तकनीकी सत्रों में सीमेंट उद्योग, वानिकी विभाग, अभियांत्रिकी विभाग और प्रशासन के नीति निर्माता हुए शामिल
खरोरा/रायपुर। यूनिसेफ और एमिटी विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ की ओर से जलवायु परिवर्तन पर आयोजित नेशनल कनक्लेव में औद्योगिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ, विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर्स और प्रशासन से नीति निर्माताओं ने तकनीकी सत्रों को संबोधित किया। अपने कार्यानुभव और नीति संबंधी समस्याओं को बताते हुए इन्होंने समाधान प्रस्तुत किया। एमिटी विश्वविद्यालय के सभी स्कूलों की टीमें बनाई गई थीं, जो इन तकनीकी सत्रों में बतौर प्रतिभागी, विशेषज्ञों के साथ परिचर्चा कर रहे थे, इनमें प्रोफेसर्स, शोधार्थी व विद्यार्थी शामिल रहे।
शुभारंभ सत्र को संबोधित करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार में बायो डायवर्सिटी बोर्ड के अवर सचिव, आईएफएस श्री अरुण कुमार पांडेय ने इस बात पर जोर दिया कि, पर्यावरण के प्रति अनुशासित करने और जिम्मेदार बनाने नागरिकों और मैनुफैक्चरिंग संगठनों के लिए कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है, केवल नैतिक मूल्यों के आधार पर अपेक्षाएं नहीं रख सकते कि प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग वे संतुलित रुप से करेंगे, इसी का परिणाम है कि साल दर साल ठंड के मौसम में गर्मी, मानसून के मौसम में बारिश के स्थान पर नमी और अनियमित रुप से बारिश हो रही है। इन्होंने बताया कि वातावरण के तापमान बढ़ने का प्रमुख कारण प्रशीतक उद्योग है। यहां एसी, ऱेफ्रिजरेटर निर्मित किए जा रहे हैं। हमने भू-अधिकार अधिनियम लागु होने के बाद जंगलों में रहने वाले ग्रामीणों को वैधानिक रुप से भू आबंटित किया है, इससे जंगलों का दायरा कम हुआ है। शहरों में तालाबों को खत्म कर उस पर घर और फैक्ट्री बना दिए गए हैं, इससे वेटलैंड और तालाबों की संख्या कम हुई है।
क्रेडा रायपुर के पूर्व मुख्य अभियंता संजीव जैन ने बताया कि नागरिकों को रिन्यूबल एनर्जी का इस्तेमाल करना चाहिए। 80 से 85 प्रतिशत एनर्जी कंजम्पशन का कारक फोजिल फ्यूल है। एनर्जी स्वराज फाउंडेशन का कार्य देश में एनर्जी लिटरेसी यानी ऊर्जा साक्षरता को बढ़ाना है, हमें इसे अपनाना चाहिए। एक तिहाई एनर्जी को अवाइड करें, एक तिहाई एनर्जी को मिनिमाइज करें और एक तिहाई एनर्जी को जनरेट करें। गांवों में एनर्जी स्टोरेज प्लांट स्थापित करने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
जवाहर लाल नेहरु गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज के कम्यूनिटी मेडिसीन के विभागाध्यक्ष डॉ निर्मल वर्मा ने कहा कि- नेशनल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज एंड ह्यूमन हेल्थ का मुख्य लक्ष्य है – भारत में मोर्टलिटी, इंजरिज और हेल्थ इशूज को कम करना। स्वच्छ भारत अभियान के तहत एयर क्वालिटी इंडेक्स को भी शामिल किया गया है, इसलिए अब लोग भी वायु प्रदूषण को समझने लगे हैं। एनआईटी रायपुर के निदेशक एएम रवानी ने नेटजीरो के बारे में बताया, वेस्ट मैनेजमेंट की तकनीक बताई।
सहारा मरुस्थल पहले सघन वन था- प्रोफेसर एसएस सिंह*
तकनीक सत्र में वानिकी प्रोफेसर एसएस सिंह ने बताया कि स्वतंत्रता के बाद भारत 46 प्रतिशत वनों से आच्छादित था, अब यह क्षेत्र काफी सीमित हो गए हैं। वर्तमान में तकनीक और प्रदूषण के बढ़ने से वातावरण गर्म हुआ है। एक समय ऐसा था कि सहारा मरुस्थल पर सघन वन हुआ करता था लेकिन अब वह सबसे बड़ा मरुस्थल है। एनआईटी रायपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर मणिकांत वर्मा ने बताया कि बाढ़ आने से पहले ही शहर को सुनियोजित ढंग से बसाना चाहिए। शहर के खाली स्थानों को तालाब में तब्दील करना चाहिए।
