बिलासपुर । जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर के अध्यक्ष रहे देवेंद्र पांडेय और उसके पुत्र की पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर की शिकायत पर गिरफ्तारी हो गई है । पिता पुत्र दोनो के विरुद्ध एक्ट्रोसिटी का मामला भी दर्ज किए जाने की खबर है ऐसे में उनकी जमानत को लेकर भी सन्देह है। देवेंद्र पांडेय के कार्यकाल में बैंक में एक सौ करोड़ से ऊपर के घोटाले हुए थे मगर देवेंद्र पांडेय के खिलाफ कोई मामला दर्ज नही हो पाया मगर पूर्व मंत्री की शिकायत उनके लिए भारी पड़ गया सवाल यह उठता है कि क्या बैंक घोटाले की नए सिरे से जांच होगी ?
भाजपा शासन काल मे जब पूरे बिलासपुर जिले में सत्ता और संगठन में मंत्री अमर अग्रवाल का कब्जा था इसके बाद भी जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद पर कोरबा से आकर देवेंद्र पांडेय ने कब्जा किया था यदि अमर अग्रवाल चाहते तो उनका समर्थंक बैंक अध्यक्ष बन सकता था मगर उस दौरान सहकारिता की कार्यप्रणाली मेरे पल्ले नही पड़ता कहते हुए अमर अग्रवाल ने जिला सहकारी बैंक के चुनाव में कोई इंटरफेयर नही किया जबकि तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष धरम लाल कौशिक के कुछ समर्थंक बैंक के संचालक मंडल के सदस्य जरूर बन गए एक समर्थंक तो बैंक का उपाध्यक्ष भी बन गया मगर देवेंद्र पांडेय ने उसकी घोर उपेक्षा की फलस्वरूप दोनो के बीच अनबन के चलते उपाध्यक्ष ने बैंक में गड़बड़ियों को लेकर हाईकोर्ट में याचिका तक दायर कर दी थी ।
यह भी उल्लेखनीय है कि जिन जिन अधिकारियों ने देवेंद्र पांडेय के खिलाफ शिकायतों की जांच शुरू की उन सबका देवेंद्र पांडेय ने अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए तबादला करवा दिया मगर आज सत्ता से बाहर होने के चलते उन उनकी ही पार्टी के व भाजपा के वरिष्ठ नेता ननकी राम कंवर ने मुख्यमंत्री से शिकायत कर श्री पांडेय व उनके पुत्र को मारपीट के मामले में गिरफ्तार करवा दिया है । : जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में देवेंद्र पांडेय के अध्यक्षीय कार्यकाल में की गई गड़बड़ियों की जांच दो ढाई साल तक चलती रही । जांच के दौरान परत-दर-परत घोटाला सामने आते रहा मगर देवेंद्र पांडेय के खिलाफ कोई प्रकरण नही बना ।जांच टीम की ओर से शासन को भेजी गई प्रारंभिक रिपोर्ट में 95 करोड़ रुपए की गड़बड़ी सामने आई । जांच दल में शामिल अफसरों की मानें तो श्री पाण्डेयके तीन वर्ष के कार्यकाल की गड़बड़ी थी।
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष देवेंद्र पांडेय के कार्यकाल के दौरान बरती गई गड़बड़ी को लेकर राज्य शासन से शिकायत की गई थी। इसे गंभीरता से लेते हुए राज्य शासन ने तीन संयुक्त पंजीयक व दो दर्जन से अधिक विभागीय निरीक्षकों व संपरीक्षकों की टीम बनाकर पांच वर्ष के कार्यकाल की जांच करने का निर्देश जारी किया था। शासन के निर्देश पर बीते एक वर्ष से जांच दल में शामिल अधिकारी व कर्मचारी जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की फाइलों को खंगालते रहे । जांच के दौरान ऐसी कोई शाखा नहीं मिली जहां गड़बड़ी न की गई हो। बैंक की एक-एक फाइलें फर्जीवाड़ा की कहानी खुद ही कह रही थी । शाख भवन निर्माण, किसान विश्राम गृह निर्माण, बैंक वाहन के अलावा किराए के वाहन संबंधी व्यय में अनियमितता, दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की नियुक्ति में गड़बड़ी, संविदा भर्ती में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी, भृत्यों की नियुक्ति में फर्जीवाड़ा, बैंक एवं शाखाओं के सुरक्षा कार्य में अनियमितता, नोट काउंटिंग मशीन खरीदी में गड़बड़ी, ऋणी कृषक दुर्घटना बीमा में अनियमितता, फर्नीचर खरीदी में अनियमितता, छठवां वेतन का बकाया भुगतान में गंभीर अनियमितता बरतने का खुलासा हुआ ।
