कर्नाटक में आये राजनैतिक संकट के के लिए हमारा संविधान क्या कहता है, कर्नाटक में अगर बिना इस्तीफा स्वीकार किए बहुमत साबित करने की स्थिति बनती है, तो उन बागी विधायकों को पार्टी व्हिप की अवहेलना करने पर विधानसभा में उनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है.
भारत का संविधान
आइये आज जानते हैं कि किन परिस्थितियों में एक विधायक या सांसद अपने पद से इस्तीफा दे सकता है, और उसे किन स्थितियों में स्वीकार किया जा सकता है.
संविधान के आर्टिकल 190 में विधायकों या सांसदों के इस्तीफे पर दिशानिर्देश दिए गए हैं. इसी आर्टिकल में स्पीकर या किसी दूसरे प्रिजाइडिंग ऑफिसर को ये अधिकार दिया गया है, आइये जानतें हैं कि विधायकों और सांसदों के इस्तीफों के लिए हमारे संविधान में क्या कहा गया है-
- स्पीकर चाहें तो इस्तीफा अस्वीकार कर सकते हैं. स्पीकर इस्तीफे की बाबत जांच करवा सकते हैं. इस्तीफा देने के पीछे वाजिब कारण होने चाहिए. अगर स्पीकर को लगता है कि इस्तीफा सही वजहों से नहीं दिया जा रहा है. अगर वो स्वैच्छिक या वास्तविक नहीं है तो स्पीकर इस्तीफे का नामंजूर कर सकते हैं.
- विधायकों या सांसदों के अपने पद छोड़ने के कुछ और तरीके भी हैं. मसलन वो बिना अनुमति के हाउस की कार्यवाही से लगातार 60 दिन तक गैरहाजिर हो सकता है. ऐसी स्थिति में भी हाउस को ही ये फैसला लेना होता है कि ऐसे सदस्य की सदस्यता रद्द की जाए या नहीं.
- इस बारे में एक व्यवस्था दल-बदल कानून की भी है. इस कानून के मुताबिक एक विधायक या सांसद की सदस्यता रद्द की जा सकती है, अगर वो स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ना चाहता हो या फिर उसने हाउस में वोटिंग की परिस्थिति में पार्टी लीडरशिप के निर्देशों की अवहेलना करता हो.
- दलबदल कानून 1985 में बना है. इसका मकसद विधायकों या सांसदों का बार-बार पार्टी बदलने से रोकना है. 1985 के पहले ऐसे कई उदाहरण हैं, जिसमें विधायकों या सांसदों ने विधानसभा या लोकसभा का सदस्य रहते हुए अपनी पार्टी बदल ली. हरियाणा के एक विधायक गया राम ने 9 घंटे के भीतर 3 बार पार्टी बदली थी.
इसकारण कर्नाटक में जिन विधायकों नें इस्तिफें दियें हैं, उनपर स्पीकर कड़ी कार्यवाही भी कर सकतें हैं.