: बिलासपुर ।प्रदेश में संचालित सीपीपी आधारित उद्योग कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के रवैए से कभी भी बंद हो सकते हैं। ऐसा तब हो रहा है जबकि प्रदेश में कोयले का भंडार लगभग 56 बिलियन टन है जो कि कुल कोयला भंडार का तकरीबन 18 फीसदी है। सीआईएल की अनुषंगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) गंभीर अनियमितताओं और लचर प्रबंधन के कारण पहले ही उत्पादन लक्ष्य से बेहद पीछे है औरउसने छत्तीसगढ़ के नॉन पावर सेक्टर को मिलने वाले कोयले में भारी कटौती कर दी है। अब कोल इंडिया ने प्रेम सागर मिश्रा को एस आई सी एल का नया अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक बनाया है तो इस और उनका ध्यान आकृष्ट कर उनसे कुछ सकारात्मक पहल की उम्मीद तो की जा सकती है ।
एसईसीएल ने 1 फरवरी, 2022 को एक परिपत्र जारी किया है जिसके अनुसार वह छत्तीसगढ़ में सीपीपी आधारित उद्योगों के उपभोक्ताओं को मंथली शेड्यूल्ड क्वांटिटी (एमएसक्यू) के मात्र 75 फीसदी कोयले का ऑर्डर बुक करने की सुविधा देगा। सूत्रों का कहना है कि एसईसीएल का यह कदम नॉन पावर सेक्टर के लिए भ्रमित करने वाला है। कागजों पर यह दिखाई तो दे रहा है कि एसईसीएल ने नॉन पावर सेक्टर को कोयला देने से मना नहीं किया परंतु जमीनी सच्चाई यह है कि अघोषित रूप से नॉन पावर सेक्टर के कोटे में कमी कर दी गई है।
एमएसक्यू का गणित यह है कि उपभोक्ता एसईसीएल के साथ प्रति वर्ष एक निश्चित मात्रा में कोयला लेने का अनुबंध करते हैं। एक वर्ष के कोयले की जिस मात्रा का अनुबंध होता है उसे तकनीकी शब्दावली में एन्यूअल क्वांलिटी (एक्यू) कहा जाता है। प्रतिमाह कोयले का हिसाब निकालने के लिए एक्यू में से 12 का भाग दिया जाता है। इस प्रकार जो मात्रा निकलती है उसे ही एमएसक्यू कहा जाता है। एसईसीएल ने रणनीति के तहत परिपत्र निकालकर उपभोक्ताओं को यह कह दिया है कि एमएसक्यू का 75 फीसदी कोयला बुक किया जा सकेगा परंतु कोयले की आपूर्ति इसकी उपलब्धता के अनुपात में तय होगी। इस प्रकार शेष 25 फीसदी कोयले की आपूर्ति का एसईसीएल का दायित्व स्वतः समाप्त हो जाएगा।
यह भी कि एसईसीएल भले ही एमएसक्यू का 75 फीसदी कोयला देने की बात कहे पर यह भी उतना ही सच है कि उपभोक्ताओं को 75 फीसदी कोयला भी नहीं मिल पाता। सीपीपी आधारित उद्योगों के लिए एसईसीएल की यह अड़ंगेबाजी इसलिए है क्योंकि उसके पास पर्याप्त उत्पादन नहीं है। उत्पादन के जो आंकड़े कागजों में पेश किए जा रहे हैं, उसमे कितनी सच्चाई है प्रबंधन ही जाने । ऐसे में नॉन पावर सेक्टर के उद्योग एसईसीएल की कथित गलत नीतियों के आसान लक्ष्य बन जाते हैं।
उधर स्पज आयरन एसोसिएशन ने यह स्पष्ट मांग की है कि राज्य के संसाधनों पर पहला अधिकार स्थानीय उद्योगों का है। ऐसे में उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर कोयला मिलना चाहिए। एसोसिएशन ने एसईसीएल की कार्यशैली के साथ कोल माफिया की भूमिका की ओर भी ध्यान दिलाया है। यह कहा गया है कि सीपीपी आधारित उद्योगों के हितों के विपरीत काम किया जा रहा है। यदि उद्योग बंद हुए तो बेरोजगारी बढ़ेगी जिससे प्रदेश को राजस्व का नुकसान होगा।