेश जैन ,आबकारी ठेकेदार संजय दीवान ,प्लेसमेंट एजेंसी के संचालक सिंघानिया , डा. ए फ़रिश्ता व आरडीए के पूर्व चर्चित अधिकारी व व्यवसायी गुरुचरण सिंह होरा के यहाँ जाँच-पड़ताल की। इनमें से प्राय: सभी ने जाँच कर्ताओं के साथ सहयोग किया। केवल उप सचिव सौम्या चौरसिया ही कुछ समय के लिए अंडर ग्राउंड रहीं फलत: उनके भिलाई स्थित आवास को सील कर दिया गया। बाद में वे सामने आईं। जाँच-पड़ताल की कार्रवाई तीन-चार दिन तक चली। छत्तीसगढ के अलग प्रांत बनने के बाद पोलिटिकल फ़ंडिग व भारी भरकम आयकर चोरी के संदेह में छापे की यह सबसे बडी घटना है। प्रारंभिक पड़ताल के बाद सेन्ट्रल बोर्ड आफ डायरेक्टर टैक्स कमिश्नर व अधिकृत प्रवक्ता सुरभि अहलुवालिया ने मीडिया को मोटी-मोटी जानकारी दी। इसके अनुसार जाँच में करीब 150 करोड़ के बेनामी लेनदेन का पता चला है जिसमें कर्मचारियों के नाम से खाते खोलकर करोड़ों का लेनदेन करने, हवाला , शैल कंपनियों में निवेश व बडी मात्रा में नगदी बरामद हुई है। हर माह शराब व माइनिंगका पैसा अफसरों की जेब में में जाने का भी दस्तावेज़ों में उल्लेख है। बताया गया कि वास्तविक आँकड़े जाँच पूरी होने के बाद ही सामने आयेंगे जो इससे कही अधिक हो सकते हैं।राज्य में आयकर छापे ऐसे समय पड़े जब राज्य विधान सभा का सत्र चल रहा है। जब यह खबर आम हुई कि सरकारी मुलाजिम रेरा चेयरमैन विवेक ढांड, आईएएस अनिल टुटेजा, आबकारी ओएसडी त्रिपाठी व उप सचिव सौम्या चौरसिया भी छापे की जद में आए हैं तो सरकार व प्रदेश कांग्रेस एकदम चैतन्य हो गई क्योंकि इसकी आँच प्रदेश भर में महसूस की जा रही थी। प्रारंभ में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मोहन मरकाम ने इसे आयकर विभाग की रूटीन कार्रवाई बताते हुए कहा था कि छापे के दायरे में वे अफसर आए हैं जो भाजपा शासन में मलाईदार पदों पर थे लेकिन बाद में उनके सुर बदल गए। दरअसल छापे की गंभीरता का अहसास होते ही मुख्यमंत्री ने मोर्चा संभाला और सरकार सहित समूची प्रदेश पार्टी ने केन्द्र सरकार को घेरते हुए इस कार्रवाई को बदले की भावना से प्रेरित बताया। सरकार की बदहवासी का आलम यह था कि बजट की तैयारी की दृष्टि से कैबिनेट की 28 फ़रवरी को पूर्व निर्धारित बैठक रद्द कर दी गई और मुख्यमंत्री दिल्ली रवाना हो गए। खराब मौसम की वजह से उन्हें रायपुर वापस लौटना पड़ा पर अगले दिन वे पार्टी हाई कमान से चर्चा करने फिर दिल्ली गए। इसके पूर्व , 27 फ़रवरी को ही मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों व पार्टी पदाधिकारियों ने राजभवन पहुँचकर राज्यपाल को ज्ञापन दिया। कांग्रेस ने विशाल धरना प्रदर्शन किया व आयकर दफ़्तर की घेराबंदी भी की । सभी नेताओं का एक ही सुर था कि छत्तीसगढ में विधान सभा सहित सभी चुनावों में कांग्रेस की बंपर जीत को केन्द्र में बैठी भाजपा सरकार पचा नहीं पा रही है। वह बदले की भावना से ग्रस्त है तथा छापों के जरिए दहशत फैलाकर राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बनाने की कोशिश कर रही है।
दरअसल मुख्यमंत्री की परेशानी यह थी कि आयकर छापे की कार्रवाई उनके अफसरों पर हुई। यह किरकिरी भी थी और सरकार के प्रति जनता के विश्वास पर चोट भी। यकीनन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सुलझे हुए परिपक्व नेता है । अल्प समय में ही अपनी राजनीतिक सोच व कार्यशैली से उन्होने विशिष्ट छवि बनाई है लिहाजा यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे कोई ऐसी बात कहेंगे जो गले नहीं उतरेगी । इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है कि सरकारी मुलाजिमों के यहाँ छापे उन्हें नागवार गुज़रे हैं और वह भी राज्य सरकार की बिना जानकारी में लाए। चूँकि यहाँ सरकार की साख का सवाल था लिहाजा अप्रत्यक्ष ही सही, अपने अधिकारियों के बचाव में उन्हें आगे आना ही था। इसमें भी शक नहीं जिस तौर-तरीक़े से छापामार कार्रवाई हुई वह यह राय बनाने के लिए पर्याप्त है कि एक तीर से दो निशान साधने की कोशिश की गई जिसमें राजनीतिक प्रतिशोध की बू आती है पर इस विचार से कोई इत्तफ़ाक़ नहीं रखेगा कि ऐसी किसी कार्रवाई से राज्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा होगी। कांग्रेस सरकार भारी बहुमत से सत्ता में है अत: अगले चुनाव के पूर्व कोई भी राजनीतिक साज़िश उसे बेदख़ल नहीं कर सकती । मुख्यमंत्री बघेल ने केन्द्र पर राजनीतिक अस्थिरता आरोप लगाकर अपनी घबराहट ही जाहिर की है जो आश्चर्यजनक है।
इस पूरे मामले में केवल भाजपा के प्रादेशिक नेताओं ने ही सरकार व कांग्रेसी नेताओं के आरोपों का जवाब दिया। दिल्ली ने इसकी ज़रूरत नहीं समझी। इस छापे के एक पक्ष को राज्य सरकार पर दबाव बनाने की गरज से राजनीतिक मुहिम की दृष्टि से भी देखा जा सकता है। इसके दो बडे कारण है। पहला यह कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राष्ट्रीय व राज्यीय मुद्दों को लेकर मोदी सरकार पर जितने आक्रामक हैं उतना किसी गैर भाजपा शासित राज्य का कोई मुख्यमंत्री नहीं। दूसरा कारण है उन भाजपा नेताओं व अधिकारियों को कवच देना जो जाँच के दायरे में हैं। बघेल सरकार ने सत्तारूढ़ होते ही रमन सिंह के 15 वर्षों के शासन के दौरान किए गए करोड़ों के विभिन्न घोटालों का कच्चा-चिट्ठा निकालकर जाँच शुरू करवाई जिनमें से कुछ मामले अदालत में है। जिनके खिलाफ प्रकरण दर्ज है उनमें प्रमुख हैं रमन सिंह , उनके बेटे अभिषेक सिंह , दामाद डाॅ. पुनीत गुप्ता , प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह व निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुकेश गुप्ता। आयकर छापे को इन प्रकरणों से भी जोड़कर देखा जा रहा है। अब यह देखने की बात है कि कांग्रेस सरकार इन मामलों को निपटाने में अधिक तेजी दिखाएगी या रफ़्तार सुस्त कर देगी। अगर ऐसा हुआ तो छापे के असर का यह राजनीतिक आंकलन होगा।