बिलासपुर।विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में अब सिर्फ चार दिन बचे है।पांचवें दिन यानि तीन दिसंबर को दोपहर तक यह स्पष्ट हो जाएगा कि छत्तीसगढ़ समेत 5 राज्यो में किस किस पार्टी की सरकार बन रही है लेकिन अभी अनुमानों और उम्मीदों का बाजार गर्म है ।लोग अपनी सुविधा संतुलन के हिसाब से संभावना जता रहे है और दावे भी कर रहे है ।पिछले विधानसभा चुनाव में बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के 8 विधानसभा में भाजपा को 4 कांग्रेस को 2 और जोगी कांग्रेस को 2 सीटे मिली थी लेकिन इस बार बड़े बदलाव की गुंजाइश दिख रही है ।पुलिस मैदान में प्रियंका गांधी की सभा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बात विशेष तौर पर कही थी कि पिछले चुनाव में हम बिलासपुर जिले से पिछड़ गए थे लेकिन इस बार छक्का लगाना है ।मुख्यमंत्री का आशय बिलासपुर जिले के सभी 6 विधानसभा में कांग्रेस को जिताने का था या फिर बिलासपुर लोकसभा अंतर्गत 8 विधानसभा में से 6 में जीत दर्ज करने का था यह स्पष्ट नहीं है लेकिन उनकी जो मंशा है ,उन्होंने आमसभा में स्पष्ट कर दिया था ।इधर भाजपा नेताओ को भारी उम्मीद है कि महतारी वंदन योजना से प्रभावित होकर जिले की महिलाएं भाजपा को वोट देंगी और ऐसा होता है तो प्रदेश में भाजपा की सरकार बनना तय है लेकिन भाजपा नेताओ को यह भी चिंता सताए जा रही है कि कम वोटिंग का खामियाजा कही भाजपा को भुगतना न पड़ जाए ।इसके पीछे यह तर्क है कि खासकर बिलासपुर विधानसभा समेत शहरी क्षेत्रों में यदि भूपेश बघेल सरकार के प्रति नाराजगी होती तो कांग्रेस के खिलाफ वोट भी पड़ते और वोट प्रतिशत 70 से 75 तक जाता और उसका लाभ निश्चित तौर पर भाजपा को मिलता लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।लोगो का मतदान के प्रति उदासीनता का कारण सरकार के खिलाफ नाराजगी नही बल्कि कुछ और रहा हो ।यह भी माना जाता है कि ज्यादा वोट पड़ने से सत्तारूढ़ दल का नुकसान होता है । यह भी उल्लेखनीय है कि मतदान दिवस को कई विधानसभा क्षेत्र के अनेक बूथों में कई घंटे तक वोटिंग मशीन खराब रही जिसके चलते सैकड़ो मतदाता बिना वोट डाले लौट गए बताया जाता है कि इन बूथों में पार्टी विशेष के वोटरों की संख्या काफी ज्यादा है इसलिए यह आशंका जताई जा रही कि पार्टी विशेष के वोटरों को मत देने से रोकने वोटिंग मशीन में गड़बड़ी की गई हालांकि इस आरोप के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है और यदि यह बात सत्य है तो इस चुनाव में नतीजे पर भी असर पड़ेगा ।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और सांसद अरुण साव जो स्वयं लोरमी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे है ,की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है ।उन्हे न केवल स्वयं चुनाव जीत कर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को बताना है बल्कि उसके लोकसभा क्षेत्र के 8 विधानसभा सीटो में से या तो सभी या फिर कम से कम 7 सीटो पर भाजपा की जीत दिखानी है उससे कम सीटो पर जीत और खुद की यदि हार होती है तो उनका संसदीय सीट और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का पद खतरे में पड़ सकता है ।उनका यह कथन कि वह चुनाव मजे लेने के लिए लड़ते है ,आश्चर्यजनक है ।इसी तरह दो पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल और डा कृष्णमूर्ति बांधी को भी चुनाव जीतने की कड़ी चुनौती है । हार की स्थिति में राजनैतिक कैरियर खतरे में पड़ सकता है ।