नोट काउटिंग मशीन की खरीदी में जमकर कमीशनखोरी का मामला भी जांच सामने आया । फर्जीवाड़ा करने वाले प्रबंधन ने दुर्घटना में मृत किसानों के परिजनों को भी नहीं छोड़ा । जांच के दौरान यह सनसनीखेज खुलासा हुआ कि बीमाधारी किसान जिनकी दुर्घटना में मौत हो गई है उनके परिजनों को बीमा क्लेम की राशि भुगतान में अफरा-तफरी की गई । बीमाधारी मृतक किसानों के ऐसे परिजनों का हवाला भी दिया गया है जिनको मुआवजा राशि नहीं मिली और कागज में भुगतान करना बताया गया है।
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में गड़बड़ी की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में तकरीबन 95 करोड़ का घोटाला सामने आया । जांच चल ही रही थी तो दूसरी ओर
करोड़ों रुपए के घोटालों में प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर निलंबित अधिकारी-कर्मचारियों को फिर बहाल करने का दौर शुरू हुआ और ऐसे कर्मचारियों को उनकी मनपसंद ब्रांचों में पदस्थ किया जाता रहा । हद तो तब हो गई जब जिन 106 लोगों को अयोग्य करार देकर निकाल दिया गया था, उन्हें फिर नौकरी में रखने की कोशिश की गई । जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में 106 लोगों को उनकी योग्यता नहीं होने के बावजूद गलत तरीके से नौकरी देने के मामले में निलंबित प्रभारी अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी अमित शुक्ला को पुन: बहाल कर दिया गया हालांकि बाद में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया मगर बर्खास्तगी के पहले शुक्ला का निलंबन वापस करने के बाद पुराने बस स्टैंड स्थित बैंक में शाखा प्रबंधक के पद पर पदस्थ कर दिया गया था । तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी अभिषेक तिवारी के कार्यकाल में शुक्ला को 106 लोगों की बैंक की भर्ती और गड़बड़ी में मुख्य भूमिका पाए जाने पर निलंबित कर दिया था हालांकि शुक्ला ने किसके इशारे पर नियम विरुद्ध भर्ती की थी यह सबको पता है । प्रारंभिक जांच में शुक्ला को दोषी भी पाया गया । इसी तरह शेखर दत्ता को गंभीर आर्थिक अनियमितता के आरोप पर निलंबित किया गया था, उन्हें भी बहाल कर दिया गया था । करोड़ों रुपए के परिवहन घोटाले की फाइल गायब होने के मामले में निलंबित घनश्याम तिवारी को भी बहाली का इनाम मिला था । मल्हार में तीन करोड़ रुपए के धान घोटाले में एफआईआर व एसआईटी की जांच में फंसे टंडन को कोटा शाखा में ब्रांच मैनेजर के पद पर बिठा दिया गया था ।
जिला सहकारी बैंक देवेंद्र पांडेय दुबारा अध्यक्ष तो क्या संचालक मंडल के सदस्य तक बनने में जब अयोग्य करार दे दिए गए तो उन्होंने तिकड़म करके अपने समर्थंक मुन्ना राम राजवाड़े को अध्यक्ष बनवाने में सफल रहे । मुन्ना राम राजवाड़े को तब देवेंद्र पांडेय का खड़ाऊ कहा
