बिलासपुर । कांग्रेस नेताओं को क्या अपने पार्षदो पर भरोसा नही है ?राज्य में सत्तारूढ़ दल होने के बाद भी कांग्रेस नेताओं को आखिर यह चिंता क्यों सताए जा रही है कि उनके पार्षदो को कोई प्रलोभन देकर पाला बदलवा सकता है? कौन है वो जो कांग्रेस पार्षदो को खरीदने की ताकत रखता है ?क्या वास्तव में बहुमत होने के बाद भी बिलासपुर नगर निगम में कांग्रेस का महापौर चुने जाने में कोई शक की गुंजाइश है ?
ये सारे प्रश्न इसलिए उठ रहे है क्योंकि कांग्रेस नेता डर के मारे ? अपने सारे पार्षदो को 2 दिन के लिए शहर से दूर शिव तराई के रिसॉर्ट में लेजाकर ठहराने के लिए विवश हो गए है । इन कांग्रेस नेताओं को आखिर किससे डर है ? क्या कांग्रेस के पार्षद बिकाऊ है ?कौन है वो शख्स जिससे कांग्रेस के नेता इतने भयभीत हैं और डर गए है ? क्या कांग्रेस के नेता उस पार्टी के नेताओ से डर , सहम गये है जो बहुमत नही होने के बाद भी कई राज्यो में सरकार बना लेने का तिलस्म जानते है ?
आज की स्थिति में कांग्रेस के उन नेताओं के दावों की पोल खुल गई है जो पिछले कई दिनों से निर्दलीय 5 पार्षदो के कांग्रेस में शामिल होने का दावा कर रहे थे उधर भाजपा के नेता बिना किसी हो हल्ला के 2 निर्दलीय पार्षदो को पार्टी में शामिल करने में सफल हो गए है । महापौर का चुनाव 48 घण्टे बाद होने है और भाजपा चुप रहकर भी क्या गुल खिलाती है वह 4 जनवरी को साफ हो जाएगा । दरअसल भाजपा के नेता मुंह बंद रखकर दांव चलते है और कांग्रेसी हल्ला मचाकर कुछ भी नही कर पाते । कांग्रेस और भाजपा में बेसिक अंतर यही है ।
याद करिए छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बहुमत के बाद भी कांग्रेस का अध्यक्ष नही बन पाया था । तब जिले के प्रभारी मंत्री (तत्कालीन) के के गुप्ता पर्यवेक्षक बन कर आये थे और कांग्रेस समर्थित सदस्यों से क्रॉस वोटिंग करवा कर भाजपा के नेताओ ने सधे हुए रणनीति के तहत बहुमत नही होने के बाद भी भाजपा का अध्यक्ष बनवा लेने में सफल हुए थे । बिलासपुर नगर निगम महापौर के चुनाव में भी भाजपा की पूरी तैयारी है कहें तो अतिशयोक्ति नही होगी । ताज्जुब तो इस बात का है सत्ता में रहने के बाद भी डरे हुए है और अपने पार्षदो पर उन्हें भरोसा नहीहै तथा उन्हें क्रॉस वोटिंग की चिंता सता रही है । यानि महापौर का चुनाव जीतने करोड़ो का खेल होने की संभावना है ।