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ राज्य के 250 से अधिक कैप्टिव विद्युत संयंत्रों पर आधारित उद्योगों के सुचारू संचालन के लिए प्रति वर्ष 32 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है जो कि एसईसीएल के उत्पादन का मात्र 19 प्रतिशत है। इन उद्योगों ने लगभग 4000 मेगावॉट के कैप्टिव पावर प्लांट स्थापित किए हैं जिनके लिए हर दिन लगभग 2 लाख टन कोयले की जरूरत है लेकिन अपने उत्पादन लक्ष्य से काफी पिछड़ चुकी कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी एसईसीएल की स्थिति यह है कि उसने नॉन पावर सेक्टर को प्रतिदिन मात्र 50 हजार टन कोयले की आपूर्ति करने की रणनीति बनाई है।
28 जनवरी, 2022 को राज्य के नॉन पावर सेक्टर के लिए अचानक ही रोड सेल बंद करने की एसईसीएल द्वारा जारी परिपत्र के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया था। अनेक उपभोक्ताओं के जरिए यह जानकारी आई थी कि उनके ट्रकों को 28 जनवरी की शाम से ही खदान में प्रवेश से रोक दिया गया। बाद में एसईसीएल ने अपने अधिकारिक बयान में यह कहा कि उसकी ओर से नॉन पावर सेक्टर को रोड सेल के जरिए आपूर्ति बंद नहीं की गई है। बयान में यह भी बताया गया कि पावर सेक्टर के अनेक संयंत्रों की स्थिति को देखते हुए प्राथमिकता के आधार पर उन्हें कोयले की आपूर्ति का निर्णय लिया गया है। एसईसीएल ने अपने बयान में कहीं भी यह स्पष्ट नहीं किया कि उसके द्वारा नॉन पावर सेक्टर को कितनी मात्रा की आपूर्ति की जानी है। जबकि सूत्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के उद्योगों के हिस्से में आने वाले प्रतिदिन लगभग डेढ लाख टन कोयले से उन्हें वंचित करने की तैयारी कर ली गई है। ऐसे में जाहिर है कि अगले कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ के नॉन पावर सेक्टर के हालात बदतर ही होंगे।
एसईसीएल का वार्षिक उत्पादन लक्ष्य 165 मिलियन टन है और देश के कुल कोयला उत्पादन का 25 प्रतिशत राज्य में उत्पादन किया जाता है। एसईसीएल के सामने चौथी तिमाही में 15 जनवरी से 31 मार्च, 2022 के दौरान 75 दिनों में 75 मिलियन टन का उत्पादन लक्ष्य पाने की बड़ी चुनौती है। वर्तमान में एसईसीएल प्रतिदिन लगभग 4 लाख टन कोयला निकाल पा रहा है। इस गति से एसईसीएल इस वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही में 35-37 मिलियन टन के आंकड़े तक सिमट जाएगा। ऐसे में कोल इंडिया ने राज्य के संयंत्रों की जरूरतों पर कैंची चला दी है और राज्य का कोयला दूसरे राज्यों में भेजने का फैसला कर लिया है।
प्रदेश के सीपीपी आधारित उद्योगों की समस्याओं पर छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार को पुख्ता तौर संज्ञान लेना होगा अन्यथा इस बात की आशंका है कि एसईसीएल का रवैया छत्तीसगढ़ के हजारों कागमारों के हितों पर विपरीत असर डालने वाला साबित हो सकता है । छत्तीसगढ़ में आज जरूरत इस बात की है कि राज्य के सीपीपी आधारित उद्योगों को उनके हक का पूरा कोयला मिले। राज्य से बाहर भेजे जा रहे कोयले पर तत्काल रोक लगाई जाए।