बिलासपुर । नगर निगम महापौर बनने की अति महत्वकांक्षा ने बिलासपुर के जिला कांग्रेस ग्रामीण के अध्यक्ष विजय केशरवानी और शहर अध्यक्ष नरेंद्र बोलर को पार्षद का चुनाव लड़ने विवश कर दिया है । दोनो अध्यक्ष के चुनाव लड़ने के कारण शेष 68 प्रत्याशी कांग्रेस संगठन के मदद बगैर ही चुनाव लड़ने मजबूर है ।कायदे से दोनो अध्यक्ष को प्रत्याशी बनाये जाने के तुरंत बाद पार्टी द्वारा प्रभारी अध्यक्षो का मनोनयन करना था मगर ऐसा अभी तक नही हो पाया है जबकि हर जिले में चुनाव के समय कांग्रेस संगठन की महती जिम्मेदारी होती है ।
स्थानीय चुनाव हो या कोई भी चुनाव पार्टी संगठन के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी रहती है लेकिन संगठन के प्रमुख पदाधिकारी ही चुनाव मैदान में आ जाये तो उनकी जगह पार्टी प्रभारी की नियुक्ति कर देती है मगर बिलासपुर में ऐसा नही हो पाया । पार्टी के विभिन्न गुटीय नेताओ ने टिकट चयन के मापदंडों की अनदेखी कर अपने अपने समर्थकों को पार्षद की टिकट दिलाने में सफल रहे । शहर और ग्रामीण अध्यक्ष भी महापौर बनने का सपना देख पार्षद की टिकट लेने में सफल रहे । बिलासपुर नगर निगम समेत पूरे जिले के नगरीय निकायों के चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशी बिना संगठन के चुनाव लड़ रहे है ।
दोनो अध्यक्षो को निश्चित ही पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है तो पार्टी की यह जिम्मेदारी थी कि दोनों अध्यक्षो की जगह प्रभारी की नियुक्ति कर देती मगर यह अभी तक नही हो पाया । दोनो अध्यक्ष अपना वार्ड देखेंगे कि कांग्रेस के अन्य तमाम प्रत्याशियों के प्रचार में भी वक्त देंगे यह स्पष्ट नही है । मुकाबला इतना कड़ा है कि दोनों प्रत्याशी मतदान दिन तक अपने वार्डो से बाहर नही निकल पाएंगे । ऐसे में शेष प्रत्याशी अपने बलबूते पर चुनाव लड़ने बाध्य हैं ।
यह भी सम्भव है कि पार्टी एक दो दिन में दोनो अध्यक्ष की जगह प्रभारियों की नियुकि कर दे । लाख टके का प्रश्न तो यह है कि दोनों अध्यक्ष क्या पार्षद का चुनाव जीत जाएंगे और जीत भी गए तो महापौर भी बन जाएंगे इसकी क्या गारंटी है ? वैसे भी महापौर का एक ही पद है और यदि हाई कोर्ट की वक्र दृष्टि पड़ गई तो वह पद भी हाथ से जाता रहेगा । हाईकोर्ट में महापौर के अप्रत्यक्ष चुनाव को लेकर दायर याचिकाओं पर 16 दिसम्बर को सुनवाई है और कोर्ट राज्य सरकार के फैसले के विपरीत यदि फैसला देता है तो महापौर चुनाव प्रत्यक्ष कराने होंगे यह भी हो सकता है हाईकोर्ट राज्य सरकार के निर्णय को सही ठहरा दे । यानी कोर्ट से कुछ भी फैसला आ सकता है । दर असल असलियत जानने 15 साल पीछे जाना पड़ेगा । याद करें पूर्ववर्ती भाजपा शासनकाल में 15 साल तक हाईकोर्ट से सरकार के खिलाफ कोई फैसला नही आया मगर वर्तमान सरकार के सिर्फ एक साल के कार्यकाल में दर्जन भर फैसले सरकार के विरुध्द आ चुके है तो इस बात की क्या गारंटी है कि आने वाले फैसले सरकार के पक्ष में होंगे खिलाफ में भी तो जा सकते है इसलिए फैसले कुछ भी आ सकते है मगर महापौर के दावेदार कांग्रेस नेताओं को अभी से महापौर की कुर्सी दिखाई दे रही है । महापौर पद का ताज तो उसे ही मिलेगा जिसे पार्टी चाहेगी ।