एनर्जी ऑडिट को अपनाएं फैक्ट्रीज- आशीष शर्मा, वाइस प्रेसिडेंट, विस्टास सीमेंट*
ईएसजी न्यूवोको विस्टास सीमेंट इंडस्ट्री, बलौदाबाजार के वाइस प्रेसिडेंट श्री आशीष शर्मा ने कहा- राज्यों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने के लिए योजनाएं बनती हैं लेकिन उनका क्रियान्वयन पूर्ण नहीं हो पाता है, इसका कारण है कि सरकार बदलने से योजनाओं में भी प्राथमिकताएं निर्धारित हो जाती हैं। इसलिए राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं का लागु होना आवश्यक है। कुछ कंपनीज को एनर्जी ऑडिट की जानकारी नहीं है, लेकिन बड़ी कंपनियों में एनर्जी ऑडिट की जाती है। इसका संतुलन किसी भी भौगोलिक क्षेत्र के वातावरण को शुद्ध बनाने में सहायक है। सीमेंट उद्योग में कार्वन डाय आक्साइड की मात्रा कैसे कम कर सकते हैं इस प्रश्न के उत्तर में बताया कि एक तिहाई एमएसडब्लू वेस्ट को आरडीएफ में कन्वर्ट कर सीमेंट उद्योग काम कर रही है।
ईंधन बचाने के लिए हल्के और मजबूत धातु का इस्तेमाल करना चाहिए, इसलिए हम गाड़ियों में एल्यूमिनियम ऑडिटर बना रहे हैं। गवर्मेंट बायोडिजल को प्रमोट क्यों नहीं करती है, इस प्रश्न का उत्तर देते हुए संजीव जैन ने बताया कि इसका प्रबंधन कठिन है।
दलहन फसलों की खेती से कार्बन के नकारात्मक प्रभाव को नियंत्रित करें- निदेशक पीके घोष*
आईसीएआर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटीक स्ट्रेस मैनेजमेंट रायपुर के निदेशक पीके घोष ने बताया कि कोरबा के कोयला खानों से उत्सर्जित कार्बन से स्थानीय नागरिकों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, इसे नियंत्रित करने दलहन फसलों की खेती करनी चाहिए, इससे कार्बन के प्रभाव को कम किया जा सकता है। ट्रांसप्लांटेड राइस से मिथेल का उत्सर्जन बहुत ज्यादा होता है, तो ज्यादा पानी की जरूरत होती है, इसलिए डायरेक्टली प्लांटेड राइस का प्रोडक्शन बढाना चाहिए। केवल अफेक्टेड स्थानों पर ही नैनो यूरिया और नीम कोटेड यूरिया का छिंडकाव किया जाना चाहिए, यह एग्रीकल्चर मार्केट में नया है, इसका प्रशिक्षण किसानों को दिया जाना चाहिए। आईएफएस अरुण कुमार पांडेय ने बताया कि किसानों को स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, ड्रोन से यूरिया, खाद का छिंड़काव सीखाना चाहिए। नजदीकी पीकरीडीह में मत्स्य पालन के लिए 52 टैंक स्थापित किया गया है, यह मध्यभारत का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है, स्टूडेंट्स को यहां दौरा कर प्रक्रिया को समझना चाहिए।
राष्ट्रीय कनक्लेव के समापन समारोह में तकनीकी सत्रों का निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए प्रो वाइस चांसलर प्रोफेसर पीयूष कांत पांडेय ने बताया कि भौतिक और प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित प्रयोग करें, नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे त्वरित लाभ के लिए नहीं बल्कि दीर्घकालीन परिणाम को ध्यान में रखते हुए नीति निर्माण करें। प्राध्यापक व शोधार्थियों को इंडस्ट्रीज के नए साधन व तकनीक के बारे में ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में जागरुकता का प्रसार करना चाहिए। पर्यावरण को संतुलित करने में समाज के हर वर्ग की भूमिका है।
इस अवसर पर कुलसचिव डॉ सुरेश व सभी स्कूल्स के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर्स, शोधार्थी, विद्यार्थी सम्मिलित रहे।