मुंबई ।ओपन क्लोज और पत्ती के माध्यम से सट्टे को पूरे भारत मे चर्चित कर करोड़ पति को कंगाल और कंगाल को करोड़ पति बना देने वाले मटका किंग रतन खत्री का निधन हो गया है । सट्टा एक तरह का जुआ था मगर इसमें भी रतन खत्री की ईमानदारी काफी चर्चित रहा है । सत्तर और अस्सी के दशक में सट्टा कमोबेश पूरे भारत मे छा चुका था । जिसमे डूबे लोग रात 9 बजे और 12 बजे ओपन क्लोज का इंतजार करते । ओपन क्लोज मिलाकर जोड़ी बनती थी और पूरे अंक में 100 जोड़ी रहते । एक जोड़ी सही आने पर 1 रुपये का अस्सी रुपये लगाने वाले को मिलता था । ओपन क्लोज के लालच में करोड़ो लोग कंगाल हुए तो उतने ही लोग अच्छी खासी कमाई भी किये ।
भारत में सट्टा बाजार के अग्रणी नामों में शुमार रतन खत्री का रविवार को निधन हो गया। ‘मटका किंग’ के नाम से मशहूर 88 वर्षीय खत्री ने मुंबई में लंबी बीमारी के बाद दम तोड़ दिया। कई दशक तक रतन ने भारत के सबसे बड़े सट्टा रैकेट चलाया .
वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और उन्होंने मुंबई सेंट्रल स्थित नवजीवन सोसाइटी में अपने घर में अंतिम सांस ली. सिंधी परिवार से आने वाले खत्री बंटवारे के समय अपनी युवावस्था में पाकिस्तान के कराची से मुंबई आए थे.
मटका किंग के नाम से मशहूर खत्री को मटका (1962 में मुंबई में शुरू हुए जुआ के एक प्रकार मटका) को बदलने का श्रेय जाता है. इसके बाद मटका देश में भर में सट्टेबाजी का एक बड़ा रैकेट बन गया और कई दशकों तक उस पर मटका किंग कहे जाने वाले रतन खत्री का राज रहा. हालांकि भारत में किसी भी तरह का जुआ गैरकानूनी है लेकिन इसके बावजूद मुंबई में बड़े पैमाने पर मटका का कारोबार चलता रहा.
खत्री ने शुरुआत में कल्याणजी भगत के साथ मिलकर काम किया था. खत्री ने भगत के साथ वर्ली मटका के मैनेजर के तौर पर काम किया. बाद में इन दोनों के रास्ते अलग हो गए. तब रतन खत्री ने ‘रतन मटका’ की शुरुआत की.
सट्टेबाजी, मटका या लॉटरी नंबर गेम के तौर पर काफी प्रचलित हैं. ये सभी खेल मुंबई में अंग्रेजों के जमाने से खेले जा रहे हैं. ऐसा कहा जाता है कि मटका की लोकप्रियता के चलते उस समय न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज मार्केट खोलने और बंद करने के पैसे लिया करता था.
1960 के दशक में मटका ने मुंबई के युवाओं का ध्यान अपनी ओर खूब खींचा और ये उनके बीच काफी लोकप्रिय भी रहा. पिछले कई दशकों में कई लोगों को मटका की लत लग गई थी. खत्री के जाने के मटका और सट्टा बाजार में हलचल मच गई.
रतन खत्री के मटका की छत्तीसगढ़ में भी भारी धूम मची ।तब मोबाइल का जमाना नही था । छतीसगढ़ में भाटापारा और मुंगेली सट्टा के नाम से काफी बदनाम रहा । खाईवाल अनेक लोग थे जो कमीशन बेसिस पर लोगो को रख पट्टी लिखवाते थे । सट्टा पट्टी लिखने वाले और सटोरियों की ईमानदारी पर पूरा व्यवसाय संचालित होता था । समय समय पर दोषारोपण से बचने के लिए पुलिस द्वारा एक दो सट्टा पट्टी लिखने वालों पर कार्रवाई कर दी जाती थी । ओपन क्लोज का सही नम्बर जानने के लिए आगरा , मुंबई ,दाहोद से कई साप्ताहिक मासिक छोटे व मध्यम अख़बार व बुक भी प्रकाशित होते थे जो छत्तीसगढ़ में भी आते थे जिसमें अंकों का जोड़ घटाव व पिछले कई सालों के रिकार्ड होते थे । अनेक लोग तीर तुक्का और सहज अनुमान के आधार पर ही लाखो करोड़ो कमाए ।जबकि रतन खत्री मुंबई में रहकर सिर्फ नम्बर प्रसारित करते थे और लोग उस पर भरोसा करते थे । हालत यह थी कि सट्टा की बुरी लत गरीब वर्ग से मध्यम वर्ग के घरों तक घुस चुका था । होटल पान ठेलों में सट्टा का नम्बर लिखा जाने लगा था । नब्बे के दशक में रतन खत्री के सट्टा की रफ्तार कमजोर होते गई फिर भी स्थानीय स्तर पर खाईवाल सक्रिय होकर सट्टा खिलाने शुरू किए जो आज भी कही कही संचालित होता है मगर पुलिस का दबाव सट्टा के खिलाफ ज्यादा बढ़ गया है ।