जाता था । अध्यक्ष मुन्नाराम राजवाड़े ने चार्ज लेते ही देवेंद्र पांडेय के इशारे पर अपने पंसदीदा अधिकारियों, लेखापालों की पदस्थापना शुरू कर दी । अमित दुबे जरहागांव से छपोरा में पदस्थ कर दिया गया तो गिरीलाल राठौर डभरा से चांपा, रश्मि गुप्ता चांपा से मरवाही, चंद्रकुमार वर्मा को बलौदा से नवागांव भेज दिया गया ।
*32 में 18 बचत बैंकों की जांच में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दिया था*
इसी दौरान बचत बैंकों में घपले की शिकायतों पर पुलिस द्वारा जांच की रही थी लेकि जांच को अचानक सीबीआई को सौप दिया गया । सीबीआई द्वारा जांच शुरू करते ही जिन आरोपियों को पुलिस फरार बताती रही उसमें से कुछ जिला सहकारी बैंक में आज भी जिम्मेदार पद पर कार्यरत हैं । सीबीआई ने 32 में 18 बचत बैंकों के संबंध में क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी थी
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सहकारी बैंकों के अधीन 32 बचत बैंकों की जांच कर रही सीबीआई ने 18 समितियों के संबंध में लगभग जांच पूरी की और जांच में उन सभी 18 समितियों में किसी तरह का कोई घोटाला होना नहीं पाया । यही वजह है कि इसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट को पेश की गई है। इसमें लिखा गया है कि समितियों ने पैसों में हेराफेरी नहीं की है बल्कि इन पैसों से यहा के कर्मचारियों के वेतन का भुगतान, खरीदी और दूसरे कामों के रूप में इसका इस्तेमाल किया गया है। इसमें कहीं कहीं और कुछ। इसी तरह
सहकारी बैंकों के अधीन बचत बैकों के विरुद्ध लोगों की शिकायत के बाद सहकारी संस्था ने एक के बाद कर इन बैंकों की जांच करवाई। ऑडिट रिपोर्ट मंगवाए गए। पता चला कि यहां बड़े पैमाने पर पैसों की गफलत हुई है। पहले फेज में सहकारी बैंक के पदाधिकारियों ने उन लोगों के लिए पैसों की मांग की जिन्हें बचत बैंकों से उनके खुद के जमा किए पैसे नहीं मिल रहे थे। शासन से 10 करोड़ का लोन लेकर किसानों में बांटा गया ।
इनमें ज्यादातर समितियां जांजगीर और कोरबा क्षेत्र की थी ।
*गड़बड़ी मिलाकर कोई सौ करोड़ का घोटाला*
जिला सहकारी बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष के कार्यकाल में बैंक में बड़े पैमाने पर अनियमितता उजागर हुई । तत्कालीन अध्यक्ष ने नियम-कानून को ताक में रखकर बचत बैंकों में किसानों की जमा राशि तक को नहीं छोड़ा और लाखों रुपए का बंदरबांट कर दिया। बताते हैं कि जिला सहकारी बैंक प्रबंधन ने बचत बैंकों में जमा राशि को दूसरे मद में खर्च कर दिया। साथ ही बड़े पैमाने पर हेराफेरी की। पूरी जांच में सौ करोड़ रुपए की गड़बड़ियां उजागर हुई।
*साेसायटियो में मिली आर्थिक गड़बड़ी*
सहकारी बैंकों के अधीन नेवरा, धूमा, सिंघनपुरी, घुटकू, भरारी, कोटा, सेमरताल, ओखर, धुर्वाकारी, जांजी, बिटकुली, जैतपुर, हिर्री, चिल्हाटी, धनिया, घुरु, सकरी, देवरी, गनियारी सहित कई ब्रांचों में धान और रुपयों के घपले के मामले आये । कई तरह की राशियों में अंतर और लोगों की परेशानी के बाद सहकारी संस्था के अधिकारियों ने इसकी जांच करवाई थी।
बिलासपुर सहकारी संस्था के 19 कर्मचारी सीबीआई के साथ जांच करने में जुटे हुए थे । इसकी जांच कभी रायपुर तो कभी बिलासपुर में चलती रही । कई जगह तो रिकॉर्ड ही नहीं मिली। जांच में सहयोग करने के लिए ही यहां के कर्मचारियों को सीबीआई ने अपने साथ शामिल किया था । वे समिति के कर्मचारियों के साथ यहां उनकी पहचान और रिकॉर्ड मिलान करने में जुटे रहे । इस मामले में सीबीअाई ने कोई दो साल जांच की ।