एक और पूर्व मंत्री पुन्नू लाल मोहले जो लगातार चुनाव जीतते आ रहे है ,इस बार भी उन्हें उम्मीद है कि मुंगेली क्षेत्र की जनता उन्हें जिताएगी लेकिन यदि वे हार गए तो उम्र के हिसाब से वे भी भाजपा के मार्ग दर्शक मंडल में शामिल कर लिए जाएंगे ।बिल्हा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे भाजपा नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरम लाल कौशिक भी कड़ी टक्कर में फंसे हुए है ।इधर लगातार जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण के अध्यक्ष रहने वाले विजय केशरवानी भी अबकी बार नही तो कभी नहीं के मुख्य सूत्र पर चुनाव लड़ रहे है ।पार्षद, एम आई सी मेंबर और जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण के अध्यक्ष का भार संभालते हुए उन्होंने अपनी राजनैतिक कौशल और कथित “पहुंच”के बल पर बेलतरा सीट से कांग्रेस की टिकट तो हासिल कर ली लेकिन चुनाव मैदान में कूदते ही उन्हें एहसास हुआ कि चुनाव जीतना टिकट लाने से कही ज्यादा कष्टप्रद है सो उन्होंने तमाम तरह के समझौते किए, हर उस शख्स को राजी और खुश किया जो चुनाव जीतने में अहम भूमिका निभाते हैं।इसके बाद भी यदि वे चुनाव नही जीत पाए तो उनका जिला अध्यक्ष पद तो खतरे में पड़ेगा ही ,पार्षद की दुबारा टिकट पाने के लिए भी उन्हें कई बार सोचना पड़ेगा ।वैसे भी विधानसभा चुनाव लड़ने वाले किसी को भी पार्षद चुनाव लडना शोभा नही देता और चुनाव जीत जाते है तो सरकार में मंत्री बनने जोड़तोड़ करेंगे।जोड़तोड़ से उनका पुराना नाता है । उनके खिलाफ भाजपा ने प्रत्याशी घोषित करने में काफी विलंब कर दिया जिसका खामियाजा शायद पार्टी को भुगतना न पड़ जाए हालाकि देर से सही भाजपा प्रत्याशी सुशांत शुक्ला ने काफी मेहनत किया है और यदि वे सफल होते है तो उनकी किस्मत और हारते है तो सुशांत नही बल्कि वहां से भाजपा की हार मानी जायेगी ।कोटा से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव और भाजपा के प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को कांग्रेस और भाजपा ने पहली बार विधानसभा की टिकट दी है हालांकि अटल श्रीवास्तव लोकसभा के प्रत्याशी रह चुके है ।इन दोनो का मुकाबला कोटा से लगातार 4 बार विधायक रह चुकी और उम्र दराज होने के पड़ाव पर पहुंच चुकी डा श्रीमती रेणु जोगी से है ।यदि यह मान लिया जाए कि कोटा क्षेत्र हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है और भाजपा यहां से एक भी बार चुनाव नही जीती है तब भी डा रेणु जोगी पिछला चुनाव जोगी कांग्रेस की टिकट पर जीती थी ।इस बार रेणु जोगी का संभवतया अंतिम चुनाव हो और अगली बार वे चुनाव न लड़े लेकिन इस बार वे अकेले चुनाव लड़ रही है ।पिछले चार चुनाव में उनके साथ अजीत जोगी का सानिध्य नही है ।अजीत जोगी के दिवंगत होने की सहानुभूति और उम्र तथा महिला होने का लाभ श्रीमती जोगी को मिल पाएगा या नहीं यह चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो जायेगा ।इसी तरह 4सौ किलो मीटर दूर से आए भाजपा प्रत्याशी प्रबल प्रताप को कोटा क्षेत्र के मतदाता बाहरी मानते है या स्वीकार करते है यह भी दिख जायेगा लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा कोटा क्षेत्र के विकास की जिम्मेदारी लेने और अटल श्रीवास्तव को जिताने की अपील करने का कितना असर होता है यह भी 3 दिसंबर को स्पष्ट हो जाएगा ।