रायपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भ्रष्ट्राचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और जीरो टारलैंस की बात को भाजपा के नेता जोरशोर से प्रचारित करते है लेकिन छग में जिस मामले को लेकर भाजपा विधायको ने कांग्रेस शासनकाल के दौरान सदन में जोरशोर से उठाते हुए भ्रष्टाचार की बातें करते थे वही भाजपा विधायक आज सरकार में है और उस मामले में कार्रवाई को लेकर चुप्पी साध लिए है ।
जी हां मामला छग वेयर हाउसिंग कारपोरेशन का है जिसमे करोड़ों रुपए के गोदाम निर्माण का ठेका देने में चार अधिकारियों की भूमिका जांच में स्पष्ट तौर पर संलिप्त पाई गई है तथा कदा चरण का दोषी पाया गया है।जांच रिपोर्ट में विभागीय जांच के साथ ही गहन पुलिस अन्वेषण की अनुशंसा की गई है लेकिन लगता है इन दागी चारो अफसरों को कोई बचाने में जुट हुआ है तभी तो किसी भी प्रकार की कोई कारवाई नही हो पा रही है ।इन चारो अफसरों को चुनाव आयोग की भी कोई परवाह नही है क्योंकि ये सर्वगुण संपन्न है और वर्षो से एक ही स्थान पर पदस्थ है।
क्या है मामला और कौन हैं ये चतुर सुजान अफसर?
छत्तीसगढ़ स्टेट वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के चार अधिकारी सहायक अभियंता ताराचंद गबेल ,अवधेश कुमार गुप्ता प्रबंधक लेखा एवं उपसंचालक मनोज सिंह ,प्रबंधक वाणिज्य मोहम्मद आगा हुसैन जो वेयरहाउस कमेटी द्वारा निविदा के संबंध में बनाई गई टेक्निकल कमेटी में शामिल थे, के द्वारा अपात्र ठेकेदार को पात्र बनाते हए करोड़ों रुपए का गोदाम निर्माण का ठेका देने में अहम भूमिका निभाई ।यो कहें कि इन चारो अफसरों की अनुशंसा पर ही बिलासपुर के ठेकेदार को सक्ती और सारागांव ( बाराद्वार )में गोदाम निर्माण का ठेका दे दिया गया ।हम निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल नही उठा रहे लेकिन प्रदेश में कांग्रेस शासनकाल के दौरान भाजपा के तेज तर्रार विधायको अजय चंद्राकर,शिवरतन शर्मा आदि ने ठेके की प्रक्रिया पर सवाल उठाए था और यह भी आरोप लगाया कि इस गड़बड़ी में कई शासकीय अधिकारियों,कर्मचारियों के साथ ही सरकारी तंत्र शामिल है और गड़बड़ी की जांच भी वही कर रहे है।सदन में बताया गया था कि मार्च 2023 में चारो अफसरों को कारण बताओ नोटिस जारी किया ।आश्चर्य तो यह है साल भर बाद भी उस कारण बताओ नोटिस का क्या हुआ यह अस्पष्ट है। विभाग के संयुक्त संचालक और जांच अधिकारी ने जांच रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि निविदा जमा करने मात्र 15 दिन का समय दिया गया जबकि छग शासन भंडार क्रय नियम के अंतर्गत नियम 4.5 के अनुसार उक्त प्रकरण में (कार्य की अनुमानित लागत रु 13.45 करोड़) 30 दिन का समय सीमा अनिवार्य है।निर्धारित समय सीमा से कम अवधि निविदा जमा करने हेतु विज्ञापित करना इस बात घ्योतक है कि जानबूझकर एवम षणयंत्र पूर्वक अधिसंख्य ठेकेदारों/फर्म्स की भागीदारी को रोका गया जिससे प्रतिस्पर्धी दरें प्राप्त नहीं हो सकी।निविदा नियमो का उल्लघंन होने से सम्पूर्ण निविदा प्रक्रिया दूषित है तथा समिति द्वारा अनुसंशित दरों पर भुगतान की पात्रता नही है।उपरोक्त प्रकरण में जांच में स्पष्ट पाया गया है कि निविदा समिति के सभी सदस्य ने लोकसेवक होते हुए लोक कर्तव्यों के निर्वहन में षणयंत्र पूर्वक और बेईमानी से कार्य किया तथा अपने पद का दुरुपयोग कर अपात्र ठेकेदार को राशि रु 12.75 करोड़ का अनियमित लाभ पहुंचा दिया गया जिसके लिए निविदा समिति के सभी सदस्य अनुपातिक रूप से उत्तरदायी हैं।निविदा समिति का उपरोक्त कृत्य सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 3 के अंतर्गत कदाचरण की श्रेणी में आता है। निविदा की कार्रवाई दोषपूर्ण होने से निर्माण कार्य की दरें भुगतान हेतु मान्य नहीं है। जांच अधिकारी ने शिकायत करता की शिकायत को सही पाते हुए उक्त प्रकरण में गहन पुलिस अन्वेषण तथा नियमित विभागीय जांच की आवश्यकता बताई है।जांच रिपोर्ट में सारी बातें पूरी तरह स्पष्ट हो गई है फिर भी विभाग मामले को पुलिस को सौंपने और उक्त चारों अधिकारियों के खिलाफ कारवाई करने में क्यों हिचकिचा रही है यह समझ से परे है ।कुछ अधिकारी के खिलाफ तो आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो में पूर्व में ही मामला चलना बताया जा रहा है मगर वहां भी कारवाई की रफ्तार कछुआ चाल से भी गया बीता है। आखिर इन चतुर सुजान सेटिंग बाज अफसरों को कौन बचा रहा है? सरकार किसी भी पार्टी की हो ये अधिकारी अपना रास्ता बना लेते है फिर भी नई सरकार से इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद तो की जा सकती है।
Mon Mar 11 , 2024
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